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Wednesday, August 21, 2019

शाख़ से जुड़ा गुलाब

एक गुलाब पुष्पगुच्छों में बंधा
किसी वातानुकूलित सभागार के
सुसज्जित मंच के केंद्र में
एक क़ीमती मेज़ पर पड़े
किसी गुलदस्ते में था रखा

हिक़ारत भरी नज़रों से
घूरता दूर उस गुलाब को
जो था अब भी कड़ी धूप में
कई- कई काँटों के साथ ही
शाख़ों पर मायूसी से जकड़ा

सभा में आए ख़ास मंचासीन
और श्रोता सह दर्शक लोगबाग भी
बागों में कहाँ ... बस गुलदस्ते को ही
मन से निहार रहे थे...लिए हुए
उसे हाथ में पाने की लालसा
चुटकी के गिरफ़्त में ले
उस गुलाब को सूंघने की पिपासा

सभा ख़त्म हुई ... शाम गई
शाम बीती ... रात बीती ...
वातानुकूलित वातावरण में
कुम्हलाया गुलाब बेचारा
सिसक रहा था पड़ा अब
नगर-निगम के एक कूड़ेदान में
अगली सुबह ......

शाख़ से जुड़ा गुलाब
दूर वहीँ
अब भी था कड़ी धूप और
काँटो के बीच बस मौन खड़ा
सुगन्ध बिखेर रहा ..बस यूँ ही ...