Sunday, July 21, 2019

चन्द पंक्तियाँ - (६)- बस यूँ ही ....

(१)#

तुम साँकल बन
दरवाज़े पर
स्पंदनहीन
लटकती रहना

मैं बन झोंका
पुरवाईया का
स्पंदित करने
आऊँगा...

(२)#

चलो .... माना
है तुम्हारी तमन्ना
चाँद पाने की ...
बस पा ही लो !!!
रोका किसने है ...


हमारा क्या है
मिल ही जाएंगे
अतित के किसी
झुरमुट में
हम जुग्नू जो हैं ...

(३)#

मन्दिर की
सीढ़ियों पर
अक़्सर उतारे
पास-पास
तुम्हारे-हमारे
चप्पलों के बीच

अनजाने ही सही
किसी अज़नबी का
चप्पल का होना भी
ना जाने क्यों
मन को मेरे
मन की दूरी का ....
अहसास कराते हैं...

13 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार, जुलाई 23, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका यशोदा जी नाचीज़ की साधारण रचना को मौका देने के लिए ...

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  2. वाह !बेहतरीन सृजन सर
    सादर

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    1. शुक्रिया आपका। (हम हिन्दी लेखन वाले 'सर' की जगह 'महाशय' कहना कब शुरू करेंगें 🤔)

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  3. वाह!! खूबसूरत अभिव्यक्ति !

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    1. रचना की सराहना के लिए शुक्रिया आपका !

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  4. वाह!!!
    बेहतरीन सृजन...

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    1. प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया !

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  5. Replies
    1. "वाह!!!" के बाद के तीन विस्मयादिबोधक चिन्ह काफ़ी है आपकी प्रतिक्रिया के लिए ...

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  6. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)

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  7. आज फिर एक बार पढ़ा ,

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