Thursday, November 23, 2023

पुंश्चली .. (२०) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)


प्रत्येक वृहष्पतिवार को यहाँ साझा होने वाली साप्ताहिक धारावाहिक बतकही- "पुंश्चली .. (१)" से "पुंश्चली .. (१९)" तक के बाद पुनः प्रस्तुत है, आपके समक्ष "पुंश्चली .. (२०) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" .. बस यूँ ही ...  :-

गतांक का आख़िरी अनुच्छेद :-

अब इन लोगों को अपनी चाय की दुकान की ओर आता देखकर रसिकवा का नाबालिग 'स्टाफ'- कलुआ अपनी (?) चाय की दुकान के सामने रखे दोनों बेंचों को कपड़े से जल्दी-जल्दी पोंछने लगा है। साथ में .. उनके पीछे से मन्टू की टोली भी फिलहाल अंजलि के वर्तमान प्रकरण को अपने दिमाग़ से झटकने की कोशिश करते हुए,  नगर निगम वाले कचड़े के डब्बों के पास से चाय की दुकान की ओर बढ़ चली है ..

गतांक के आगे :-

रेशमा .. एक किन्नर .. सात किन्नरों की टोली की 'हेड' होते हुए भी पूरे मुहल्ले के लोगों से सम्मान पाती है। उसे सम्मान मिले भी भला क्यों नहीं ? .. वह है ही ऐसे स्वभाव और सोच की .. यूँ तो प्रायः कोई बुज़ुर्गवार ही अपनी टोली की 'हेड' होती है। परन्तु रेशमा के साथ ये बात लागू नहीं होती। वह तो अभी महज़ छ्ब्बीस वर्ष की ही है। पर अपनी क़ाबिलियत के दम पर अपनी मंजू माँ, जो इसके पहले इस टोली की 'हेड' थी और रेशमा की पालनहार थी .. जिसको टोली के सभी किन्नर ही नहीं सारे मुहल्ले वाले भी इसी नाम से बुलाते थे, के मरने के बाद टोली में सबसे कम उम्र की होने के बावजूद भी आपस में सब के द्वारा टोली की 'हेड' मान ली गयी थी। आज तक इस जिम्मेवारी को यह बख़ूबी निभा भी रही है। 

लगभग दो वर्ष की रही होगी, जब मंजू माँ इसे रेलवे यार्ड में खड़ी किसी मालगाड़ी के एक खाली डब्बे से बेहोशी की हालत में ले कर आयी थी। दरअसल मंजू माँ को रोजाना सुबह-सुबह भटकते लावारिस जानवरों को कुछ-कुछ खिलाने की आदत थी। ख़ासकर कुत्तों को .. इसी क्रम में वह उस दिन रेलवे यार्ड में भटकते कुत्तों को रोटी खिलाने गयी थी। जहाँ खिलाने के क्रम में एक डब्बे में घुसते कुत्ते का पीछा करते हुए जब मंजू माँ डब्बे में उचक कर झाँकी तो एक बदहाल बच्ची को देख कर भौंचक्की रह गयी थी। बाद में सभी को समझ में आया था, कि ये भी उन्हीं की बिरादरी की है। शायद इसे इसी कारण से इसके निर्दयी माँ-बाप ने अपनी जगहँसाई के भय से अपना पीछा छुड़ाते हुए लावारिस मरने के लिए छोड़ दिया था। 

