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Thursday, June 27, 2024

खूँटे की रस्सी .. बड़ी हो या छोटी ... (१)

आज ही के दिन अर्थात् 27 जून को सन् 1880 ईस्वी में हेलेन एडम्स केलर नामक तत्कालीन भावी अमेरिकी अधिवक्ता, व्याख्याता, प्रभावशाली लेखिका, राजनीतिक कार्यकर्ता और वास्तविक विश्वस्तरीय जनकल्याण करने वाली समाजसेविका का जन्म हुआ था .. जो बचपन में ही एक अज्ञात असाध्य रोग से ग्रसित होने के कारण एक ही साथ अँधी, बहरी और आंशिक गूँगी हो गयीं थीं और वैसी ही जीवनपर्यंत बनी रहीं। 

परन्तु वह बोस्टन के पर्किन्स स्कूल फॉर द ब्लाइंड जैसी शिक्षण संस्थान और ऐनी मैन्सफील्ड सुलिवन मैसी जैसी आंशिक रूप से नेत्रहीन प्रशिक्षिका, जिन्हें उनका आजीवन सहयोगी भी बोला जाता है, के सहयोग से और उनके मार्गदर्शन में कला स्नातक की उपाधि पाने वाली विश्व की प्रथम मूक, बधिर और दृष्टिहीन महिला बनी थीं।

वह तत्कालीन अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन 'पार्टी' की सदस्या के रूप में अमेरिका के साथ-साथ और भी अन्य देशों के श्रमिकों व महिलाओं के मताधिकार और श्रम अधिकारों के समर्थन में आंदोलन छेड़ने के अलावा तत्कालीन कई कट्टरपंथी शक्तियों के विरोध में भी सतत अभियान चलाती रहीं थीं। उस जमाने में भी वह जनसंख्या नियंत्रण जैसे विषय पर आवाज़ उठायीं थीं। वह विकलांगों के लिए यथोचित शिक्षा की व्यवस्था के साथ-साथ उनके अन्य मूलभूत अधिकारों के लिए भी ताउम्र आन्दोलन करती रहीं थीं। यूँ तो वह कई सकारात्मक पहलूओं की आन्दोलनकारी रहीं, पर संघर्षपूर्ण हिंसक क्रांति का समर्थन कभी भी नहीं करती थीं। एक संवेदनशील लेखिका होने के नाते उनकी अधिकांश रचनाएँ प्रायः युद्ध विरोधी ही हुआ करती थीं। 

हम अक़्सर पाते हैं, कि बड़ी सोचें हमेशा विस्तृत व विराट होती हैं, जो .. जाति-धर्म, दल-गुट, रंग-नस्ल, कद-काठी, नयन-नक़्श, भाषा-पहनावा, पुरुष-नारी, मुहल्ला-जिला, राज्य-देश जैसे विषयों की सीमा से परे .. बंधनमुक्त होकर विश्व के समस्त मानव जाति के लिए एक समान सोचतीं हैं।

ऐसी ही सोचों वाली हेलेन एडम्स केलर हमेशा इस बात को प्रमुखता देती रहीं, कि इस महान दुनिया में हर जगह घर जैसा महसूस करने का अधिकार सभी को मिलना चाहिए। उन्होंने महिलाओं और विकलांगों के यथोचित अधिकारों के लिए कई-कई बार विश्व भ्रमण किया था। विश्व भ्रमण के दौरान विकलांग व्यक्तियों के प्रति समाज के बीच एक सहानुभूतिपूर्ण या .. यूँ कहें कि .. समानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण बनाने के प्रयास के साथ ही दानस्वरूप मिले एकत्रित करोड़ों रुपयों से विकलांगो के लिए, विशेष कर नेत्रहीनों के लिए अनेक संस्थानों का निर्माण भी करवाया था। 

वे ब्रेल लिपि में कई मौलिक ग्रंथ लिखी थीं और उन्होंने कई अन्य पुस्तकों का अनुवाद भी किया था। उनकी लिखी आत्मकथा "द स्टोरी ऑफ माई लाइफ" विश्व की लगभग पचास भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है।

लब्बोलुआब ये है, कि जिस तरह अपनी वाक्पटुता और अथक सक्रियता के समर्पण से अपने समस्त जीवन की ऊर्जा असंख्य मानवीय कार्यों के लिए वह न्योछावर करती रहीं, तो .. ये कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी, कि सुनने, देखने और बोलने की क्षमता से वंचित, परन्तु ..  सूँघने, चखने एवं स्पर्श की शक्ति से सिंचित .. नेत्रहीन होते हुए भी एक विलक्षण नज़रिया वाली वह विश्व का आठवाँ आश्चर्य ही थीं।

