Sunday, August 11, 2019

बस एक शर्त्त अपनी तुम हार जाओ ना !

बेटा !
शर्तें तो तुमने बचपन से ही अब तक है मुझसे सारी ही जीती ...
जिनमें कई शर्तें तो तुम सच में थे जीते और
कुछ शर्तों को जानबूझ कर था तुमसे मैं हारा
डगमगाते पैरों से जब तुम चलना सीख रहे थे तब
दौड़ने की शर्तें तुमसे मैं जानबूझ कर था हारता
केवल देखने की ख़ातिर चमक शर्त्त जीतने की 
मासूम चेहरे पर तुम्हारे
हर साल अपनी कक्षा में अव्वल आने की
तुम्हारी वो शर्तें सारी
साल-दर-साल अपने बलबूते तुमने ही जीता पर ...

बस ... आज एक शर्त मैं तुमसे जीतना हूँ चाहता
तुमने जो शर्त्त है लगाई कि 
"नाम के साथ जाति-धर्म सूचक उपनाम लगाना है ज़रूरी"
पर मेरा मानना है कि ये जरुरी है बिल्कुल नहीं
तुम कहते हो हमसे ये अक़्सर ...
"पापा ! जमाने में तो लगाते हैं सभी ना !? 
इतनी बड़ी दुनिया सारी तो मूर्ख नहीं ना !?"
क्योंकि कई परेशानियाँ तुमने है झेली
कई बार शिक्षकों ने तो कई-कई बार 
शिक्षण-संस्थानों के किरानियों ने 
चाहे वे प्रारम्भिक शिक्षा वाले थे
या फिर आई. आई. टी. का प्रांगण
कभी राह चलते अपरिचितों ने भी
केवल "शुभम्" नाम सुन कर मुँह है बिचकाया
ये बोल कर कि -" ये भी कोई पूरा नाम है क्या !?
ऐसा तो नाम नहीं है होता !!
कुछ तो उपनाम होगा धर्म-जाति सूचक !?"
पहली हवाई टिकट बनाते समय भी
नाम को लेकर आई थी परेशानी
पहली नौकरी वाली बहुराष्ट्रिय कम्पनी ने भी
था केवल "शुभम्" पर प्रश्न -चिन्ह लगाया
उपनाम को था अतिआवश्यक ठहराया
बारम्बार बात करके बात सुलझी थी
तुम्हारे इस समस्या को मंजिल मिली थी

बेटा !
हर बार जो दुनिया है कहती ..
जरुरी नहीं कि वह हो सही ही
सुकरात की जब तक साँस चली थी
तब तक तो ये पृथ्वी चिपटी ही रही थी
ज़हर पीने के वर्षों बाद पृथ्वी गोल हो गई
बचा नहीं पाये थे राजा राम अपनी भाभी को
जलती चिता के लौ पर जो जिन्दा जलती रहीं थी
पर आज कितनी भाभियाँ हैं महफ़ूज़ ये देख लो
फिर कैसा दुनिया से हार मानना
अपने लिए ना सही
अपनी अगली पीढ़ियों की ख़ातिर
कुछ सहना पड़े तो सह जाओ ना
बस एक शर्त्त तुम अपनी हार जाओ ना कि
"जाति-धर्म सूचक उपनाम जरूरी है हर नाम के साथ लगाना"

हाँ बेटा ! ...
अपनी भावी पीढ़ियों की ख़ातिर
तोड़ कर सारी अंधपरम्परायें
झेल कर कुछ परेशानियाँ
बस एक शर्त्त तुम अपनी हार जाओ ना ...
हाँ ... एक शर्त्त तुम अपनी हार जाओ ना ...


8 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (12-08-2019) को "बने ये दुनिया सबसे प्यारी " (चर्चा अंक- 3425) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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    1. जी ! आभार आपका अनीता जी ...

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १२ अगस्त २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. जी नमस्ते श्वेता जी! पांच लिंकों का आनंद के 12.08.19 के सोमवारीय विशेषांक में मेरा विचार ( मेरी रचना ) साझा करने के लिए आभार आपका ....

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  3. वाह, सच में ऐसी रचनाएं आपकी ही कलम से निकल सकती हैं। बहुत बढिया

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    1. आभार आपका ... रचना के मर्म तक पहुँचने के लिए ...

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  4. वाह!!!!
    यह भी खूब रही उपनाम (जाति धर्म) को हटाना जातिवाद से परे समानता का सूचक सिर्फ नाम....शर्त अच्छी है रचना लाजवाब...
    वाहवाह...

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    1. केवल रचना भर ही नहीं है महोदया, ये मेरे जीवन की सच्चाई है, अक्षरशः मेरी और मेरे बेटे के साथ घटी हुई घटनाएं हैं ... जो रचना में ढली है ...
      शुक्रिया आपके वाहवाही के लिए ...

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