Tuesday, June 27, 2023

मूँदी पलकों से ...

धुँधलके में जीवन-संध्या के 

धुंधलाई नज़रें अब हमारी,

रोम छिद्रों की वर्णमाला सहित 

पहले की तरह पढ़ कहाँ पाती हैं भला

बला की मोहक प्रेमसिक्त .. 

कामातुर मुखमुद्राओं की वर्तनी तुम्हारी ...


पर .. मुश्किल कर देता है हल .. पल में ..

तीव्रता से चूमता मेरी कर्णपाली को 

तुम्हारी नम-नर्म साँसों का शोर,

और .. तख़्ती पर मेरे तपते बदन की 

कुछ कूट भाषा-सी गहरी उकेरती

तुम्हारी तर्जनी की पोर ...


पर .. पगली ! .. यूँ भी युवा आँखें 

इन मौकों पर तब वैसे भी तो

खुली कहाँ होती थीं भला !?

खुली-अधखुली-सी .. मूँदी पलकों से ही तो 

पढ़ा करते थे हम 'ब्रेल लिपि' सरीखी 

एक-दूजे की बेताबियाँ .. बस यूँ ही ...




8 comments:

  1. शुभ प्रभात..
    गूढ़ रचना
    आभार सादर

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" बुधवार 28 जून 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा धन्यवाद!

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका .. प्रस्तुति को लेकर लगातार आप ही रही हैं .. मंच के बाक़ी चिट्ठाकार लोग लगन-पर्यटन में व्यस्त हैं क्या 🤔🤔🤔

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  3. 'ब्रेल लिपि' सरीखी एक-दूजे की बेताबियाँ .. बहुत ख़ूब |

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ... और कुछ .. अलग से .केवल आपके लिए .. राज की बात है, किसी को साझा मत किजिएगा साहिब ! ..कि अगर 'ब्रेल' साहिब अपनी लिपि की खोज नहीं करते तो हम प्रेम में अँधे लोग बेताबियाँ पढ़ ही नहीं पाते एक-दूसरे की शायद ...

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (29-06-2023) को    "रब के नेक उसूल"  (चर्चा अंक 4670)  पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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