Friday, December 22, 2023

पुंश्चली .. (२४) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)


प्रत्येक वृहष्पतिवार को यहाँ साझा होने वाली साप्ताहिक धारावाहिक बतकही- "पुंश्चली .. (१)" से "पुंश्चली .. (२३)" तक के बाद पुनः प्रस्तुत है, आपके समक्ष "पुंश्चली .. (२४) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" .. बस यूँ ही ...  :-

गतांक का आख़िरी अनुच्छेद :-

तभी सामने से मुहल्ले की ओर से ललन चच्चा (चाचा) कुछ भुनभुनाते-बड़बड़ाते-से रसिक चाय दुकान की ओर ही चले आ रहे हैं .. जो अभी चाय दुकान पर मौज़ूद सभी को आते हुए दिख भी गए हैं। उनके आने के कारण चाय दुकान पर बैठी शेष मंडली .. कुछ तो औपचारिकतावश और कुछ .. आदरवश उठ कर जाते-जाते रह गयी है। मुहल्ले भर में ललन चच्चा की क़द्र है। सभी आदर भाव के साथ इनसे मिलते हैं। अब भला मिले भी क्यों नहीं .. इन्होंने भारत में उपलब्ध अनेकों संगीत के विश्वविद्यालयों में से एक- प्रयाग संगीत समिति, प्रयागराज से संगीत में स्नातक स्तरीय छह वर्षीय प्रभाकर की उपाधि प्राप्त की है। उपाधि तो अपनी जगह है, गायन में इनकी उपलब्धि भी कम नहीं है। 

गतांक के आगे :-

ललन चच्चा के रसिक चाय दुकान के नजदीक आने से कुछ क़दम पहले ही रेशमा का अपने स्थान से उठकर दो-चार क़दम उनकी ओर बढ़ कर उनका पाँव छूना ही और वहाँ चाय की चुस्की लेने वाली उपस्थित मंडली का चुस्ती के साथ आदर भाव सहित अपने-अपने दोनों हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्कार करते हुए अभी-अभी उठ जाना भी सामाजिक दायरे में उनकी प्रतिष्ठा को बतलाने के लिए पर्याप्त है .. शायद ...

परन्तु हमेशा प्रफुल्लित रहने वाला और आध्यात्मिक आभा से दैदीप्यमान रहने वाला ललन चच्चा का मुखड़ा अभी कुम्हलाया देख कर आसपास उपस्थित लगभग हर लोग उनकी ओर सहानुभूति की दृष्टि से देख रहे हैं। उनके बैठने लिए रसिक की दुकान के बेंच पर खाली किए गए जगह पर वह अब बैठ रहे हैं। आख़िरकार मन्टू उनके निकट आ कर उनकी उदासी की वजह वाले सभी ऊहापोह को ख़त्म करने के लिए विनम्रता के साथ अभी कुछ पूछने की सोच ही रहा है कि... रेशमा ही अपने जगह से बैठे-बैठे ही उनसे वार्तालाप की शुरुआत कर देती है ...

रेशमा - " चच्चा ! .. आज सुबह-सुबह क्या हो गया .. जो आप परेशान दिख रहे हैं ? .. आज आपके हारमोनियम की धौंकनी में कुछ गड़बड़ी हो गयी है या विशाखा की किसी ऊटपटाँग फ़रमाइश ने आपको परेशान कर डाला है सुबह-सुबह ? "

रेशमा के द्वारा सवाल पूछे जाने के कारण .. विशेष तौर पर रेशमा को सम्बोधित करते हुए और साथ-साथ बेचारगी युक्त अपनी क़ातर नज़रों से सभी को देखते हुए वह अपने रुँधे हुए कंठ से मानो फूट पड़े हैं।

ललन चाचा - " तुम लोग ईमानदारी से बतलाना कि .. हमारे या हमारे कुल तीन लोगों के परिवार से तुमलोगों को कभी कोई परेशानी हुई है क्या इतने वर्षों में ? .. "

मन्टू - " क्या बात बोल रहे हैं आप चच्चा ? .. उल्टा .. आप के यहाँ रहने से हम सभी को गर्व महसूस होता है .. नहीं क्या चाँद भाई ? "

रेशमा - " और नहीं तो क्या ? .. एकदम सही बात बोल रहे हो भाई .. सुबह-सुबह इनके रियाज़ के दौरान लिए गए आलापों और विशाखा के सरगम छेड़ने से तो मुहल्ले भर में सभी की हर सुबह आँखें खुलती हैं। "

चाँद - " और हर शाम भी तो इनके ग़ज़लों के रियाज़ से पूरा मुहल्ला गुलज़ार हो जाता है .. है कि नहीं मन्टू भैया ? .. "

मन्टू - " अभी तो .. आप ही बतलाइए ना जरा .. आख़िर किसको परेशानी हो गयी यहाँ पर भला .. आपके और आपके परिवार के रहने से ? "

रेशमा - " हाँ .. चच्चा .. बतलाइए ना .. "

ललन चाचा - " बेटा ! .. तुम लोग तो जब से होश सम्भाले हो या जो लोग भी जब से आये हो इस मुहल्ले में .. हमको तो शुरू दिन से ही जानते हो .. "

रेशमा - " हाँ जी चच्चा .. इस में तो कोई भी शंका वाली बात ही नहीं है .."

