Tuesday, July 16, 2024
बना तो कीर्तिमान् ...
Sunday, July 14, 2024
नर्म बुग्याल अकूत ...
Friday, July 12, 2024
हरकतों की हरारतों को ...
'एडिट' करना भी कभी,
'फोटोशॉप एक्सप्रेस' से
मन की बातों को।
सिखला दो ना जरा
'डिलीट' करना भी कभी,
मन की 'गैलरी' से
तुम्हारी यादों को।
सिखला दो ना जरा
'रीसायकल बिन' भरना भी कभी,
ताकी कर सकूँ दफ़न
तुम्हारी बीती रूमानी बातों को।
सिखला दो ना जरा
'एम्प्टी' करना भी कभी
'रीसायकल बिन', मिटा दे जो
तुम्हारे अर्थहीन वादों को।
सिखला दो ना जरा
'अनडू' करना भी कभी,
संग बीते लम्हों की
शरारती हरकतों को।
सिखला दो ना जरा
'सेव' करना भी कभी,
उन जवान पलों की
हरकतों की हरारतों को।
सिखला दो ना जरा
'मैट्रिमोनियल साइट्स' देखना भी कभी,
भरे असंख्य बेहतर विकल्पों से,
तोड़ के संग किए प्रेम-संकल्पों को .. बस यूँ ही ...
Monday, July 8, 2024
खूँटे की रस्सी .. बड़ी हो या छोटी ... (२)
गतांक वाली बतकही यानी "खूँटे की रस्सी .. बड़ी हो या छोटी ... (१)" में हम अवगत हुए, कि जब नेत्रहीन पर .. दृष्टीहीन नहीं, बधिर पर .. समस्त मानव के हृदय-स्पंदन को सुनने वाली तथा आंशिक मूक पर .. समस्त विश्व में अपनी रचनाओं .. अपने आंदोलनों और समाज में किए गए सकारात्मक परिवर्तनों के माध्यम से बोलने वाली एक महिला - हेलेन एडम्स केलर .. अपने वृहत् दृष्टिकोण से कई सामाजिक समस्याओं के लिए जमीनी अभियान चला कर विश्वस्तरीय बदलाव ला सकती हैं, तो .. ऐसे में हमलोग जैसे मौखिक मुहीम चलाने वाले लोगों को .. यानी स्वयं को .. जिनके पास आँख, कान और बोलने वाला मुँह भी है .. बौना महसूस करने में तनिक भी गुरेज़ नहीं करना चाहिए .. शायद ...
परन्तु .. हमें हमारी संतानों के रूप में अपनी भावी पीढ़ी को उनके पाठ्यक्रमों से इतर भी .. हेलेन एडम्स केलर और ऐनी सुलिवन मैसी जैसी विश्वस्तरीय महान विभूतियों के बारे में अवगत करानी चाहिए। बेशक़ .. विभिन्न शैक्षिक परीक्षाओं या प्रतियोगी परीक्षाओं को 'पास' करने हेतु विशिष्ट अंक प्राप्त करने भर के लिए नहीं, बल्कि उनमें एक वृहत् व विस्तृत दृष्टिकोण एवं उन्नत मानसिकता वाली सोचों की उत्पत्ति के लिए .. बस यूँ ही ...
अब आज के आख़िरी पृष्ठ में "खूँटे की रस्सी .. बड़ी हो या छोटी ... (२)" के शेष-विशेष अंश में कामवाली- पार्वती की मुसीबतों के बारे में उसी से जानते हैं और उनके समाधान अवश्यंभावी हो या ना हो, पर हमें उनकी तलाश के लिए अवश्य ही हर सम्भव कोशिश करनी चाहिए .. शायद ...
वैसे इस बतकही के प्रेरणास्रोत की बातें भी अभी बतकही के अन्त में हम अवश्य करेंगे, तो अब .. तब तक झेलते हैं इस बतकही को .. बस यूँ ही ...
खूँटे की रस्सी .. बड़ी हो या छोटी ... (२)
अभी दोपहर के लगभग दो-ढाई बजे काकोली घोष, सौम्या रावत, नैना सेमवाल और पार्वती .. सभी का जमावड़ा जम गया है नलिनी (अष्ठाना) आँटी के घर पर।
नलिनी - " क्या हुआ पार्वती ? आज तुम काम करने भी नहीं आयी। कैसी मुसीबत आ पड़ी है तुम पर ? "
पार्वती - " आपसे बतलाने में लाज आ रही है आँटी .. हिम्मत नहीं हो पा रही .. आपको बतलाने की .. "
नलिनी - " लज्जा करने से कैसे काम चलेगा पार्वती ? ऐसे में थोड़े ही ना मुसीबत टल जाएगी तुम्हारी .. आँ .. "
सौम्या - " ऐसे में हमलोगों के कामों का भी नुक़सान हो रहा है .. वो अलग है पार्वती .. "
पार्वती अपने झुके सिर को और भी दस-बीस डिग्री नीचे की ओर झुका कर .. कभी अपनी कर्ण कुण्डलिनी में अपनी तर्जनी को फिराती हुई, तो कभी कर्णफूल टँगी अपनी कर्ण पालि को तर्जनी व अँगूठे की मदद से नीचे की ओर तानती हुई .. अपनी आँखों में उमड़े आँसुओं के आवेग को रोकने का असफ़ल प्रयास कर रही है। फिर भी नलिनी आँटी के अतिथि कक्ष के 'मार्बल' वाले साफ़-सुथरे फ़र्श पर उसके आँसू की दो-चार टपकी बूँदों पर वहाँ उपस्थित, पार्वती के अलावा, सभी चारों लोगों की नज़र पड़ ही गयी है।
नलिनी - " पार्वती ! .. ऐसे सिर झुका कर रोने से कोई हल नहीं निकलने वाला। समझी ना ! .. मान लो .. अब अगर हमें 'पाइल्स' (बवासीर) या 'ल्यूकोरिआ' (श्वेत प्रदर) जैसी बीमारी हो जाएगी, तो .. उसकी चर्चा करनी .. हिचक या लज्जा करने जैसी कोई गलत या बुरी बात कैसे हो सकती है भला ! .. आयँ ! .. परिवार से, समाज से या डॉक्टर से साझा करने के बजाए उसको बुरी बातें कह के हिचक या शर्म से मौन रहने पर तो .. वो बीमारी या कोई भी मुसीबत .. और भी ज्यादा जानलेवा हो सकती है .. नहीं क्या ? .. बोलो ! .. "
पार्वती के प्रतिवचन सुनने के लिए कुछ पल के लिए कमरे में मानो एक चुप्पी व्याप्त हो गयी है। सब के सब निःशब्द .. पार्वती भी .. तभी ऐसे में ..,.