कहते हैं, कि इन्हीं केलर और ऐनी की ही जीवनी से प्रेरित होकर सन् 1962 ईस्वी में "द मिरेकल वर्कर" नामक अमेरिकी फ़िल्म बनी थी। वर्तमान 'सोशल मीडिया' में प्रचलित निर्लज्ज 'कॉपी & पेस्ट' वाली प्रवृति की तरह ही भारतीय सिनेमा जगत में भी धड़ल्ले से की जाने वाली 'कॉपी & पेस्ट' की चर्चा .. जैसाकि पहले भी हम कर चुके हैं, तो .. उस "द मिरेकल वर्कर" की कथानक में कुछ-कुछ फेर-बदल कर के अपने यहाँ "ब्लैक" नामक फ़िल्म सन् 2005 ईस्वी में संजय लीला भंसाली द्वारा बनायी गयी थी। सर्वविदित है कि उसमें अमिताभ बच्चन और रानी मुख़र्जी ने अभिनय किया था। 

उन्हीं हेलेन एडम्स केलर जैसी महान विभूति की सोचों के अवलोकन से प्रेरित होकर .. आज भी हमारे समाज के इर्द-गिर्द कई या कुछेक नारियों की एक अनछुई-सी .. अनबोली-सी .. अनसुनी-सी और .. अनदेखी की गयी पारिवारिक-सामाजिक समस्या को छूने का एक तुच्छ प्रयास भर है हमारा .. हमारी आज की निम्नलिखित बतकही (कहानी) में ...


खूँटे की रस्सी .. बड़ी हो या छोटी ... (१) :-

" हेलो ! .. काकोली .. अभी सुबह पार्वती तुम्हारे घर आयी थी क्या ? "

" नहीं तो 'आँटी' .. मेरे यहाँ भी तो .. आज नहीं आयी है। उसका मोबाइल भी 'स्विच ऑफ' आ रहा है। सौम्या भाभी से पता करना पड़ेगा .. "

" मेरे यहाँ भी नहीं आयी। इतना दिन निकल आया। अब तो साढ़े ग्यारह बजने वाला है। दरअसल सुबह-सुबह सबसे पहले तो तुम्हारे घर ही आती है ना .. फिर सौम्या के पास से नैना के घर का काम करते हुए ही हमारे पास आती है। इसीलिए सबसे पहले तुम्हीं को फोन लगायी .. अब सौम्या से पूछती हूँ और फिर नैना से भी .. "

" हाँ 'आँटी' .. पर .. अगर आप कहें, तो सौम्या भाभी और नैना दीदी को मैं 'लाइन' पर ही ले लेती हूँ। "

" हाँ.. यही ठीक रहेगा .. और .. तुम्हारे घोष बाबू चले गए 'ड्यूटी' पर ? "

" हाँ, हाँ .. वो तो .. कब का 'आँटी' .. हम औरतों के घरेलू कामों में परिस्थितिवश लाख कठिनाई आ जाए, पर इन मर्द लोगों को तो सब कुछ समय पर ही तैयार मिलनी चाहिए। वर्ना ..  ख़ैर ! .. अब मैं आपको 'होल्ड' पर रख कर, फ़ौरन दोनों कोई को 'लाइन' पर लेने के बाद .. आपको जोड़ती हूँ .. "

" हाँ .. "

" फोन काटीएगा नहीं .. "

" ना - ना .. "

कुछ ही पलों में काकोली घोष ने सौम्या भाभी और नैना दीदी को 'कॉल' पर जोड़ कर 'होल्ड' पर टिकी हुई अपनी नलिनी 'आँटी' को पुनः जोड़ती है।

दरअसल यहाँ देहरादून के ही एक मुहल्ले में पश्चिम बंगाल की काकोली घोष, उत्तराखंड की ही सौम्या रावत, नैना सेमवाल, पार्वती और उत्तरप्रदेश की नलिनी अष्ठाना का परिवार रहता है। इनमें नैना सेमवाल को छोड़ कर अन्य सभी लोग किराएदार हैं। सौम्या रावत का परिवार उत्तराखंड के ही कुमाऊँ क्षेत्र से और पार्वती का जौनसार क्षेत्र से है। 

यहाँ रेसकोर्स जैसे पॉश कॉलोनियों को छोड़ दें, तो अन्य हिस्से में किराए के मकान आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, क्योंकि गढ़वाल के अधिकांश लोग या तो फ़ौज में हैं या फिर 'होटल-रेस्टोरेंट' व्यवसाय में अपने भारत देश से दूर स्वीडन, पुर्तगाल, न्यूजीलैंड, जापान, कोरिया जैसे विदेशों में जा कर बसे हुए हैं। कुछ लोग सपरिवार, तो कुछ परिवार के मर्द व बच्चे या फिर कुछ के केवल मर्द विदेशों में बसे हुए हैं। यूँ तो वहाँ विदेशों में कुछ लोगों ने खुद के 'रेस्टोरेंट' खोल रखे हैं, पर अधिकतर लोग भले ही वहाँ 'कुक' की नौकरी करते हों, पर यहाँ .. खुद को किसी विदेशी 'रेस्टोरेंट' का 'मैनेजर' या मालिक ही बतलाते हैं। ख़ैर ! .. जो भी हो .. यूँ तो हमारे आसपास वास्तविक अमीरों की संख्या से कई गुणा ज्यादा तो .. डींग हाँकने वाले यानी 'शो ऑफ' करने वाले अमीरों की ही संख्या है। 

