Showing posts with label गृहिणियों. Show all posts
Showing posts with label गृहिणियों. Show all posts

Saturday, July 17, 2021

एतवार के एतवार ये ...

मेड़ों से 

सीलबंद

खेतों के 

बर्तनों में

ठहरे पानी 

के बीच,

पनपते

धान के 

बिचड़ों की तरह,

आँखों के

कोटरों की

रुकी खारी 

नमी में भी

उगा करती हैं, 

अक़्सर ही

गृहिणियों की 

कई कई उम्मीदें .. शायद ...


आड़ी-तिरछी 

लकीरें

इनके पपड़ाए

होठों की,

हों मानो ...

'डिकोडिंग' 

कोई ;

एड़ियों की 

इनकी  शुष्क 

बिवाई की 

कई आड़ी-तिरछी 

लकीरों से सजे,

चित्रलिपिबद्ध

अनेक गूढ़ 

पर सारगर्भित

'कोडिंग' के 

सुलझते जैसे .. शायद ...


गर्म मसाले संग

लहसुन-अदरख़ में

लिपटे मुर्गे, मांगुर या 

झींगा मछलियों के

लटपटे मसाले वाली,

या कभी सरसों या 

पोस्ता में पकी 

कड़ाही भर

रोहू , कतला या 

हिलसा के 

झोर की गंध से,

'किचन' से लेकर

'ड्राइंग रूम' तक,

अपने घर की और ...

आसपड़ोस तक की भी,

सजा देती हैं अक़्सर

एतवार के एतवार ये .. शायद ...


शुद्ध शाकाहारी

परिवारों में भी

कभी पनीर की सब्जी,

या तो फिर कभी

कंगनी या मखाना 

या फिर .. 

बासमती चावल की 

स्वादिष्ट सोंधी 

रबड़ीदार तसमई से

सजाती हैं,

'बोन चाइना' की 

धराऊ कटोरियाँ

एतवार के एतवार ये,

ताकि ...

सजे रहें ऐतबार,

घर में हरेक 

रिश्तों के .. बस यूँ ही ...


"गृहिणियों" .. यहाँ, यह संज्ञा, केवल उन गृहिणियों के लिए है, जो आज भी कई भूखण्डों पर, चाहे वहाँ के निवासी या प्रवासी, किसी भी वर्ग (उच्च या निम्न) के लोग हों, उनके परिवारों में महिलायें आज भी खाना बनाने और संतान उत्पन्न करने की सारी यातनाएँ सहती, एक यंत्र मात्र ही हैं। घर-परिवार के किसी भी अहम फैसले में उनकी कोई भी भूमिका नहीं होती। 

बस .. प्रतिक्रियाहीन-विहीन मौन दर्शक भर .. उनकी प्रसव-पीड़ा की चीख़ तक भी, उस "बुधिया" की चीख़ की तरह, आज भी "घीसू" और "माधव" जैसे लोगों द्वारा अनसुनी कर दी जाती हैं .. बस यूँ ही ... 】.