Thursday, December 11, 2025

आखि़र में है लिखा नाम उस फ़ेहरिस्त के ...


अभी-अभी आज ही रविवारीय सुबह हमने,

उठायी है एक पर्ची 'स्टडी टेबल' से अपनी।

लिखीं हैं जिस पर एक लम्बी-सी फ़ेहरिस्त,

जाग कर देर रात तक कल मेरी धर्मपत्नी।


माह भर के रसद सामग्रियों के साथ-साथ,

तेल-मसाले, साबुन-मंजन जैसी चीज़ें भी।

सुबह जागने से रात सोने तक महीने भर में

इस्तेमाल करने वाले सामान सभी के सभी।


अरहर दाल दो किलो, एक किलो मूंग दाल,

झींगोरा दो किलो, चावल पाव भर बासमती।

हल्दी पाउडर, कसूरी मेथी, 'मिलेट्स' दलिया,

साबुत धनिया ढाई सौ ग्राम, सौ ग्राम मेथी भी।


बेसन व गुड़ एक-एक किलो, खांड पाव भर,

रसोईघर में है जो चीनी और मैदे पर पाबन्दी !

'कोल्ड क्रीम', 'हेयर डाई', भीमसेनी कपूर और

साथ में 'बटर पेपर', 'नैपकिन पेपर' तक भी।


अंत में फ़ेहरिस्त के लिखा दिखा एक और नाम,

लिखावट है जिसकी बदली, पर है तो पहचानी।

दरअसल ये लिखावट है एक सरकारी स्कूल में

पढ़ने वाली तेरह वर्षीया हमारी प्यारी बिटिया की।


मित्रवत् व्यवहार ने ही हमारे बना पाया है जिसे 

इतना बिंदास कि वह कह सके हर बातें मुझसे भी,

हर महीने .. अपने मुश्किलों से भरे चार दिनों की 

पीड़ाओं और उस ... 'सैनिटरी नैपकिन' की भी।


हाँ .. हाँ .. आपने सही सुना .. आखि़र में है लिखा

नाम उस फ़ेहरिस्त के .. 'सैनिटरी नैपकिन' का भी।

लंद-फंद-देवानंद जग भर के करके आप शरमाते नहीं,

समक्ष बेटियों के 'पैगें' तो बनाते हैं, बढ़ाइए पींगे भी .. बस यूँ ही ...