जीवकोपार्जन हेतु विदेशों में या सेना में रहने के कारण उनके खाली घर .. यहाँ आए प्रवासियों को किराए पर सुगमता से उपलब्ध हो जाते हैं, लेकिन .. एक 'लीगल रेंट एग्रीमेंट' और 'पुलिस वेरिफिकेशन' की औपचारिकता पूरी करने के बाद। बाक़ी तो घर का मुखिया या उनका परिवार दूर विदेशों में रह कर भी यहाँ अपने घर में लगवाए गए 'सी सी टी वी कैमरों' से अपने घर और अपने किराएदारों की गतिविधियों पर नज़र टिकाए रहते हैं। कुछ भी उन्नीस-बीस होने पर फ़ौरन आदेश-निर्देश भरा उनका 'व्हाट्सएप्प कॉल' आ जाता है। रही बात किराए की तो, वो सही समय पर किराएदारों द्वारा उनको 'ऑनलाइन' भेज दिया जाता है।

हालांकि .. इन मकान मालिक और किराएदारों वाली उपरोक्त बातों का आज की इस बतकही से कोई लेना-देना नहीं है। पर बतकही के दौरान लगा, कि .. जो सब कुछ महसूस किया हूँ यहाँ पर .. वो सब यहाँ .. इस 'ब्लॉग' रूपी 'डायरी' में बकबका ही दूँ .. बस नलिनी अष्ठाना  यूँ ही ...

ख़ैर ! .. काकोली घोष द्वारा सौम्या रावत और नैना सेमवाल के बाद नलिनी अष्ठाना को भी फोन पर जोड़े जाने पर .. चारों लोगों का फ़ोन पर ही पार्वती (कामवाली)-पुराण आरम्भ हो गया है।

काकोली घोष - " आँटी ! .. " 

नलिनी अष्ठाना - " हाँ .. काकोली .. बात हुई सौम्या और नैना से .. "

काकोली - " हाँ आँटी .. वो लोग 'लाइन' पर ही हैं .. "

सौम्या - " प्रणाम .. "

नैना - " नमस्ते आँटी .. "

नलिनी - " सब लोग खुश रहो .. कुशलमंगल रहो .."

सौम्या -" पर ये पार्वती की बच्ची रहने देगी तब ना आँटी .."

सौम्या की इस बात पर चारों के ठहाके एक साथ लगने लगे हैं।

नैना - " पार्वती मुसीबत में है आँटी। आप लोगों से उतनी खुली हुई नहीं है ना, पर हम से अपना हर सुख-दुःख बतलाती रहती है। "

नलिनी - " क्या हो गया उसको ? "

नैना - " अब क्या बोलें आप लोगों से आँटी .. बोलते हुए भी हिचक से ज्यादा .. शर्म आ रही है .. ना-ना .. हम से ना बोला जाएगा .. ना ! .. "

नलिनी - " अब .. अगर हम सभी हिचक या शर्म से मौन रहने लगे, तो .. वो मुसीबत तो .. जानलेवा तक हो सकती है .. नहीं क्या ? .. "

काकोली - " आँटी ठीक ही तो बोल रहीं हैं नैना दीदी .. "

नलिनी - " अगर तुमको बतलाने में शर्म आ रही है, तो उसी को लेकर आ जाओ दोपहर में मेरे घर। हम लोग मिलकर उसकी मुसीबत उसी से सुनेंगे और उसे कम करने की भरसक कोशिश भी करेंगे .. ये ठीक है ना ? .. "

सौम्या -" हाँ .. ये ठीक रहेगा .. इसी बहाने आँटी के हाथों से बनी अदरख़ वाली चाय पीने के लिए मिलेगी .. है ना काकोली ? "

सभी की हामी के बाद फ़ोन कट गयी है। 

अब दोपहर लगभग दो-ढाई बजे सभी का जमावड़ा जम गया है नलिनी आँटी के घर पर।

नलिनी - " क्या हुआ पार्वती ? आज तुम काम करने भी नहीं आयी। कैसी मुसीबत आ पड़ी है तुम पर ? "

{ शेष-विशेष अगले और आख़िरी अंक - "खूँटे की रस्सी .. बड़ी हो या छोटी ..." (२) में .. बस यूँ ही ... }.