नलिनी - " अब बोलो भी पार्वती .. "
अब बमुश्किल पार्वती के होंठ हिले हैं .. लगभग रुआँसा होकर ..
पार्वती - " ऐसे तो आँटी .. वो (उसका धर्मपति) तो रोज रात में देशी दारू के नशे में धुत् हो कर घर आता है और .. कई रोज़ मेरी मर्ज़ी ना रहते हुए भी बिस्तर पर जैसे-जैसे उसका मन करता है, वैसे-वैसे जहाँ-तहाँ .. इधर-उधर .. जैसे-तैसे मेरे देह को नोचता-भंभोरता है आँटी .. उसके मुँह से आने वाले दारु के साथ-साथ खैनी और बीड़ी के बास को भी अपनी साँसें रोके-रोके .. पर जब अपना दम घुटने लगता है ना .. तब .. तब उस बास को बर्दाश्त करके .. उसी बास में गहरी साँस भी लेनी ही पड़ जाती है .. उसके फारिग होने तक .. पर ... "
काकोली - " तो ? .. इसमें ऐसी कौन सी नई बात हो गयी ? मर्द लोग तो ये सब खाते-पीते ही है ना ! .. अन्तर बस्स ! .. इतना ही है, कि तुम दारु, खैनी और बीड़ी के दुर्गन्धों को झेलती हो और हमारे जैसे लोग अंग्रेजी शराब, गुटखे और सिगरेट के .. "
पार्वती - " उतना तो हम भी समझते और .. बर्दाश्त भी करते हैं दीदी .. पर .. ख़ैर है, कि नशे में वो जल्दी ही फारिग हो जाता है। पर .. कल रात मुआ ना जाने कौन सा कैप्सूल निगल कर .. उसे का (क्या) कहते हैं .. बिगरा .. "
काकोली - " पगली ! .. बिगरा नहीं .. वियाग्रा कहते हैं उसको .. "
पार्वती - " हाँ - हाँ .. वही .. खा कर कल रात .. देर तक अपनी आदतों और इच्छानुसार जहाँ-तहाँ भंभोरता रहा मेरे देह को और .. सुबह उठी तो .. सुबह .. 'पॉटी' करने में दर्द सहा नहीं जा रहा था .. बहुत चीख़ी, तड़पी .. पर मेरी वहाँ सुनता ही कौन भला ? .. "
काकोली - " ओह ! .. "
पार्वती - " मुँह में तो पहले से ही छाले हैं .. जब भी थोड़ा ठीक होता है, फिर से वही सब करता है मुँह में भी .. फिर से छाला बढ़ जाता है .. वो सब करने के समय मुँह और भी ज्यादा छन्छनाता है आँटी .. नहीं करो या करने दो तो .. जानवरों की तरह मारता-पीटता है .."
नलिनी - " ओह ! .. .. कोई बात नहीं .. मुँह के छाले के बारे में तो तुम पहले बतलायी ही थी। पर .. उसकी वजह नहीं। मैं समझ रही थी, कि पेट की गर्मी से .. ख़ैर ! उस की दवा तो तुम पहले से ही .. ले ही रही हो ना ? "
पार्वती - " हाँ .. आँटी खा रही है और .. लगा भी रही हूँ। नैना दीदी को तो .. सब कुछ पहले से पता है। उनसे हमेशा सब बतलाती है हम। उनसे कुछ भी नहीं छुपाती, पर .. आपसे बोलने में ... "
नलिनी - " ख़ैर ! .. कोई बात नहीं .. 'बाथरूम' के वक्त जो दर्द हो रहा है ना .. मेरे पास कुछ 'जेली' और 'क्रीम' हैं .. ले जाओ .. जहाँ दर्द हो रहा है, वहाँ लगाओ .. तुमको बहुत ही आराम मिलेगा .. "
पार्वती - " आपको भी इसकी जरूरत .. .. "
नलिनी - " अब ये मत पूछो .. बस दवाएँ ले जाओ। मैं नया खरीद लाऊँगी। "
सौम्या - " ये कौन सी दवा हैं ?"