ललन चाचा - " इतने दिनों में तुम लोगों को तो कभी भी हमसे किसी भी तरह की परेशानी नहीं हुई है .. बल्कि रेशमा और .. इसके अलावा भी कई लड़के-लड़की भी मेरे घर आ-आकर मुफ़्त में गायकी की बारीकी सीखते हैं .. "

मन्टू - " एकदम सही बात है चच्चा .."

रेशमा - " चच्चा आज तक कभी झूठ बोले ही नहीं हैं .."

ललन चाचा - " विशाखा बेटी भी तो आज चौदह साल की हुई है .. तुम्हीं लोगों के सामने .. कभी भी हम लोगों की ऊँची आवाज़ सुने हो तुम लोग ? "

भूरा - " ना चच्चा .. कभी भी ना .. उल्टा .. आप तो हमेशा लोगों के आपसी झगड़े सुलझाते रहते हैं चच्चा .."

चाँद - " ये सब बोलने-बतलाने की बात ही नहीं है भूरा .. कि .. चच्चा एक निहायत ही शरीफ़ इंसान हैं इस मुहल्ले भर में .. "

रेशमा - " छोड़ो भी भाई लोग ये सब .. चच्चा .. आप अपनी बात बतलाइए कि .. कौन हो रहा है भला आप से परेशान ? "

ललन चाचा - " रेशमा .. क्या बोलें तुमको .. एक सप्ताह से मेरे मकान मालिक को मेरे और विशाखा के सुबह-शाम गाने के अभ्यास से अशांति हो रही है। जोकि हम लोग वर्षों से करते आ रहे हैं। यही गीत-संगीत तो हमारी आजीविका कल भी थी और आज भी है .. " 

रेशमा - " आप से सुखपाल चच्चा को परेशानी हो रही है या उनकी पत्नी को ? या फिर उनके बड़े वाले बेटे-बहू को ? "

ललन चाचा - " अंदर की पारिवारिक बात तो नहीं मालूम रेशमा .. पर हमको तो सुखपाल जी ही घर खाली करने की चेतावनी दिए हैं कि .. एक महीने के अंदर ही घर खाली करना होगा, क्योंकि हमलोगों से उन लोगों की शांति भंग हो जाती है। पता नहीं क्यों अचानक से .. जबकि शुरू से ही हर माह समय पर उनके हाथ में किराया देते आ रहे हैं .. फिर भी ..."

मन्टू - " मकान मालिकों का कोई ठिकाना नहीं चच्चा .. अभी ज्यादा किराया देने वाला कोई मिल गया होगा, तो फिर आपका पत्ता साफ़ कर दिया सुखपाल बाबू ने .. इनके साथ आपका वर्षों का रिश्ता .. बस .. मिनटों में फ़ुस्स हो जाता है .. नहीं क्या ? .. अब .. सब कोई मेरी मकान मालकिन शनिचरी चाची जैसी थोड़े ही ना हो जाता है चच्चा .." 

ललन चाचा - " सही कह रहे हो बेटा .. हम तो उनको अपने बड़े भाई की तरह मानते रहे .. उनकी पत्नी को भाभी और उनके बच्चों को अपनी आँखों के सामने बड़ा होते देखे हैं .. उनकी शादी .. फिर उनके बच्चे .. उन बच्चों का बड़ा होना .. सब कुछ हमारी इन्हीं आँखों के सामने हुआ है .. दिन-दिन भर उनके बेटे-बेटी, फिर उनके पोते-पोतियाँ हमारे घर में लोटपोट करते रहते थे .. उनका गुह-मूत सब हमने और विशाखा की माँ ने किया है .. "

रेशमा - " ये सब तो कोई बतलाने वाली बात थोड़े ही ना है चच्चा .."

