Thursday, December 28, 2023

पुंश्चली .. (२५) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)


प्रत्येक वृहष्पतिवार को यहाँ साझा होने वाली साप्ताहिक धारावाहिक बतकही- "पुंश्चली .. (१)" से "पुंश्चली .. (२४)" तक के बाद पुनः प्रस्तुत है, आपके समक्ष "पुंश्चली .. (२५) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" .. बस यूँ ही ...  :-

गतांक का आख़िरी अनुच्छेद :-

रेशमा - " हाँ तो .. और ये मकान मालिक होने का धौंस जमाना भी एक मूर्खतापूर्ण क़दम है चच्चा .. जबकि इस धरती पर रहने वाला हर इंसान एक किराएदार है .. चाहे वह पचास साल का हो .. सौ साल का हो .. पर है तो वो किराएदार ही .. बस .. उसकी आँखें जब कभी भी चिरनिंद्रा में मूँदी और वह उसी पल अपनी जायदाद से बेदख़ल हो जाता है .. फिर भी इतनी हेकड़ी ? .."

गतांक के आगे :-

ललन चच्चा को सम्बोधित करके बोली गयी रेशमा की बातों की अन्तिम पंक्ति भर ही सुन पाने के कारण ठीक अभी-अभी चाय की दुकान पर आया हुआ मुकेश रेशमा को सम्बोधित करते हुए ...

मुकेश - " कौन हेकड़ी दिखा रहा है भला .. हमारे रहते हुए ? जरा नाम तो बतलाओ उसका .. उसको नानी याद आ जायेगी .. "

ये बोलता-पूछता .. सब की ओर मुस्कुराहट बिखेरता हुआ .. मुकेश आदर भाव के साथ ललन चच्चा के घुटने स्पर्श करके उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट कर रहा है।

तभी ललन चच्चा .. जिनका मन अभी तक की रेशमा, मन्टू, चाँद और भूरा की बातों से कुछ-कुछ सकारात्मक हो गया है ; मुकेश के सिर पर अपनी दायीं हथेली हौले-हौले थपथपा के अपने अंदाज़ में शुभाशीष दे रहे हैं।

रेशमा - " आपके रहते किसकी हिम्मत है, जो मुहल्ले भर में कोई अपनी हेकड़ी दिखा सके ? " - मुकेश को सम्बोधित करते हुए ललन चच्चा के प्रति अपनी समानुभूति जतला कर - " चच्चा को घर खाली करने की 'नोटिस' मिली है .. वो भी एक महीने में .. सुखपाल चच्चा के घर में वर्षों से ये लोग रहते आ रहे हैं .. उन्हीं के घर में विशाखा जन्म ली है .. पली-बढ़ी है .. और आज अचानक से .. "

मुकेश - " तो .. क्या करना है चच्चा .. उनसे 'नोटिस' वापस लौटवा दें ? .. आप एक इशारा भर कीजिए ना .. "

ललन चच्चा - " ना .. ना .. ये सब कभी मत करना मुकेश .. अपने जीवन में दुनिया के दिए कुछ कष्ट, कुछ परेशानी भले ही झेल लो, पर इनके कारण अपने आचरण मत बिगाड़ो .. "

मुकेश - " ठीक है चच्चा .. जैसा आप बोलिएगा, वही करेंगे .."

ललन चच्चा - " सहायता ही करनी है तो .. एक खाली किराए का मकान खोजने में मेरी सहायता कर दो .. इस मुहल्ले में मिल जाए तो अति उत्तम .. नहीं तो .. कम से कम आसपास के इलाके में ही खोजने में मेरी सहायता कर दो .. तुम लोगों से दूर जाने का मन नहीं करता .. "

मन्टू - " हमलोग भी आपको दूर जाने देना नहीं चाहते .."

चाँद - " हम सब मिलकर दिन-रात एक कर देंगे .. पर आपको दूर नहीं जाने देंगे .."

इतने अपनापन भरे भरोसों से ललन चच्चा के चेहरे पर ख़ुशी के रंग-रोग़न की एक परत-सी चढ़ गयी है और उन्हें मुस्कुराता देख कर वहाँ उपस्थित सभी उनके चाहने वालों को भी अच्छे की अनुभूति हो रही है।

ललन चच्चा - " अपने जीवन का आधे से भी ज्यादा हिस्सा यहाँ .. इस मुहल्ले के इस घर में हमने गुजारे हैं। काम के सिलसिले में जब से इस शहर में आए थे, तब से यहीं के होकर रह गए हैं .. अब तो .. माँ-बाबू जी के गुजर जाने के बाद से तो .. अपने गाँव गए हुए .. लगता है एक लम्बा अरसा गुजर गया है .." - अब विशेष रूप से मुकेश को बोलते हुए - " पर तुम कोई ऐसा-वैसा क़दम मत उठाना मुकेश .. समझ रहे हो ना ? "

मुकेश - " अच्छी तरह समझ रहे हैं चच्चा .. अब .. आपकी बातों को हम से बेहतर भला कौन समझ सकता है ? .. आयँ ! .. आप ही की सीख के बदौलत आज मुकेश का ये रूप खड़ा है .. जो दो-चार पैसा कमा कर अपना और अपनी बीवी का पेट पाल रहा है, वर्ना .. हम किसी नाला में पड़े-पड़े सड़ रहे होते या जेल में सड़ रहे होते या .. नहीं तो .. किसी गाड़ी के नीचे आकर ऊपर उठ गए होते .."