नलिनी - " एक तो 'नार्मल' 'पेट्रोलियम जेली' है, जो 'मॉइस्चराइज' करता है और दूसरा 'जिंक ऑक्साइड' वाला "डेसिटिन" है, जो 'रैश' यानी खरोंच को भरता है। साथ में 'लिडोकेन' युक्त सुन्न करने वाली 'क्रीम'- "प्रिपरेशन एच" जो .. मल त्याग के दौरान घायल अंग को सुन्न करके उस के जलन और दर्द से अस्थायी तौर पर राहत दिलाता है .. "
सौम्या - " ओ ! .. अच्छा ! .. "
नलिनी - " इसके लिए 'प्रिस्क्रिप्शन' की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है। "डिटॉल", 'कंडोम' और 'सैनिटरी नैपकिन' की तरह ही .. ये सब एक 'ओ टी सी प्रोडक्ट्स' हैं। "
नैना - " ओ टी सी ... ? "
काकोली - "ओ टी सी यानी 'ओवर-द-काउंटर प्रोडक्ट्स' .. जिनके लिए 'डॉक्टर' के 'प्रिस्क्रिप्शन' की आवश्यकता या अनिवार्यता नहीं होती है। "
नलिनी - " जानती हो .. नारी देह के प्रकृत्ति प्रदत सारे विवर जब .. आवश्यकता की जगह विवशता का रूप ले लेते हैं, तो .. किसी भी जन्मदात्री की जन्नत-सी लगने वाली ज़िंदगी जहन्नुम में तब्दील हो जाती है। "
काकोली - " सात फेरे, सात जन्मों की हम लाख बातें कर लें, पर मर्ज़ी तो .... (?) .. ख़ैर ! .. ज्यादा क्या बोलना .. भारतीय वैवाहिक जीवन सैद्धांतिक या धार्मिक रूप से जैसा भी जान पड़ता हो, मगर वास्तव में है तो .. लगभग कई सारे समझौतों का संविधान भर ही .. "
नलिनी - " महिला-पुरुष की समानता अख़बारों और टी वी के न्यूज़ चैनलों के अलावा नारी विमर्श वाले मंचों पर तो बख़ूबी दिखता है, पर कितनी समानता है, ये तो .. वो औरत ही जानती व समझती है, जिसे अपने तथाकथित घर की चहारदीवारी के पीछे अपने ही 'बेडरूम' में वो सब झेल कर ही / भी रहना पड़ता है। "
पार्वती अपनी चारों मालकिनों की उसके पल्ले ना पड़ने वाली आपसी बातें बस चुपचाप टुकुर-टुकुर देखते (?) हुए .. वहाँ से बच निकलने की जुगत में नलिनी जी को सम्बोधित करते हुए ..
पार्वती - " आपलोगों के लिए चाय बना दें आँटी .. "
नैना - " अरे ! .. नेकी और पूछ-पूछ .. जल्दी ले आओ .. पर हाँ .. अदरख़ डालना मत भूलना .. "
पार्वती फ़ौरन नलिनी जी के रसोईघर की ओर लपक ली है।
पार्वती के जाते ही .. लगभग फुसफुसाते हुए ...
सौम्या - " छोटे लोगों में तो .. ये सब चलता है आँटी .. "
काकोली - " नहीं .. ऐसा नहीं है .. छोटे लोग और बड़े लोगों की बात नहीं है। चलता तो सब में है .. बस .. उनके संज्ञा बदल जाते हैं .. उनकी व्याख्या और व्याख्यान बदल जाते हैं .. बस्स .. "
नलिनी - " रात के अँधियारे में या बियाबान जैसे एकान्त में .. बिस्तर पर नारी का सान्निध्य मिलते ही हर पुरुष .. केवल और केवल पुरुष रह जाता है .. तब वह कोई .. वक़ील-जज, टीचर-प्रोफेसर, चपरासी-अफ़सर, डॉक्टर-इंजीनियर, मंत्री-व्यापारी या मज़दूर-मिस्त्री नहीं रह जाता / पाता है .. केवल और केवल विशुद्ध पुरुष होता है .. अपनी-अपनी पौरुष क्षमता और काम-क्रीड़ा सम्बंधित अर्जित ज्ञान के अनुरूप .. मैं .. गलत तो .. नहीं बोल रही हूँ ना ? .. "
काकोली - " ना .. ना-ना .. ये भी सही है आँटी .. "
नलिनी - " हमारी धरती पर .. सभी के अपने-अपने क्षेत्र या समाज के अनुसार .. नारीवाद की अपनी-अपनी अलग-अलग परिभाषा है और हम हैं, कि विश्व पटल पर एक ही ढर्रे पर नारी विमर्श की बातें कर-कर के समझ रहें हैं, कि हम समाधान तलाश रहे हैं जैसे ... " - आगे उपस्थित समस्त महिला मंडली की मूक मुख-प्रतिक्रिया को निहारते हुए - " अगर हम हिमालय के आसपास वाले क्षेत्रों से धरती का अवलोकन करें, तो हिमाच्छादित पर्वत की चोटियाँ ही नज़र आएगीं ना ? पर .. इसका मतलब ये तो नहीं, कि धरती पर कहीं भी ज्वालामुखी है ही नहीं .. हमारा समाज भी इसी धरती पर रचा-बसा तो है ही और .. है भी इसी धरती की तरह .. कहीं ज्वालामुखी तो .. कहीं बर्फ़ .. "
नैना - " वो तो है आँटी .. पर हम बचाव के लिए इसकी शिकायत पुलिस से तो कर ही सकते हैं ना ? .. "
नलिनी - " नहीं कर सकते नैना .. 'आईपीसी' की धारा 375 ए, बी, सी और डी के बाद नीचे अपवाद में लिखा हुआ है, कि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी, जिसकी उम्र पंद्रह वर्ष से कम न हो, के साथ किया गया कोई भी यौन संबंध या यौन क्रिया; जिनमें पत्नी के योनि, गुदा या मुँह में अपना उत्तेजित लिंग स्खलन तक डालना बलात्कार नहीं है। उसकी मर्ज़ी से या .. या बिना उसकी मर्ज़ी के ... "
नैना - " आईपीसी .. ? "
काकोली - " 'आईपीसी' मतलब .. 'इंडियन पेनल कोड' यानी भारतीय दंड संहिता .."
