Saturday, June 6, 2020

नासपीटा कहीं का ...


यूँ तो अच्छी नस्लों को कब और कहाँ ..
अपने समाज के लिए सहेजा हमने ?
सुकरात को ज़हर दे कर मारा हमने,
ईसा को भी सूली पर चढ़ाया हमने,
दारा शिकोह को मार डाला उसके ही अपनों ने
ऐसे कई अच्छे डी एन ए को तो
सदा वहीं नष्ट कर डाला हमने।
और कई दार्शनिक, वैज्ञानिक और
बुद्धिजीवी भी तो रह गए कुँवारे ताउम्र।
ना इनकी भी कोई संतति मिल पायी
बहुधा समाज को हमारे।

फिर ईसा पूर्व में हखामनी साम्राज्य के
दारा प्रथम का पहला सफल हमला
और फिर यूनान, शक़, हूण से लेकर
अंग्रेजों तक का निरन्तर आना
हुए यहाँ कई-कई समर ..
हुए यहाँ कई-कई ग़दर,
हुए कई-कई देखे-अनदेखे जुल्मोंसितम ..
कई कहे-अनकहे क़हर,
लूटे गए कई बसे गाँव-घर ..
कई-कई बसे-बसाए शहर।

आक्रमण कर के कुछ का लूटपाट करना, 
कुछ का शोषण करना,
कुछ का तो वर्षों तक शोषण
और शासन भी करना।
कुछ का औपनिवेशिक जमीन से
अपने वतन लौट जाना,
कुछ का अपनी आबादी का
तादाद बढ़ाते हुए यहीं बस जाना।
जाने वालों का कुछ-कुछ यहाँ से ले जाना
और साथ ही कुछ-कुछ हमें दे जाना।

कुछ-कुछ नहीं .. शायद ... बहुत-बहुत कुछ ..
ले जाना भी और दे जाना भी।
बड़ी से बड़ी भी ..  मसलन- कई इमारतें
और छोटी से छोटी भी .. मसलन- अपने डी एन ए को
शुक्राणुओं की शक़्ल में .. शायद ...
हाँ , सूक्ष्म शुक्राणुओं की बौछार ..
ज़बरन, ज़ोर-ज़बर्दस्ती लूटी औरतों की
चीखों से बेख़बर हर बार..
उनकी कोखों में .. हर बार .. बारम्बार
बस बलात्कार ही बलात्कार।
अब भला उनकी वो संकर
औलादें कहाँ हैं ? .. कौन हैं ?
हम में से ही कोई ना कोई तो है ? .. है ना ? ..

अब जीव-विज्ञान तो है महज़ एक विज्ञान ..
क़ुदरत का एक है वरदान।
अब इन शुक्राणुओं को और
अंडाणुओं को भी भला कहाँ है मालूम कि ..
सम्भोग करने वाला .. पति है या प्रेमी
या फिर लूटेरा या बलात्कारी कोई।
वो तो मिलते ही बस .. बनाने लग जाते हैं
युग्मनज गर्भों में बस यूँ ही ...।
ये विज्ञान या क़ुदरत भी न अज़ीब है ..
मतलब .. नीरा बेवकूफ भी।
पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष है।
जाति निरपेक्ष और देश निरपेक्ष भी।
जरा भी .. भेद करना जानता ही नहीं
नासपीटा कहीं का ... हमारी तरह कभी।

फिर जब राजतंत्र और शासन थे तो ..
शासक का होना था लाज़िमी
और इन राजाओं और बादशाहों की
रानियां, पटरानियाँ और बेग़में भी तो थीं ही
साथ ही हरम में रखैलें, दासियाँ भी
अनगिनत थीं हुआ करतीं।
अनगिनत रखैलों की नस्लों की तादाद भी तो
वाजिब है अनगिनत ही होगी .. है कि नहीं ?
हमारे बीच ही तो हैं ना वो हरम में
जन्मीं औलादों की नस्लें आज भी ?