वो तो भला हो मंजू माँ की, कि उसकी नेक नीयत ने इसकी नियति सुधारते हुए इसे रेशमा नाम देकर अपनी जान से भी ज्यादा प्यार-दुलार से पालन-पोषण किया था। ऐसे में मंजू माँ की परवरिश और उसके स्वयं के जन्मजात संस्कार ने, किन्नरों के बीच पलते-बढ़ते हुए और स्वयं किन्नर होने के बावज़ूद भी एक समझदार और संवेदनशील इंसान है रेशमा। मंजू माँ रेशमा को भले स्कूल नहीं भेजती थी, पर मोनिका भाभी के पी जी में रहने वाले पढ़े-लिखे लोगों के पास पढ़ने अवश्य भेजती थी। उसी पी जी में रहने वाले मयंक और शशांक भी रेशमा की कुशाग्रता के क़ायल हैं। रंजन भी जब जीवित था , तो उससे भी रेशमा पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ देश-दुनिया की ख़बरों की बातें किया करती थी। अक़्सर रंजन को चिढ़ाती हुई, ख़ासकर अंजलि और शनिचरी चाची के सामने कहती थी, कि- "ऐ रंजन भईया ! .. एक और शादी कीजिए ना .. तब फिर से हफ़्तों बुनिया खाने के लिए मिलेगा।" 

ऐसे मौके पर अंजलि केवल मुस्कुराती रहती और शनिचरी चाची भी मज़ाक-मज़ाक में उससे कहतीं कि - "तुम्हीं कोई अपनी पसन्द की लड़की बतलाओ, तो तुमको बुनिया खिलाने के लिए रंजनवा का फिर से ब्याह कर देंगे। अंजलि और वो .. दोनों मेरे घर में रहेगी।"

फिर सब मिलकर हँस पड़ते थे। तभी गम्भीर हो कर रेशमा कहती थी, कि - " सच में चाची .. अब तो 'कैटेरिंग-बुफे कल्चर' में भोज के बाद भी हफ़्तों बुनिया खाना और बाँटना लुप्तप्राय ही हो गया है। है ना चाची ?

शनिचरी चाची - "हाँ .. ठीक ही तो कह रही हो ..भोज-भात के बाद भी तब के समय हफ़्तों बुनिया की बहार रहती थी।"

अब रेशमा अगर किन्नर है तो .. किन्नर होना कोई गुनाह भी तो नहीं .. वो तो तथाकथित समाज की थोथी सोचों और मान्यताओं ने इन्हें जबरन गुनाहगार बना रखा है .. शायद ... आख़िर क्या गुनाह है इनका जो इन्हें हमारे तथाकथित मानव समाज में ससम्मान साँस लेने की अनुमति नहीं मिली है ? ये एक अपवाद ही है, जो इस मुहल्ले में किन्नरों की टोली को इतना सम्मान मिलता है।पर .. वैसे .. केवल किसी इंसान के जननांग की प्राकृतिक विकृति भर उस इंसान की अवमानना की वजह कैसे बन सकती है भला ? किसी भी इंसान का कोई भी बाहरी या भीतरी अंग प्राकृतिक रूप से या किसी भी अन्य दुर्घटना से विकृत हो जाए तो यह विकृति उसकी सोच को .. उसकी संवेदनशीलता को भी विकृत कर देती है क्या ? .. कर देती है क्या ? .. शायद नहीं ...

अभी सभी लोगों में से कुछ लोग दोनों बेंचों पर और कुछ लोग पिलखन के पेड़ के नीचे चाय की प्रतीक्षा में बैठ कर इधर-उधर की बातें कर ही रहे हैं .. तब तक कुछ देर पहले मन्टू के मारे गए पत्थर से चोटिल कुतिया-बसन्तिया अपने काले शरीर और मुँह के बीच अपनी गुलाबी जीभ निकाले आकर रेशमा के पाँव के पास बैठ गयी है। रेशमा को पता है कि इस बसन्तिया को जब भूख लगी होती है, तभी वह रेशमा के पास प्यार जतलाने आ जाती है, वर्ना मुहल्ले भर में मटकती फिरती है। वैसे भी इसको मुहल्ले भर में दरवाजे-दरवाजे जाकर चाटने की आदत है। बहुत ही चटोरी है ये बसन्तिया। पर .. ये भी ख़ासियत है इसमें कि जब कभी भी इसका पेट भर जाता है, तो एक चुटकी भर भी खाने का सामान मुँह में नहीं डालती है।

रेशमा - "रसिक भईया आप अपनी स्वादिष्ट चाय के पहले कलुआ से दो पाव भेज दीजिए .. हम सब की दुलारी बसन्तिया को भूख लगी है। उस पर तनिक दूध टपका भर दीजिएगा।"