नैना - " ओ ! .. "
नलिनी - " अब इसी साल (2024) एक जुलाई से इसे भारतीय न्याय संहिता यानी 'आई पी सी' की जगह 'बी एन एस' का नाम दिया गया है और धारा 375 अब .. धारा 63 हो गया है। "
सौम्या - " ओ ! .. अच्छा ! .. "
नलिनी - " अब चूँकि वैवाहिक बलात्कार को अभी तक कानून द्वारा मान्यता नहीं दी गई है, इसीलिए वो सारे अप्राकृतिक अपराध जो सामान्य रूप से आईपीसी की धारा 375 के दायरे में आते हैं, यदि यह पति और उसकी धर्मपत्नी के बीच हुआ है, तो उसे 'आईपीसी' की धारा 375 या 'बी एन एस' की धारा 63 के तहत बलात्कार के अपराध के बराबर नहीं माना जाता है। ऐसे में उपरोक्त घिनौने व अप्राकृतिक कृत्यों जैसे किसी भी यौन क्रिया के लिए पत्नी की सहमति या असहमति का भी .. कोई भी औचित्य नहीं रह पाता / जाता है। "
काकोली - " कम-से-कम "सहमति" वाली बात को तो .. इस धारा में संशोधन कर के निश्चित रूप से जोड़ी ही जानी चाहिए ना ? .. "
सौम्या - " हाँ .. सच में ऐसा ही होना चाहिए .. क्योंकि दोनों की समान रूचि के अनुसार सहमति से अगर जो कुछ भी होता है .. प्राकृतिक या अप्राकृतिक .. दोनों को ही अच्छा लगता है, तब तो ठीक है; पर .. वर्तमान में उपलब्ध धारा के अपवाद के अनुसार रूचि या सहमति ना रहने पर भी जबरन की गयी किसी भी उत्पीड़न के लिए .. किसी से भी शिकायत नहीं की जा सकती है .. है ना ? .. " - सौम्या अपनी लटों को झटकाते हुए आगे और भी आवेश के साथ बोल रही है - " और वो भी .. 'आई पी सी' की धारा 375 या आज की 'बी एन एस' की धारा 63 के अपवादों में बिना संशोधन के ? .. "
नलिनी - " दरअसल हम उसी समाज के अंग या अंश हैं, जिस समाज में गाय को माँ का दर्जा भी देते हैं और खूँटे से बाँध कर भी रखते हैं। उसके बछड़े के हिस्से के दूध को हड़प कर हम अपनी भावी पीढ़ी को पाठ भी पढ़ाते हैं, कि गाय दूध देती है। यही हम अपने पुरखों से भी सुनते-सीखते आये हैं। जबकि गाय बेचारी दूध देती तो है, पर अपने बछड़े के लिए .."
सौम्या - " हाँ .. सो तो है .. "
नलिनी - " अब गाय के खूँटे की रस्सी .. बड़ी हो या छोटी .. है तो बन्धन ही ना ? .. खूँटे से मुक्ति पाकर ही कोई / कोई-कोई अमृता प्रितम या महादेवी वर्मा बन पाती / जाती हैं। "
तभी पार्वती एक 'ट्रे' में चार 'कप' अदरख़ वाली चाय ले कर आ गयी है। उसके बाद सभी मिलकर अब आगे भी गपशप के साथ चाय पीने में व्यस्त हो गयीं हैं। पास ही बैठी पार्वती भी एक गिलास में अपनी चाय सुरक रही है।
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प्रेरणास्रोत की बातें :-
ये बतकही (कहानी) एक मनगढ़न्त कहानी भले ही हो या है भी, पर .. ये मुद्दा या विषय मनगढ़न्त नहीं है। दरअसल इसकी प्रेरणा 'आई पी सी' की धारा 375 या 01 जुलाई 2024 के दिन से आज की 'बी एन एस' की धारा 63 के दूसरे अपवाद को पढ़ कर मिली। वस्तुतः उन्हें पढ़ कर मन विचलित हो गया और तत्क्षण एक काल्पनिक .. पर इसे पूरी तरह काल्पनिक भी नहीं कह सकते .. कहानी/घटना दिमाग़ में कौंधी, कि .. अगर जिस किसी भी समाज या समुदाय में महिलाओं की इच्छा के विरुद्ध भी ऐसी घटनाएँ घटित होती होंगी .. जिनकी शब्दातीत पीड़ा उनके मन में ही घुट कर रह जाती होंगी और .. परन्तु हम औपचारिक खोखला नारी विमर्श कर-कर के महिलाओं की पीड़ा की इतिश्री समझ ले रहे हैं .. शायद ...
हम आने वाले कल में .. चाँद और मंगल पर जो बस्तियाँ बसाने जा रहे हैं, क्या .. वहाँ भी एक पुरुष प्रधान समाज वाली ही बस्ती बसेगी, जहाँ महिलाओं की इच्छाओं का सम्मान, मूल्य या मूल्यांकन नहीं होगा ?
आपकी सुविधा के लिए वर्त्तमान 'बी एन एस' की धारा 63 की अक्षरशः प्रतिलिपि उसके अपवाद सहित, जो 'आई पी सी' की धारा 375 के ही समकक्ष है, यहाँ चिपका रहा हूँ .. बस यूँ ही ...
