Sunday, July 21, 2019

स्वप्निल यात्रा ...

किसी दिन उतरेंगे हम-तुम
अपनी ढलती उम्र-सी
गंगाघाट की सीढ़ियों से
एक दूसरे को थामे .. गुनगुनाते
"छू-कित्-कित्" वाले अंदाज़ में
और बैठेंगे पास-पास
उम्र का पड़ाव भूलकर
गंग-धार में पैर डुबोए घुटने तक
और उस झुटपुटे साँझ में
जब धाराओं पर तैरती
क्षितिज  से 30 या 40 डिग्री कोण पर
ऊपर टंगे अस्ताचल के सूरज की
मद्धिम सिन्दूरी किरणें
खेलती जल से "डेंगापानी"
प्रतिबिंबित होकर
हमारे अंगों को छूकर फैल जायेगी
मेरे फिरोज़ी 'टी-शर्ट' से होकर
काली कुर्ती में तुम्हारी हो जायेगी एकाकार ...

हर पल लाख़ सवाल करने वाले
होंठ होकर मौन हमारे
करेंगे महसूस केवल और केवल
उस रूमानी मौन पल को
अवनत होते तन के
ज्यामितीय आयतन से परे
उन्नत मन के जटिल-से
बीजगणितीय सूत्रों को
दुहराएँगे उँगलियों के पोरों पर
अनायास फिर
अनजाने-जाने साँसों की
मदहोश जुगलबंदी पर
अनायास ही तर्जनी से टटोल कर
तुम्हारी अधरों को
वापस अपने होठों पर
फिरा कर वही तर्जनी
महसूस करूँगा तुम्हारे
कंपकंपाते अधरों की नमी ...

गंगोत्री के पारदर्शी जल-सा
तुम्हारे बहते मन में पल-पल
तलहट में लुढ़कता-सरकता
किसी पाषाण-खण्ड-सा
अनवरत दिखूँगा मैं हर पल
और ढलती सुरमई शाम की
धुंधलके की चादर में लिपटे
गुम होकर दोनों एक-दूसरे की
मासूम पनीली आँखों में
मुग्ध पलकें उठाए निहारेंगे
कभी एक-दूसरे को .. कभी क्षितिज
कभी आकाश .. कभी धुंधले-तारे
नभ के माथे पर लटका
तब मंगटीके-सा चाँद
बिखेरता चटख उजली किरणें
हमारी सपनीली .. गीली आँखों में
कुछ पल ठहर कर
ठन्डे पानी में उतर कर
हमारे अहसासों के साथ
"लुका-छिपी" खेलेगा और ...

मैं हौले से तुम्हारी
लरज़ती उँगलियों को
टटोलकर प्रेम से अपनी
हथेलियों में लपेट लूँगा ..
एक-दूसरे के काँधे पर टिकाकर
प्रेम भरे मन के सारे अहसास
फिर मूँद कर अखरोटी पलकें
उड़ चलेंगे हमारे-तुम्हारे मन संग-संग
प्रस्थान करेंगे महाप्रस्थान तक
स्वप्निल अविस्मरणीय यात्रा के लिए
और गंगा की पवित्र धाराओं से
स्नेहिल आशीष पाकर
प्रेम हमारा .. पा लेगा
अजर .. अमर .. अमरत्व ...


{ स्वयं के पुराने (जो तकनीकी कारण से नष्ट हो गया) ब्लॉग से }.

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 18 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सुप्रभात संग नमन आपको और आभार आपका इस रचना/विचार को अपने मंच पर साझा करने के लिए ...

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  3. बहुत सुंदर रचना ।

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  4. प्रेम की अनुभूति गंगा की तरह पवित्र है।
    गंगा सी निश्छल,पावन,कल-कल छलकती मन सिक्त करती अभिव्यक्ति, बिंबों के अनुपम प्रयोग ने रचना को जीवंत कर दिया है।
    बेहद खूबसूरत रचना।

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    1. जी ! आभार आपका आपकी प्रेमसिक्त प्रतिक्रिया के लिए ...

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  6. बहुत ही सुन्दर ...
    लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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  7. जी ! आभार आपका रचना/विचार तक आने और उसकी सराहना करने के लिए ...

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