पल भर में कलुआ एक प्लेट में दो पाव लिए हाज़िर हो गया है। बसन्तिया पाव आता देखकर अपने मुँह पर अपनी जीभ फिराने लगी है। अब दूध में भींगे हुए पाव को टुकड़ा-टुकड़ा करके रेशमा उसको खिलाने लगी है। तभी सड़क उस पार से मुहल्ले में ही घर-घर भटकने वाला एक मोटा-ताजा बिल्ला .. बसन्तिया को पाव खाता देखकर इस तरफ दौड़ता आ रहा है। 

तभी पास के ही सरकारी स्कूल में सुबह-सुबह पढ़ने जाने वाले मुहल्ले के कुछ बच्चों की एक टोली जाते-जाते अचानक रुक जाती है। उनमें से एक बच्ची एक क़दम आगे बढ़ कर .. थू-थू कर थूकती है और एक साइकिल वाले के गुजरने के बाद ही फिर सभी बच्चे स्कूल की ओर बढ़ने ही वाले हैं , कि .. रेशमा थूकने वाली बच्ची को अपने पास इशारे से बुलाती है - "सुनो .. यहाँ आओ .. मेरे पास .."

वह बच्ची सकुचाती-सी रेशमा के पास आ जाती है।

रेशमा - "अभी तुम सभी स्कूल जाते-जाते रुक क्यों गयी थी ?"

बच्ची - "अभी एक बिल्ली रास्ता काट गयी थी, ..."

रेशमा - "वैसे भी वो बिल्ली नहीं .. बिल्ला है .. तो इसके गुजरने से तुम लोगों के रुकने की वजह नहीं समझ आयी मुझे .."

बच्ची - "इस से दिन ख़राब हो जाता है .."

रेशमा - "ऐसा किसने कहा तुम लोगों से ?"

बच्ची - "मम्मी-पापा और .. टीचर मैम ने भी ..."

रेशमा - "ऐसा कुछ भी नहीं होता .. तुम्हारी किताबों में भी ऐसा लिखा है क्या ?"

बच्ची - "ऊँहुँ .. नहीं .."

रेशमा - "ये सब गलत बातें हैं बच्चों .. अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो .. अब जाओ भी .. देर हो गयी तो मैम मारेंगी .. जल्दी जाओ .."

【आज बस .. इतना ही .. अब शेष बतकहियाँ .. आगामी वृहष्पतिवार को ..  "पुंश्चली .. (२१) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" में ... 】


6 comments:

  1. कहीं सुना था आदमी के रास्ते काटने के बारे में भी | तरक्की पसंद लोग बिल्ली की जगह आदमी का प्रयोग कर रहे होंगे वहां | सुन्दर |

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी ! .. नमन संग आभार आपका .. वैसे आदमी के रास्ता काटने की बात कभी हमने नहीं सुनी है और ना ही इस तरह के अंधविश्वासों में कोई दिलचस्पी है और ना ही विश्वास .. पर हाँ .. आदमी को आदमी, पशु, पक्षी, पेड़-पौधे, नदी, पहाड़ जैसे उन तमाम सजीव-निर्जीव को निरन्तर "काटते" हुए देखा-सुना है .. कुछ तो .. जीवन यापन के लिए नितान्त आवश्यक होने पर और कुछ से कहीं ज्यादा .. अति ज्यादा .. बस यूँ ही ... फ़िज़ूल में .. शायद ...

      Delete
  2. अब यह शोधग्रंथ बनता जा रहा है....
    आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 26 नवम्बर 2023 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी ! .. नमन संग आभार आपका हमारी इस निकृष्ट बतकही को अपने उत्कृष्ट मंच की अपनी सराहनीय प्रस्तुति में स्थान प्रदान करने हेतु ... 🙏

      Delete
  3. Replies
    1. जी ! .. नमन संग आभार आपका ...

      Delete