बलात्कार को परिभाषित करती 'आई पी सी' की धारा 375 यानी वर्त्तमान में 'बी एन एस' की धारा 63 और उसके दोनों अपवाद :-
【 " एक आदमी को "बलात्कार" करने वाला कहा जाता है यदि वह-
(क) किसी भी सीमा तक अपने लिंग को किसी महिला की योनि, मुँह, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश कराता है या उसे अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए मजबूर करता है; या
(ख) किसी भी सीमा तक किसी वस्तु या शरीर के किसी भाग को, जो लिंग नहीं है, किसी स्त्री की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रविष्ट कराता है या उससे या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने को कहता है; या
(ग) किसी स्त्री के शरीर के किसी भाग को इस प्रकार प्रभावित करेगा कि उसकी योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या शरीर के किसी भाग में प्रवेश हो जाए या उससे अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा कराए; या
(घ) निम्नलिखित सात में से किसी भी प्रकार की परिस्थिति में किसी स्त्री की योनि, गुदा, मूत्रमार्ग पर अपना मुँह लगाता है या उसे अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए कहता है :-
(i) उसकी इच्छा के विरुद्ध;
(ii) उसकी सहमति के बिना;
(iii) उसकी सहमति से, जब उसकी सहमति उसे या किसी ऐसे व्यक्ति को, जिससे वह हितबद्ध है, मृत्यु या क्षति का भय दिखाकर प्राप्त की गई हो;
(iv) उसकी सहमति से, जब पुरुष जानता है कि वह उसका पति नहीं है और उसकी सहमति इसलिए दी गई है क्योंकि वह मानती है कि वह कोई दूसरा पुरुष है जिसके साथ वह विधिपूर्वक विवाहित है या होने का विश्वास करती है;
(v) उसकी सहमति से, जब ऐसी सहमति देते समय, वह मानसिक विकृति या नशे के कारण या उसके द्वारा व्यक्तिगत रूप से या किसी अन्य के माध्यम से किसी नशीले या अस्वास्थ्यकर पदार्थ के सेवन के कारण, उस पदार्थ की प्रकृति और परिणामों को समझने में असमर्थ हो, जिसके लिए वह सहमति दे रही है;
(vi) उसकी सहमति से या उसके बिना, जब वह अठारह वर्ष से कम आयु की हो;
(vii) जब वह सहमति व्यक्त करने में असमर्थ हो।
स्पष्टीकरण 1.- इस धारा के प्रयोजनों के लिए, "योनि" में लघुभगोष्ठ भी सम्मिलित होंगे।
स्पष्टीकरण 2.-सहमति से स्पष्ट स्वैच्छिक समझौता अभिप्रेत है, जब महिला शब्दों, इशारों या किसी भी प्रकार के मौखिक या गैर-मौखिक संचार द्वारा, विशिष्ट यौन क्रिया में भाग लेने की इच्छा व्यक्त करती है:
परन्तु यह कि यदि कोई महिला प्रवेशन के कार्य का शारीरिक रूप से प्रतिरोध नहीं करती है तो केवल इस तथ्य के आधार पर उसे यौन क्रियाकलाप के लिए सहमति देने वाली नहीं माना जाएगा।
अपवाद 1.- कोई चिकित्सीय प्रक्रिया या हस्तक्षेप बलात्कार नहीं माना जाएगा।
अपवाद 2.- किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ, जबकि पत्नी अठारह वर्ष से कम आयु की न हो, संभोग या अन्य अप्राकृतिक यौन कृत्य (अपने लिंग को पत्नी की योनि, मुँह, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश करना) बलात्कार नहीं है। " 】
अन्त में एक प्रश्न :-
लब्बोलुआब यही है, कि पति द्वारा कानूनी रूप से अपनी विवाहित धर्मपत्नी के साथ, उसकी इच्छा या सहमति के विरुद्ध भी, अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना 'आईपीसी' की धारा 375 यानी 'बी एन एस' की धारा 63 के तहत अपराध नहीं है।
मतलब .. हर भारतीय पुरुष को अपनी विवाहित धर्मपत्नी को उसकी इच्छाओं के विरुद्ध भी भरपूर रौंदने के लिए कानून का अनुचित संरक्षण प्राप्त है।
पति रूपी पुरुष को मिला यह अनुचित अधिकार .. पत्नी रूपी महिला को एक बंधुआ मजदूरिन या .. ठेठ में कहें, तो .. एक यौन कर्मी की श्रेणी में लाकर खड़ा नहीं कर देता है क्या ???
Sunday, July 7, 2024
विधुर विलाप ...
विधवा विलाप करने वाले,
हत्या निर्दोषों की बताने वाले,
बतकही हमारे जैसे कहने वाले,
ढोंगी बाबाओं को दोषी ठहराने वाले ...
दोषी तो निर्दोष ही सारे,
बाबा ढोंगी को बनाने वाले,
महात्मा पतित को जताने वाले,
बिना कर्म चाह फल की रखने वाले ,
अंधविश्वास, अंधभक्ति अपनाने वाले ...
काका हाथरसी आज होते
जो हास्य कविता सुनाने वाले,
पढ़ कविता यमदूत* भगाने वाले,
बोर कर बाबा फक्कड़* को मारने वाले,
हाथरस में थे बाबा कब फिर बचने वाले ? ...
बाबाओं के हों जितने रेले
या विज्ञापनों के जितने भी मेले,
संग बाला-नारियों के ही होते खेलें,
मरती भी हैं वही, जब हो भगदड़ के झमेले,
आओ तब विधवा विलाप नहीं, विधुर विलाप रो लें ..
.. बस यूँ ही ...
【 * = उपरोक्त बतकही में काका हाथरसी जी (प्रभुलाल गर्ग) से सम्बन्धित दूत* और फक्कड़* वाली बात उनकी हास्य कविता "अद्भुत औषधि" से प्रेरित है। संदर्भवश उनकी कविता की अक्षरशः प्रतिलिपि निम्नलिखित है :-
अद्भुत औषधि
कवि लक्कड़ जी हो गए, अकस्मात बीमार ।
बिगड़ गई हालत मचा, घर में हाहाकार ।।
घर में हाहाकार , डॉक्टर ने बतलाया ।
दो घंटे में छूट जाएगी , इनकी काया ।।
पत्नी रोई – ऐसी कोई सुई लगा दो ।
मेरा बेटा आए तब तक इन्हे बचा दो ।।
मना कर गये डॉक्टर , हालत हुई विचित्र ।
फक्कड़ बाबा आ गये , लक्कड़ जी के मित्र ।।
लक्कड़ जी के मित्र , करो मत कोई चिंता ।
दो घंटे क्या , दस घंटे तक रख लें जिंदा ।।
सबको बाहर किया , हो गया कमरा खाली ।
बाबा जी ने अंदर से चटखनी लगा ली ।।
फक्कड़ जी कहने लगे – “अहो काव्य के ढेर ।
हमें छोड़ तुम जा रहे , यह कैसा अंधेर ?
यह कैसा अंधेर , तरस मित्रों पर खाओ ।
श्रीमुख से कविता दो चार सुनाते जाओ ।।”
यह सुनकर लक्कड़ जी पर छाई खुशहाली ।
तकिया के नीचे से काव्य किताब निकाली ।।
कविता पढ़ने लग गए , भाग गए यमदूत ।
सुबह पाँच की ट्रेन से , आये कवि के पूत ।।
आये कवि के पूत , न थी जीवन की आशा ।
पहुँचे कमरे में तो देखा अजब तमाशा ।।
कविता पाठ कर रहे थे , कविवर लक्कड़ जी ।
होकर बोर, मर गये थे बाबा फक्कड़ जी ।। 】
Thursday, July 4, 2024
शब्दातीत चीख पीड़ाओं की ...
