Sunday, July 21, 2019

मन का सूप

कोमल भावनाओं और
रूमानी अहसासों की
आड़ी-तिरछी कमाचियों से
बुना सूप तुम्हारे मन का

गह के ओट में जिसके
अनवरत अटका हुआ है
हुलकता हर पल
बनारसी राई मेरे मन का

फटको-झटको लाख तुम
अपने मन का सूप
पर है अटका रहने वाला
बनारसी राई मेरे मन का
ताउम्र ......

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार, जुलाई 23, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. मन से शुक्रिया यशोदा जी !

      Delete
  2. बड़ी खूबसूरती से रचा है

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया आपका ख़ूबसूरती महसूस करने के लिए ...

      Delete
  3. वाह !बहुत सुन्दर रचना सर
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. अनीता जी हृदयतल (ब्लॉग की दुनिया की भाषा में ) शुक्रिया आपका ...

      Delete
  4. बहुत सुन्दर...
    वाह!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. सराहना के लिए शुक्रिया आपका ...

      Delete
  5. वाह सूप भी प्रतीक हो सकता है, ये आज जाना आदरणीय सुबोध जी। 👌👌👌👌स्नेहासिक्त भावों से सजी रचना। सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. रेणु जी ब्रह्माण्ड के हर कण में प्रतीक है। बस आपकी नज़र (सोच) किस में क्या बिम्ब देख पाती है ... आप पर निर्भर करता है ... है ना !?☺

      Delete