सोचता हूँ कभी-कभी कि ..
लगभग हजार साल पहले
महमूद गजनवी के सोलहवें
आक्रमण के समय 1025 ईस्वी में
कोई ना कोई तो हमारा भी
एक अदना-सा पूर्वज रहा होगा ?
पर भला कौन रहा होगा ?
जिसके डी एन ए का अंश आज हमारा होगा
मुझे तो पता ही नहीं .. तनिक भी नहीं।

शायद आपको पता होगा ..
शायद नहीं .. पक्का ही ..
हाँ .. हाँ .. आपको तो पता होगा ही ..
हजार क्या, हजारों-हजार साल पुराने भी
वंश बेल की अपनी हर पुरानी
शाखाओं-उपशाखाओं की जानकारी।
शान से कहते हैं तभी तो
अकड़ा कर गर्दन आप अपनी कि ..
आप हैं किसी ना किसी देवता
या ऋषि के कुल की विशुद्ध संतति।


पर हमने जो अपने गिरेबान में झाँका ..
जब कभी भी .. जहाँँ कहीं भी .. बार-बार झाँका,
हजार साल पहले के मेरे पुरख़े का
फिर भी मालूम कुछ भी मुझे चला नहीं।
तभी तो हम अपनी जाति-धर्म के लिए
अपनी गर्दन कभी भी अकड़ाते  नहीं।



Friday, June 5, 2020

कब लोगे अवतार ?

आज की रचना/विचार " कब लोगे अवतार " के पहले कुछ बातें आज के ख़ास दिवस " विश्व पर्यावरण दिवस " के बारे में कर लेते हैं .. है ना !? ...

 पहले आज की कुछ-कुछ बात  :-
आज .. अभी अगर आपके पास दो पल का समय हो तो आइए .. हमलोग एक बार अपने घर या मकान, अपार्टमेंट के फ्लैट या ड्यूप्लेक्स को ग़ौर से देखते हैं .. निहारते हैं। आइए न .. देखते हैं कि ...
1) हमारे घर या फ़्लैट या ड्यूप्लेक्स में इमारती लकड़ी के चौखट से जड़े वार्निश से, किसी एनामेल पेंट से या सनमाइका की परत चढ़ी चमचमाती हुई .. इमारती लकड़ी या फिर प्लाईवुड के दरवाज़े या खिड़कियों के पल्ले हैं या नहीं ?
2) इसके अलावा अन्य क़ीमती फर्नीचरों में .. मसलन- सोफे, डाइनिंग टेबल के सेट, बुक सेल्फ़, कपबोर्ड, दीवारों से जड़ी बड़ी-बड़ी अलमारियां, पूजे की फैंसी अलमारी, पलँग-दीवान इत्यादि लकड़ियों से निर्मित हैं या नहीं ?
3) हमारे घर में भौतिक सुख देने वाले विदेशों में आविष्कार किए गए आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों में .. मसलन- रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर में आज भी ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाली गैस क्लोरो-फ्लोरो कार्बन ( Chlorofluorocarbons / CFCs) गैस या हाइड्रो क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (Hydrochlorofluorocarbon / HCFC ) गैस भरी है या फिर उसकी जगह पर ओजोन परत को नुकसान नहीं पहुँचाने वाली हाइड्रो फ्लोरो कार्बन ( Hydrofluorocarbon / HFC ) गैस भरी है ?

ऐसे और भी कई सवाल हैं, पर .. आज और अभी इतना ही। इनमें से अगर एक भी सवाल का आपका जवाब "हाँ" में है और हमने वेव-पन्नों पर  आज विश्व पर्यावरण दिवस पर कुछ भी पोस्ट करके अपने कर्त्तव्य-पालन का निर्वाह मान कर अपनी गर्दन अकड़ायी है या फिर आसपास के सच में या किसी काल्पनिक पेड़ के कटने पर वेव-पन्नों पर शाब्दिक आँसू बहाए हैं तो आप को ऐसा करने का अधिकार नहीं होना चाहिए .. शायद ...
अब सोशल मीडिया के वेव पन्नों पर आज या यूँ कहें कि पिछले कई दिनों से पर्यावरण की तरंगीय (वेब - Wave ) सुरक्षा और संरक्षण की जा रही है। आज तो विशेषतौर पर, कारण कि .. आज ही तो विश्व पर्यावरण दिवस है। अच्छी बात भी है। अच्छा सन्देश भी है। ज़ाहिर-सी बात है कि अगर पर्यावरण प्रदूषित या नष्ट होगा तो किसी भी प्राणी, खास कर हम मानवों (?) का जीवन दूभर या असम्भव हो जाएगा। यहाँ तक सोचना .. इसकी सुरक्षा और संरक्षण के लिए प्रयासरत होना .. बिल्कुल उचित है।