या भीतर कहीं सजावटी सामान की तरह,
संभ्रांत अतिथि कक्षों, आलीशान मॉलों में,
हवाईअड्डे, बार-रेस्टोरेंटों या पाँच सितारा होटलों में
हैं मूर्तियाँ तुम्हारी खड़ी-बैठी ध्यानमुद्राओं में, जिन्हें
देख के सच्ची-मुच्ची .. बहुत ही कष्ट होता है .. बस यूँ ही ...
दुष्प्रभाव से मद्यपान के क्षरित हों या ना हों,
मानव वृक्क-हृदय .. सारे के सारे तन हमारे,
मादकता में मदिरा की भले ही हो या ना हो,
बुद्धि शिथिल व्यसनी जन की, तो भी .. उससे
पहले .. सच्ची-मुच्ची विवेक तो भ्रष्ट होता है, जिन्हें
देख के सच्ची-मुच्ची .. बहुत ही कष्ट होता है .. बस यूँ ही ...
मदिरा है प्रतिष्ठा का प्रतीक इस सभ्य समाज में
बुद्धिजीवियों के बीच, है अनोखी सीख इनकी,
कबाबों .. चिकेन जैसे चखनों में दिखती ही नहीं,
सनी सजीवों की शब्दातीत चीख पीड़ाओं की, पर ..
ऐसे में .. सच्ची-मुच्ची संस्कार तो नष्ट होता है।
देख के सच्ची-मुच्ची .. बहुत ही कष्ट होता है .. बस यूँ ही ...
पीपल तले, शुद्ध प्राणवायु में तुम रमने वाले,
उनकी तो ना सही, पर धुएँ में धूम्रपान के उनके,
घुटते ही होंगे दम तो अवश्य ही तुम्हारे ..
हुँकारों से धर्मों-सम्प्रदायों के, हर्षित हैं वो सारे, पर परे
इससे .. सच्ची-मुच्ची मानव मन त्रस्त होता है।
देख के सच्ची-मुच्ची .. बहुत ही कष्ट होता है .. बस यूँ ही ...
{ महान रचनाकार हरिवंश राय बच्चन जी की कालजयी रचनाओं में से एक - "बुद्ध और नाचघर" को पढ़ने का तो नहीं, परन्तु लगभग सत्तर-अस्सी के दशक वाले वर्षों में एक चमत्कार की तरह अवतरित व प्रचलित उपकरण - टेप रिकॉर्डर और कॉम्पैक्ट कैसेट यानी ऑडियो कैसेट या टेप के सौजन्य से उन्हीं के सुपुत्र अमिताभ बच्चन की आवाज़ में सुनने का मौका अवश्य मिल पाया था। उन्हीं दौर में उपरोक्त उपकरण से ही मन्ना डे जी की मधुर आवाज़ में हरिवंश राय बच्चन जी की ही एक और दर्शन से भरी कालजयी रचना "मधुशाला" को भी सुनने का सुअवसर प्राप्त हुआ था।
तब भी पहली बार एवं तत्पश्चात् बारम्बार सुनने पर उपरोक्त दोनों रचनाओं ने मन पर गहरी छाप छोड़ी थी और आज भी बुद्ध की प्रतिमाओं के अनुचित स्थानों पर अनुचित प्रयोग किए जाने वाले दृश्यों को देखते ही .. संवेदनशील मन व्यथित व विचलित हो जाता है और .. स्वतःस्फूर्त कुछ बतकही फूट ही पड़ती है। }
Thursday, June 27, 2024
खूँटे की रस्सी .. बड़ी हो या छोटी ... (१)
आज ही के दिन अर्थात् 27 जून को सन् 1880 ईस्वी में हेलेन एडम्स केलर नामक तत्कालीन भावी अमेरिकी अधिवक्ता, व्याख्याता, प्रभावशाली लेखिका, राजनीतिक कार्यकर्ता और वास्तविक विश्वस्तरीय जनकल्याण करने वाली समाजसेविका का जन्म हुआ था .. जो बचपन में ही एक अज्ञात असाध्य रोग से ग्रसित होने के कारण एक ही साथ अँधी, बहरी और आंशिक गूँगी हो गयीं थीं और वैसी ही जीवनपर्यंत बनी रहीं।
परन्तु वह बोस्टन के पर्किन्स स्कूल फॉर द ब्लाइंड जैसी शिक्षण संस्थान और ऐनी मैन्सफील्ड सुलिवन मैसी जैसी आंशिक रूप से नेत्रहीन प्रशिक्षिका, जिन्हें उनका आजीवन सहयोगी भी बोला जाता है, के सहयोग से और उनके मार्गदर्शन में कला स्नातक की उपाधि पाने वाली विश्व की प्रथम मूक, बधिर और दृष्टिहीन महिला बनी थीं।
वह तत्कालीन अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन 'पार्टी' की सदस्या के रूप में अमेरिका के साथ-साथ और भी अन्य देशों के श्रमिकों व महिलाओं के मताधिकार और श्रम अधिकारों के समर्थन में आंदोलन छेड़ने के अलावा तत्कालीन कई कट्टरपंथी शक्तियों के विरोध में भी सतत अभियान चलाती रहीं थीं। उस जमाने में भी वह जनसंख्या नियंत्रण जैसे विषय पर आवाज़ उठायीं थीं। वह विकलांगों के लिए यथोचित शिक्षा की व्यवस्था के साथ-साथ उनके अन्य मूलभूत अधिकारों के लिए भी ताउम्र आन्दोलन करती रहीं थीं। यूँ तो वह कई सकारात्मक पहलूओं की आन्दोलनकारी रहीं, पर संघर्षपूर्ण हिंसक क्रांति का समर्थन कभी भी नहीं करती थीं। एक संवेदनशील लेखिका होने के नाते उनकी अधिकांश रचनाएँ प्रायः युद्ध विरोधी ही हुआ करती थीं।