ललन चाचा - " और तो और .. सुबह-साम की चाय हमलोग साथ में पीते थे .. हम दोनों परिवार के यहाँ कुछ भी विशेष व्यंजन बनने पर हमदोनों के घर में आदान-प्रदान होता था .. तीज-त्योहारों को साथ-साथ मिलकर दोनों परिवार मनाते थे। तीज और करवा चौथ के दिन तो भाभी जी विशेष कर के विशाखा के माँ के साथ मिल कर मेरे ही कमरे में सारा अनुष्ठान करती थीं और नवरात्री के समय या छठ व्रत के दौरान प्रसाद के नाम पर हम तीनों का खाना-पीना उनके ही घर होता था .. फिर अचानक से .. ऐसा व्यवहार ? .. दरअसल अक़्सर अवसर मिलते ही इंसानी इच्छाएँ बलवती हो उठती हैं बेटा .. रात के अँधियारे वाले दुशाले में ना जाने कब इंसान दुश्चरित्रता के पसीने में तरबतर हो जाए .. "

चाँद - " आप ठहरे चच्चा .. एक फ़नकार आदमी, तो .. आप तो जज़्बाती होंगे ही .. जो भी इंसान मन से फ़नकार होता है ना चच्चा .. उसका जज़्बाती होना लाज़िमी है .. या फिर आप ये भी कह सकते हैं कि जज़्बाती इंसान ही फ़नकार होता है चच्चा .. " 

ललन चाचा - " वो तो है बेटा .."

चाँद - " अब आप तो सबसे दिल से जुड़ जाते हैं पर .. लोग  हैं कि आप से तिजारती ही बने रहते हैं .."

रेशमा - " पर ऐसे लोग बहुत ही खतरनाक होते हैं चच्चा .. आप तो देख ही रहे हैं ना .. जिन-जिन देशों में या सभ्यताओं में संगीत-साहित्य के लिए जगह नहीं है .. वो सारे के सारे पूरी दुनिया में आतंकवादी बने फिर रहे हैं .. वो ना तो ख़ुद चैन से रह पाते हैं और ना आम इंसान को चैन से रहने देते हैं .. "

इनलोगों की बातचीत के बीच कलुआ ललन चाचा के लिए बिना चीनी वाली चाय कुल्हड़ में ले कर आ गया है। कलुआ से चाय का कुल्हड़ लेकर ...

ललन चाचा - " एक और बात रेशमा .. हमने जब उनसे बोला कि इतने सालों बाद आपके घर में रहने के बाद इन सारे सामानों के साथ कहाँ और कैसे जाएँगे ? इतने सारे सामान, इतने सारे पौधों के गमले  .. सब कैसे लेकर जा पायेंगे .. जो किराया बढ़ाना हो बढ़ा लीजिए पर .. यहीं रहने दीजिए ना .. "

रेशमा - " घबराइए मत चच्चा .. हम लोग हैं ना .. हमलोग किस दिन काम आयेंगे चच्चा .. जल्दी ही कोई व्यवस्था करते हैं हमलोग .. और .. आपको इसी मुहल्ला में ही रखेंगे .. बाहर कहीं नहीं जाने देंगे .. "

ललन चाचा को रेशमा की बातों से कुछ ढाढ़स होता सा लग रहा है। उनके चेहरे की उदासी कुछ कम हो गयी है। 

ललन चाचा - " जब हमारे पौधों वाले गमले की बात हमने उनसे कही तो .. उनका कहना था कि .. जैसे अपना सब सामान अपने कँधे पर लाद लेकर जाइएगा .. वैसे ही इन गमलों को भी अपने कँधे पर लाद कर ले जाइयेगा .. मेरा तो कलेजा फट गया बेटा .. ऐसी रूखी बात उनके मुँह से सुन कर तो .." 

मन्टू - " तो .. तो क्या चच्चा .. इसमें आपकी बेईज्ज़ती थोड़े ही ना है .. इससे तो उनकी अज्ञानता झलकती है चच्चा .. "

रेशमा - " हाँ .. और क्या .. उस नादान आदमी को ये भी एहसास नहीं है कि .. आपको, हमको, हम सबको और .. उनको भी .. एक ना एक दिन .. चार इंसानी कँधों पर लद कर ही अपने जीवन की अंतिम यात्रा तय करनी है .. फिर ये दूसरे को ऐसी बात कह के नीचे गिराना .. "

मन्टू - " इंसान ख़ुद ही नीचे गिर जाता है .. "

रेशमा - " हाँ तो .. और ये मकान मालिक होने का धौंस जमाना भी एक मूर्खतापूर्ण क़दम है चच्चा .. जबकि इस धरती पर रहने वाला हर इंसान एक किराएदार है .. चाहे वह पचास साल का हो .. सौ साल का हो .. पर है तो वो किराएदार ही .. बस .. उसकी आँखें जब कभी भी चिरनिंद्रा में मूँदी और वह उसी पल अपनी जायदाद से बेदख़ल हो जाता है .. फिर भी इतनी हेकड़ी ? .."

【आज बस .. इतना ही .. अब शेष बतकहियाँ .. आगामी वृहष्पतिवार को ..  "पुंश्चली .. (२५) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" में ... 】