अचरज का विषय तो तब लगता है, जब शहर के विकास, मुहल्ले/कॉलोनी के विस्तार या सड़क के चौड़ीकरण के लिए किसी पेड़ के काटने पर शाब्दिक आँसू बहाए जाते हैं। 
ज़नाब ! इतने आँसू न बहाइए .. पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के अंतर्गत हमें जल संरक्षण भी करने हैं .. है ना ? 
तनिक तो सोचिए .. जब शहरीकरण का विस्तार होगा या कभी हुआ होगा, नया फ्लैट या अपार्टमेंट बनेगा या जब कभी भी बना होगा तो जंगल, बाग़ीचे या खेत कम किए गए होंगे। नहीं क्या ? 
जिस लकड़ी के सोफे, पलँग या मेज-कुर्सी पर पालथी मार, लेट कर या पैर लटका कर और हिला-हिला कर आप तरंगीय आँसू वेव-पन्नों पर चुआ रहे होंगे, उसके लिए भी किसी ना किसी पेड़ को काटा ही गया होगा। है ना ? तो फिर अब किसी पेड़ के कटने पर इतनी हाय-तौबा का मतलब ? 
माना आपके पोस्ट को ढेर सारे लाइक, कमेंट्स, स्माइली मिल भी गए .. आप गिनती बटोर कर खुश भी हो गए .. और रात में अपने ए. सी. वाले कमरे में दीवान या पलँग पर दोहर ओढ़ कर और टाँग पसार कर, नाक बजाते हुए सो भी गए तो .. पर्यावरण का आपने कौन सा भला कर दिया .. भला ?
अरे ज़नाब ! कटने पर आँसू बहाने के बजाय युवा पीढ़ी को पेड़ लगाने की सीख देना और खुद लगाना ही सही-सही पर्यावरण दिवस ही नहीं, हमारी दिनचर्या में शामिल होना चाहिए। नहीं क्या ?

चलते-चलते एक नज़र विस्तार से विश्व पर्यावरण दिवस पर .. वैसे तो सर्वविदित है कि 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस को पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में 1974 से मनाया जा रहा है। वैसे तो इसकी घोषणा संयुक्त राष्ट्र संघ ( United Nations Organisation ) द्वारा पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु 1972 में ही की गईं थी।
संयुक्त राष्ट्र संघ या संयुक्त राष्ट्र एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसका उद्देश्य है - अंतरराष्ट्रीय कानून को सुविधाजनक बनाने में सहयोग देना, अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, मानव अधिकार और विश्व शांति के लिए कार्यरत रहना। इस की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र अधिकारपत्र पर 50 देशों, जिनमें हमारा परतंत्र देश तत्कालीन भारत भी था, के हस्ताक्षर होने के साथ हुई थी। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में विश्व के लगभग सारे अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त 193 देश हैं। इसका मुख्यालय  अमेरिका ( The United States of America/ USA) के न्यूयॉर्क शहर के मैनहटन शहर में है, जो हडसन नदी के मुहाने पर मुख्य रूप से मैनहटन द्वीप पर स्थित है। संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाएँ अरबी, चीनी, अंग्रेज़ी, फ़्रांसीसी, रूसी, और स्पेनी हैं। यहाँ भी हमारी हिन्दी नहीं है।
विस्तृत रूप में पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के अंतर्गत भूजल संरक्षण, वायु प्रदूषण से बचाव, ओजोन परत का बचाव, भूमि व  मृदा संरक्षण, मानव खाद्य श्रृंखला में जहरीले रसायन से बचाव, खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन और निपटान इत्यादि आते हैं।

तो आइए .. मिलकर पहले अपने घर के और अपने भीतर झांकें और फिर बाहरी पर्यावरण की बात करें तो शोभा देगा .. शायद ...