हम अक़्सर पाते हैं, कि बड़ी सोचें हमेशा विस्तृत व विराट होती हैं, जो .. जाति-धर्म, दल-गुट, रंग-नस्ल, कद-काठी, नयन-नक़्श, भाषा-पहनावा, पुरुष-नारी, मुहल्ला-जिला, राज्य-देश जैसे विषयों की सीमा से परे .. बंधनमुक्त होकर विश्व के समस्त मानव जाति के लिए एक समान सोचतीं हैं।
ऐसी ही सोचों वाली हेलेन एडम्स केलर हमेशा इस बात को प्रमुखता देती रहीं, कि इस महान दुनिया में हर जगह घर जैसा महसूस करने का अधिकार सभी को मिलना चाहिए। उन्होंने महिलाओं और विकलांगों के यथोचित अधिकारों के लिए कई-कई बार विश्व भ्रमण किया था। विश्व भ्रमण के दौरान विकलांग व्यक्तियों के प्रति समाज के बीच एक सहानुभूतिपूर्ण या .. यूँ कहें कि .. समानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण बनाने के प्रयास के साथ ही दानस्वरूप मिले एकत्रित करोड़ों रुपयों से विकलांगो के लिए, विशेष कर नेत्रहीनों के लिए अनेक संस्थानों का निर्माण भी करवाया था।
वे ब्रेल लिपि में कई मौलिक ग्रंथ लिखी थीं और उन्होंने कई अन्य पुस्तकों का अनुवाद भी किया था। उनकी लिखी आत्मकथा "द स्टोरी ऑफ माई लाइफ" विश्व की लगभग पचास भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है।
लब्बोलुआब ये है, कि जिस तरह अपनी वाक्पटुता और अथक सक्रियता के समर्पण से अपने समस्त जीवन की ऊर्जा असंख्य मानवीय कार्यों के लिए वह न्योछावर करती रहीं, तो .. ये कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी, कि सुनने, देखने और बोलने की क्षमता से वंचित, परन्तु .. सूँघने, चखने एवं स्पर्श की शक्ति से सिंचित .. नेत्रहीन होते हुए भी एक विलक्षण नज़रिया वाली वह विश्व का आठवाँ आश्चर्य ही थीं।
कहते हैं, कि इन्हीं केलर और ऐनी की ही जीवनी से प्रेरित होकर सन् 1962 ईस्वी में "द मिरेकल वर्कर" नामक अमेरिकी फ़िल्म बनी थी। वर्तमान 'सोशल मीडिया' में प्रचलित निर्लज्ज 'कॉपी & पेस्ट' वाली प्रवृति की तरह ही भारतीय सिनेमा जगत में भी धड़ल्ले से की जाने वाली 'कॉपी & पेस्ट' की चर्चा .. जैसाकि पहले भी हम कर चुके हैं, तो .. उस "द मिरेकल वर्कर" की कथानक में कुछ-कुछ फेर-बदल कर के अपने यहाँ "ब्लैक" नामक फ़िल्म सन् 2005 ईस्वी में संजय लीला भंसाली द्वारा बनायी गयी थी। सर्वविदित है कि उसमें अमिताभ बच्चन और रानी मुख़र्जी ने अभिनय किया था।
उन्हीं हेलेन एडम्स केलर जैसी महान विभूति की सोचों के अवलोकन से प्रेरित होकर .. आज भी हमारे समाज के इर्द-गिर्द कई या कुछेक नारियों की एक अनछुई-सी .. अनबोली-सी .. अनसुनी-सी और .. अनदेखी की गयी पारिवारिक-सामाजिक समस्या को छूने का एक तुच्छ प्रयास भर है हमारा .. हमारी आज की निम्नलिखित बतकही (कहानी) में ...
खूँटे की रस्सी .. बड़ी हो या छोटी ... (१) :-
" हेलो ! .. काकोली .. अभी सुबह पार्वती तुम्हारे घर आयी थी क्या ? "
" नहीं तो 'आँटी' .. मेरे यहाँ भी तो .. आज नहीं आयी है। उसका मोबाइल भी 'स्विच ऑफ' आ रहा है। सौम्या भाभी से पता करना पड़ेगा .. "
" मेरे यहाँ भी नहीं आयी। इतना दिन निकल आया। अब तो साढ़े ग्यारह बजने वाला है। दरअसल सुबह-सुबह सबसे पहले तो तुम्हारे घर ही आती है ना .. फिर सौम्या के पास से नैना के घर का काम करते हुए ही हमारे पास आती है। इसीलिए सबसे पहले तुम्हीं को फोन लगायी .. अब सौम्या से पूछती हूँ और फिर नैना से भी .. "
" हाँ 'आँटी' .. पर .. अगर आप कहें, तो सौम्या भाभी और नैना दीदी को मैं 'लाइन' पर ही ले लेती हूँ। "
" हाँ.. यही ठीक रहेगा .. और .. तुम्हारे घोष बाबू चले गए 'ड्यूटी' पर ? "
" हाँ, हाँ .. वो तो .. कब का 'आँटी' .. हम औरतों के घरेलू कामों में परिस्थितिवश लाख कठिनाई आ जाए, पर इन मर्द लोगों को तो सब कुछ समय पर ही तैयार मिलनी चाहिए। वर्ना .. ख़ैर ! .. अब मैं आपको 'होल्ड' पर रख कर, फ़ौरन दोनों कोई को 'लाइन' पर लेने के बाद .. आपको जोड़ती हूँ .. "
" हाँ .. "
" फोन काटीएगा नहीं .. "
" ना - ना .. "
कुछ ही पलों में काकोली घोष ने सौम्या भाभी और नैना दीदी को 'कॉल' पर जोड़ कर 'होल्ड' पर टिकी हुई अपनी नलिनी 'आँटी' को पुनः जोड़ती है।
