Wednesday, June 12, 2019

चन्द पंक्तियाँ (३)... - बस यूँ ही ...

(1)

कपसता है
कई बार ...
ब्याहता तन के
आवरण में
अनछुआ-सा
एक कुँवारा मन .....

(2)

जानती हो !!
इन दिनों
रोज़ ...
रात में अक़्सर
इन्सुलिन की सुइयाँ
चुभती कम हैं ....

बस .... तुम्हारी
शैतानियों भरी
मेरे जाँघों पर
काटी चिकोटियों की
बस चुगली
करती भर हैं ....

(3)

आने की तुम्हारी
उम्मीदों के सारे
दरवाज़े बन्द
संयोग की सारी
खिड़कियाँ भी यूँ ....

फिर ये मन के
रोशनदान पर
हर पल, हर पहर
करता है कौन ...
"गुटर-गूँ, गुटर-गूँ" .....

8 comments:

  1. व्वाहहहहह...
    बेमिसाल..
    सादर..

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  2. हार्दिक धन्यवाद महाशय !!

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  3. जी नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. पाँच लिंकों का आनन्द के 1428वें अंक में स्थान देने के लिए मन से आभार आपका ....

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  4. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आपका विश्वमोहन जी !!!

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  5. बहुत खूब लिखा है आपने!!!
    शुक्रिया ....इतना उम्दा लिखने के लिए !

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    1. महाशय ! हार्दिक शुक्रिया तो आपका सराहना कर प्रोत्साहन देने के लिए ...

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