◆ अब आज की रचना/विचार की कुछ बातें :-
भारत के 28 राज्यों में से एक- उत्तर प्रदेश जो वर्तमान में सबसे ज्यादा जिलों यानि 75 जिलों वाला राज्य है। इन जिलों में से एक- वाराणसी जिला प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों वाला शहर है।
यहाँ स्थित संकट मोचन मंदिर में, वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन और दशाश्वमेध घाट पर 7 मार्च ' 2006, मंगलवार के दिन बम विस्फोट हुए थे। इस सीरियल (धारावाहिक)  बम धमाके में लगभग 28 लोगों की जान चली गई थी और लगभग 101 लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए थे। बाद में जाँच में पता चला था कि इस नापाक दुष्कर्म में लश्कर-ए-तोएबा नामक आतंकवादी संगठन का हाथ था।

उस घटना हताहत मन में एक सवाल कुलबुलाया था, जिस ने बाद में इस निम्नलिखित रचना/विचार का रूप धारण किया था। कुछ दिनों बाद झारखण्ड के धनबाद जिला से प्रकाशित होने वाले हिन्दी दैनिक समाचार पत्र "दैनिक जागरण" के सहायक पृष्ठ पर 28.03.2006 को इस रचना/विचार को स्थान भी मिला था।
तो फिर अब देर किस बात की ? आपकी नज़रों के लिए प्रतिक्षारत है ये रचना/विचार .. बस यूँ ही ...


कब लोगे अवतार ?
आस्था से भरा संकटमोचन
श्रद्धालुओं की भीड़ भरी एक शाम
दिन भी था पावन मंगलवार,
न जाने किया किस नराधम ने
पवित्र धाम पर अमंगल वार।

इधर क्षत-विक्षत छितरायी चहुँओर
वीभत्स लाश होंकर लहूलुहान,
कहीं आतंकित, तो कहीं असहाय
ख़ून से लथपथ घायल इंसान,
उधर केसरिया सिन्दूर से लिपटे
गदाधारी मूक प्रस्तर हनुमान,
रहा है सदा ही ऊहापोह
हरेंगे कब संकट भक्तों के
ये संकटमोचक भगवान ।

जला कर विस्फोटों की होलिका
सदा खेलते ख़ून की होली
जाने कब थकेंगे उनके हाथ ?
चीत्कारों, सुलगती लाशों और
फिर सिसकियों से भला
वे लोग कब तक साधेंगे स्वार्थ।

सुनों ! हे विष्णु के अवतार !
महाभारत के अनुपम सूत्रधार !
कलियुग में कब लोगे अवतार ?
हो हक्का-बक्का ढूँढ़ रहा है तुम्हें,
आज आपका निरीह अकेला पार्थ।





Wednesday, June 3, 2020

विडम्बना ...


आज की रचना/विचार- "विडम्बना ..."भी फिर एक बार पुराने समाचार पत्रों से सहेजे कतरनों में से एक है, जो 7 मार्च ' 2006 को झारखण्ड के धनबाद से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समाचार पत्र "दैनिक जागरण" के मंगलवार को आने वाले सहायक पृष्ठों में छपी थी।
आज बकबक नहीं .. ना .. फिर कभी। आज तो बस .. इतना ही साझा करना भर है आप से कि ... ये रचना/विचार मेरे मन में भला पनपी कैसे होगी।
दरअसल 30 सितम्बर ' 2005 को यूरोप महादेश/महाद्वीप के डेनमार्क देश से प्रकाशित होने वाले डैनिश समाचार पत्र "The Jyllands-Posten" में धर्म-विशेष के पैगम्बर मोहम्मद साहब से संबंधित 12 संपादकीय कार्टून (व्यंग्यचित्र) छपे थे।
जिस के ख़िलाफ़ महीनों तक दुनिया भर में, ख़ास कर मुस्लिम राष्ट्रों में, विरोध प्रदर्शन चलता रहा था। अफ़ग़ानिस्तान, सोमालिया, ईरान, सीरिया, लेबनान के अलावा भारत, डेनमार्क, नॉर्वे और इंडोनेशिया में भी हिंसक प्रदर्शन और दंगे हुए थे। इनमें कई लोग जान से भी मारे भी गए थे। अन्य बहुत सारे लोगों के हताहत होने के साथ-साथ और भी कई नुकसान हुए थे। ये आग महीनों तक सुलगती रही थी।
                        अब इन सब से मन में जो बस यूँ ही ... तो नहीं कह सकते; हाँ इन घटनाओं से व्यथित मन में जो एक इतर बात उपजी, उसी ने इस रचना/विचार की निम्नलिखित शक़्ल ली थी। 
बस यूँ ही ... :-