ललन चच्चा - " अब वो सब दोहराने से क्या लाभ है ? .. बोलो ! .. बुरे दिनों को याद करके .. अपनी आज की ख़ुशी को क्यों बर्बाद करना ?.. "

मुकेश - " नहीं .. याद नहीं कर रहे चच्चा .. बस .. बतला रहे हैं कि .. अगर आप हमारी रोज दारू पीने वाली आदत को नहीं छुड़ाते तो .. शायद .. हम दारू की बाढ़ में ही बह गए होते .. "

ललन चच्चा - " दारू सस्ती हो या महँगी .. देसी हो या अंग्रेजी .. वो हमारे लिए विनाशकारी है .. वो हमारी आर्थिक स्थिति के साथ-साथ हमारी शारीरिक क्षमता ही नहीं .. हमारे अवचेतन मन को भी विनाशकारी मोड़ पर ले जाती है .. दारू के नशे में इंसान की अपनी ज़ुबान, अपना शरीर ही नहीं .. दिमाग़ भी अपने वश में नहीं रह पाता .. सबसे बड़ी बात कि .. वह अपना विवेक खो देता है .. "

चाँद - " क़दमों के साथ-साथ उसकी ज़िन्दगी भी डगमगाने लगती है .. "

भूरा - " परसों रात के वक्त मेरी बस्ती में पूरन पी के हल्ला-गुल्ला करता हुआ आया और अपनी दादी की दवाई खरीद कर घर लौट रही बस्ती की ही माला का दुपट्टा खींच कर उसे छेड़ने लगा .."

रेशमा - " अच्छा ! "

चाँद - " तुम्हारी बस्ती में तो रोज रात में किसी ना किसी नाना पाटेकर की 'मोनो एक्टिंग' चलती रहती है .. मने फोकट का सिनेमा .. "

ललन चच्चा और मन्टू को छोड़कर वहाँ उपस्थित सभी लोग चाँद की बात पर ठठाकर हँस रहे हैं। इन दोनों के नहीं हँस पाने का कारण है .. ललन चच्चा का अपने घर बदलने की चिन्ता के कारण और मन्टू .. रंजन के इस दुनिया से असमय चले जाने के दो सालों बाद भी अंजलि द्वारा कूड़ेदान में सुबह-सुबह फेंके गए कचरे में से मिले 'प्रेगनेंसी टेस्ट किट' के मिलने से ऊपजे तनावपूर्ण ऊहापोह के कारण .. 

भूरा - " हँसने वाली बात नहीं है मन्टू भईया .. हमको तो तरस आती है ऐसे लोगों पर .. मामला इतना बिगड़ गया कि .. अब क्या बोलें .. पूरन दारू के नशे की धुनकी में .. माला के अपने छेड़ने का विरोध करने पर उस के दुपट्टे में अपना नेटा छिड़क दिया .. माला को उबकाई-सी आ गयी .. वह दुपट्टा गली में फेंक कर रोती हुई भागी थी .."

मन्टू - " अरे .. अरे .. च् . च् . च् ! .. ये तो बहुत ही बुरा हुआ .. "

भूरा - " उसी भाग-दौड़ में उसकी दादी की दवाई नाले में गिर गयी .. रास्ते में जा रहे लोग पूरन को लात-घूँसे से जम कर पीटने लगे .. अधमरा-सा हो गया था .. वो तो मर ही जाता .. मगर बस्ती के कुछ भले लोगों ने उसका बीच-बचाव कर के उसकी जान बचायी .. उन लोगों ने पीटने वाले लोगों से कहा कि नशे में छेड़ दिया है .. होश में नहीं है ना .. इसीलिए .. छोड़ दिया जाए .."

मन्टू - " ये गलत बात है भूरा .. गलत सोचते हैं लोग कि नशे की हालत में गुनाह हो जाती है .. पर नहीं .. नशे में गलत क़दम उठते तो जरूर हैं, पर इतने भी नहीं कि एक इंसान दूसरे इंसान को ना पहचाने .. तुमने कभी किसी शराबी को नशे की हालत में अपनी बहन की सलवार के नाड़े या माँ की साड़ी खोलते देखा है कभी ? .. नहीं ना ? .. कभी उसे अपनी भाभी-चाची की कुर्ती में हाथ डालते देखा है ? .. नहीं ना ? .. मतलब ? .. इंसान बेहोश हो कर भी होश में रहता है .. समझे कि नहीं ? .."

रेशमा - " हम तो आज तक ये समझ नहीं पाए कि बेवड़ों की बीवियाँ रात में बेवड़ों के मुँह से आने वाली उबकाई उत्पन्न करती दुर्गंध को किस तरह झेल पाती होंगी ? "

चाँद - " ऐसे ही तो तम्बाकू खाने वालों और बीड़ी-सिगरेट पीने वालों की बीवियों को भी तो बर्दाश्त करना पड़ता होगा ना ? .. "

ललन चच्चा - " हम तो कहते हैं कि अगर अपने देश में सभी पत्नियाँ आर्थिक रूप से अपने पैर पर खड़ी हो जाएँ तो .. पश्चिमी देशों से भी ज्यादा हो जाएगी अपने देश में .. तलाक़ की संख्या .. मजबूरीवश अपने पति को झेलने वाली पत्नियों को हम प्रायः सुशील और भारतीय नारी कह-कह के झूठ-मूठ का महिमामंडन करते रहते हैं .. "

मुकेश - " अगर आप हमको बार-बार नहीं टोकते, प्यार से नहीं समझाते या हमको ज़बरन नशामुक्ति केन्द्र तक नहीं ले जाते .. समय-समय पर मेरे इलाज के लिए आर्थिक मदद नहीं करते, तो हम भी आज .. " 

आज बस .. इतना ही .. अब शेष बतकहियाँ .. आगामी वृहष्पतिवार को ..  "पुंश्चली .. (२६) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" में ... 】