दरअसल यहाँ देहरादून के ही एक मुहल्ले में पश्चिम बंगाल की काकोली घोष, उत्तराखंड की ही सौम्या रावत, नैना सेमवाल, पार्वती और उत्तरप्रदेश की नलिनी अष्ठाना का परिवार रहता है। इनमें नैना सेमवाल को छोड़ कर अन्य सभी लोग किराएदार हैं। सौम्या रावत का परिवार उत्तराखंड के ही कुमाऊँ क्षेत्र से और पार्वती का जौनसार क्षेत्र से है।
यहाँ रेसकोर्स जैसे पॉश कॉलोनियों को छोड़ दें, तो अन्य हिस्से में किराए के मकान आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, क्योंकि गढ़वाल के अधिकांश लोग या तो फ़ौज में हैं या फिर 'होटल-रेस्टोरेंट' व्यवसाय में अपने भारत देश से दूर स्वीडन, पुर्तगाल, न्यूजीलैंड, जापान, कोरिया जैसे विदेशों में जा कर बसे हुए हैं। कुछ लोग सपरिवार, तो कुछ परिवार के मर्द व बच्चे या फिर कुछ के केवल मर्द विदेशों में बसे हुए हैं। यूँ तो वहाँ विदेशों में कुछ लोगों ने खुद के 'रेस्टोरेंट' खोल रखे हैं, पर अधिकतर लोग भले ही वहाँ 'कुक' की नौकरी करते हों, पर यहाँ .. खुद को किसी विदेशी 'रेस्टोरेंट' का 'मैनेजर' या मालिक ही बतलाते हैं। ख़ैर ! .. जो भी हो .. यूँ तो हमारे आसपास वास्तविक अमीरों की संख्या से कई गुणा ज्यादा तो .. डींग हाँकने वाले यानी 'शो ऑफ' करने वाले अमीरों की ही संख्या है।
जीवकोपार्जन हेतु विदेशों में या सेना में रहने के कारण उनके खाली घर .. यहाँ आए प्रवासियों को किराए पर सुगमता से उपलब्ध हो जाते हैं, लेकिन .. एक 'लीगल रेंट एग्रीमेंट' और 'पुलिस वेरिफिकेशन' की औपचारिकता पूरी करने के बाद। बाक़ी तो घर का मुखिया या उनका परिवार दूर विदेशों में रह कर भी यहाँ अपने घर में लगवाए गए 'सी सी टी वी कैमरों' से अपने घर और अपने किराएदारों की गतिविधियों पर नज़र टिकाए रहते हैं। कुछ भी उन्नीस-बीस होने पर फ़ौरन आदेश-निर्देश भरा उनका 'व्हाट्सएप्प कॉल' आ जाता है। रही बात किराए की तो, वो सही समय पर किराएदारों द्वारा उनको 'ऑनलाइन' भेज दिया जाता है।
हालांकि .. इन मकान मालिक और किराएदारों वाली उपरोक्त बातों का आज की इस बतकही से कोई लेना-देना नहीं है। पर बतकही के दौरान लगा, कि .. जो सब कुछ महसूस किया हूँ यहाँ पर .. वो सब यहाँ .. इस 'ब्लॉग' रूपी 'डायरी' में बकबका ही दूँ .. बस नलिनी अष्ठाना यूँ ही ...
ख़ैर ! .. काकोली घोष द्वारा सौम्या रावत और नैना सेमवाल के बाद नलिनी अष्ठाना को भी फोन पर जोड़े जाने पर .. चारों लोगों का फ़ोन पर ही पार्वती (कामवाली)-पुराण आरम्भ हो गया है।
काकोली घोष - " आँटी ! .. "
नलिनी अष्ठाना - " हाँ .. काकोली .. बात हुई सौम्या और नैना से .. "
काकोली - " हाँ आँटी .. वो लोग 'लाइन' पर ही हैं .. "
सौम्या - " प्रणाम .. "
नैना - " नमस्ते आँटी .. "
नलिनी - " सब लोग खुश रहो .. कुशलमंगल रहो .."
सौम्या -" पर ये पार्वती की बच्ची रहने देगी तब ना आँटी .."
सौम्या की इस बात पर चारों के ठहाके एक साथ लगने लगे हैं।
नैना - " पार्वती मुसीबत में है आँटी। आप लोगों से उतनी खुली हुई नहीं है ना, पर हम से अपना हर सुख-दुःख बतलाती रहती है। "
नलिनी - " क्या हो गया उसको ? "
नैना - " अब क्या बोलें आप लोगों से आँटी .. बोलते हुए भी हिचक से ज्यादा .. शर्म आ रही है .. ना-ना .. हम से ना बोला जाएगा .. ना ! .. "
नलिनी - " अब .. अगर हम सभी हिचक या शर्म से मौन रहने लगे, तो .. वो मुसीबत तो .. जानलेवा तक हो सकती है .. नहीं क्या ? .. "
काकोली - " आँटी ठीक ही तो बोल रहीं हैं नैना दीदी .. "
नलिनी - " अगर तुमको बतलाने में शर्म आ रही है, तो उसी को लेकर आ जाओ दोपहर में मेरे घर। हम लोग मिलकर उसकी मुसीबत उसी से सुनेंगे और उसे कम करने की भरसक कोशिश भी करेंगे .. ये ठीक है ना ? .. "
सौम्या -" हाँ .. ये ठीक रहेगा .. इसी बहाने आँटी के हाथों से बनी अदरख़ वाली चाय पीने के लिए मिलेगी .. है ना काकोली ? "
सभी की हामी के बाद फ़ोन कट गयी है।
अब दोपहर लगभग दो-ढाई बजे सभी का जमावड़ा जम गया है नलिनी आँटी के घर पर।
नलिनी - " क्या हुआ पार्वती ? आज तुम काम करने भी नहीं आयी। कैसी मुसीबत आ पड़ी है तुम पर ? "
{ शेष-विशेष अगले और आख़िरी अंक - "खूँटे की रस्सी .. बड़ी हो या छोटी ..." (२) में .. बस यूँ ही ... }.