विडम्बना ...
ये कविताएँ
शब्दकोश से सहेजे
शब्दों का महज मेल भर नहीं
जो लाए पपड़ाये होंठों पर
मात्र एक बुदबुदाहट।

और कार्टूनें
अनायास आड़ी-तिरछी
रेखाओं का सहज खेलभर नहीं
जो लाए बुझे मन में
मात्र कम्पनहीन गुदगुदाहट।

ये सारे के सारे देते ही हैं दस्तक
कभी सकारात्मक
तो कभी नकारात्मक
हो कर खड़े हमारे मन की चौखट पर
हो भले ही अनसुनी आहट।

यूँ तो .. कविता या भाषण
या कभी छोटा-सा नारा भी
करता है प्रेरित इतना कि
स्वेच्छा से आमजन तक
पा जाते हैं हँस-हँस कर शहादत।

या कभी छोटा-सा कार्टून भी
जो धर्म जैसे नाजुक
विषय-विशेष पर बना हो तो
अनुयायियों में उनके लाता है
अंतरराष्ट्रीय स्तर की बौखलाहट।

विडम्बना है ...
कि जो है असरदार
अनुयायियों और
समर्थकों पर भी
सार्थक या अनर्थक।

मगर होता नहीं असर
पाँच वर्षों तक
"उन पर" .. उनके स्वयं पर
बने तोंदिले कार्टूनों का
जो छपते हैं प्रायः
दैनिक अखबारों में
मानो ..हो हासिल उन्हें
थेथर गोह-सी महारत।




Monday, June 1, 2020

लगी शर्त्त ! ...

" नमस्कार ! .. आप कैसे/कैसी हैं ? " .. अरे-अरे .. आप से नहीं पूछ रहा हूँ मैं .. मैं तो बता रहा हूँ कि जब दो लोग, जान-पहचान वाले या मित्र/सहेली या फिर रिश्तेदार मिलते हैं आमने-सामने या फोन पर भी तो बहुधा औपचारिकतावश ही सही मगर .. दोनों में से कोई एक दूसरे सामने वाले से पहला सवाल यही करता या करती है कि- " आप कैसे/कैसी हैं ? " - है ना ?
वैसे भी अभी आप से, " आप कैसे/कैसी हैं ? ", पूछना तो बेमानी ही है; क्योंकि आप ठीक हैं, . . तभी तो ब्लॉग के मेरे इस पोस्ट पर बर्बाद .. च् - च् ... सॉरी ... बर्बाद तो नहीं कह सकता .. अपना क़ीमती समय साझा कर रहे/रही हैं। सही कह रहा हूँ ना ?
हाँ .. तो बात आगे बढ़ाते हैं। तभी झट से दूसरा सामने वाला/वाली उत्तर में, चाहे उसका हाल जैसा भी हो, औपचारिकतावश ही सही पर कहता/कहती हैं कि "हाँ .. आप की दुआ से सब ठीक ही है, बिंदास।" या "ऊपर वाले की दया से सब ठीक है, चकाचक।"
मुझे कुछ ज्यादा ही बकैती करने की .. कुछ ऊटपटाँग बकबक करते रहने की आदत-सी है। अब .. अभी क्या कर रहे हैं ? बकैती ही तो किए जा रहे तब से। है कि नहीं ? यही आदत तो मंच पर Standup Comedy ( इसके बारे में फिर कभी, फिलहाल मान लीजिए कि Open Mic की तरह ही एक विधा है ये , जिनमें मंच से कलाकार द्वारा दर्शकों/श्रोताओं को हँसाने की कोशिश की जाती है। ) करवा जाता है। इसी बतकही वाली आदत के तहत ..  मुझ से अगर कोई मेरा हाल पूछे तो मेरा एक ही तकिया क़लाम वाला जवाब होता है - " आप की दुआ और दुश्मनों की बददुआ की मिली जुली असर से ठीक-ठाक हूँ। " ऐसा बोलने के पीछे भी एक मंशा है।
दरअसल लोग कहते हैं ना कि कॉकटेल ( Cocktail ) में नशा का असर ज्यादा होता है। अब .. अंग्रेजी वाले कॉकटेल के संधि विच्छेद का हिन्दी में मतलब .. मतलब मुर्गे की दुम की बात नहीं कर रहा हूँ मैं। अंग्रेज़ी वाले मुस्सलम कॉकटेल की बात कर रहा हूँ। कॉकटेल- मतलब दो शराबों का मिश्रण, जिसे संवैधानिक चेतावनी को भी नज़रअंदाज़ कर के पीने वाले बुद्धिजीवी वर्ग कहते हैं कि ऐसे ख़ास मिश्रण में नशा कुछ ज्यादा ही होता है। मेरे ऐसा कहने के पीछे भी यही मंशा होती है कि अपनों की दुआ और दुश्मनों की बददुआ की मिली जुली असर ज्यादा असरदार होती है।
अरे-रे- .. बकैती में एक भूल हो गई। अब बिहार में शराबबंदी है और हम हैं कि शराब की बात कर रहे हैं। खैर .. बात ही तो कर रहे केवल, शराबबंदी नहीं भी थी तो .. कौन-सा हम पीने वाले थे या पीने वाले हैं। कभी नहीं।
कई छेड़ने वाले यहाँ भी नहीं छोड़ते। खोद कर पूछ बैठेंगे कि अगर पीते नहीं हो तो इतना कैसे पता ? जवाब देने के बजाए हम भी सवाल कर बैठते हैं कि ताजमहल किसने बनवाया था, बतलाओ जरा। फ़ौरन अपनी गर्दन अकड़ाते हुए अगले का उत्तर होता है- "शाहजहाँ" ( इतिहास के पाठ्यक्रम की किताबों में भी तो ऐसा ही लिखा है। )। तब अगले को लपेटने की बारी हमारी होती है कि जब ताज़महल बनते हुए तुम देखे नहीं, फिर भी पता है कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था। ठीक वैसे ही बिना पिए हमको मालूम है कि कॉकटेल में नशा ज्यादा होती है।
हाँ .. तो .. हमारे इन्सानी जीवन में भी कई दफ़ा कई अपने-से लगने वाले रिश्ते बस यूँ ही ... ताउम्र हालचाल पूछने और जवाब में " ठीक है " कहने जैसे औपचारिक ही गुजर जाते हैं और कई रिश्ते औपचारिक हो कर भी मन के ताखे पर हुमाद की लकड़ी की तरह सुलगते रहते हैं अनवरत, ताउम्र .. शायद ...
खैर .. छोड़िए इन बतकही में आप अपना क़ीमती समय नष्ट मत कीजिए और अब आज की मेरी निम्नलिखित रचना/विचार पर एक नज़र डालिए; जो कि वर्षों से कोने में उपेक्षित पड़ी फ़ाइल में दुबके पीले पड़ चुके पन्नों में से एक से ली हुई है .. बस यूँ ही ...

लगी शर्त्त ! ...
साजन-सजनी,
सगाई,
शहनाई,
बाराती-बारात।

सात फेरे,
सात वचन,
सिन्दूर,
सुहाग-सुहागन,
सुहाग रात।

तन का मिलन,
मन (?) का मिलन,
संग श्वसन-धड़कन,
नैसर्गिक सौगात।

एक घर,
एक कमरा,
एक छत्त,
एक गर्म बिस्तर,
एक परिवार,
साथ-साथ।

पल-क्षण,
सेकेंड-मिनट,
घंटा-दिन,
सप्ताह-महीना,
साल-दर-साल।

सात जन्मों तक,
जन्म-जन्मान्तर तक,
अक्षांश-देशान्तर तक,
प्यार का सौगात
या घात-प्रतिघात।

पर कितनी ?
सात प्रतिशत,
या फिर साठ प्रतिशत,
ना, ना, शत्-प्रतिशत।
है क्या कोई शक़ ?
तो फिर .. लगी शर्त्त !

मसलन ..
द्रौपदी लगी
जुए में दाँव,
हुई सीता की
अग्निपरीक्षा,
बीता यशोधरा का
एकाकी जीवन।

हैं आज भी
कैसे-कैसे
विचित्र सम्बन्ध,
जो दे जाते हैं
अक़्सर घाव अदृश्य,
कर के देखे-अनदेखे
कई-कई घात-प्रतिघात।