Wednesday, July 17, 2024

मैली चादर ओढ़ के ...

जब 22 जनवरी 2024 को राम मन्दिर के उद्घाटन के दिन अपने देश के प्रधानमंत्री जी ने सोशल मीडिया पर प्रसिद्ध गायक हरिहरन जी द्वारा गाए गए एक राम भजन को साझा किया था, जिसके बोल थे - "सबने तुझे पुकारा श्री राम जी, देना हमें सहारा श्री राम जी", तब तमाम मीडिया वालों ने भी इस प्रकरण को कुछ ज्यादा ही महिमामंडित किया था .. जो ऐसे पावन मौके पर स्वाभाविक भी है। परन्तु ऐसे में तनिक विस्मित करने वाली बात थी .. कला के उसी क्षेत्र से जुड़े एक महान विभूति को हमारा विस्मृत कर देना .. उन प्रसिद्ध धरोहर की लोकप्रियता का आशातीत कम हो जाना .. शायद ...

विश्व भर के हिंदू बहुल देशों में दशकों अपनी प्रभावशाली व भावपूर्ण वाणी के कारण भजन, विशेष कर राम व राम-भक्त हनुमान भजन, के पर्याय बने रहने वाले तथा अपने देश में ही अन्य सम्प्रदाय के लोगों द्वारा भी सुने जाने वाले महान भजन गायक, जो ऑल इंडिया रेडियो (प्रसार भारती) के भजन सम्बन्धित कार्यक्रमों के आजीवन प्राण बने रहे .. जिनको आज की युवा पीढ़ी तो निःसन्देह ही जानती तक नहीं होगी; परन्तु उन स्वर्णिम दशकों के प्रत्यक्षदर्शी रहे हमारे जैसे लोग भी उनको विस्मृत कर चुके हैं। जबकि उन दशकों के अभिनेता-अभिनेत्रियों, राजनेताओं तक को हम बेशक़ आज भी नाम से जानते व पहचानते हैं .. शायद ...

कितनी दुःखद बात है, कि आज हम उन्हीं अद्वितीय महापुरुष - हरि ओम शरण जी को बिसरा चुके हैं। उससे भी दुःखद बात ये है, कि आज तथाकथित सोशल मीडिया के पन्नों पर लोकप्रिय .. किन्तु फूहड़ नृत्यांगना - सपना चौधरी के जितने यूट्यूबस् व व्यूअरस् उपलब्ध है, उतने हरि ओम शरण जी के नहीं .. शायद ...

दरअसल हम अक़्सर अनुभव करते हैं, कि हम अपने जीवन के जिस पहलू को बार-बार तथाकथित सोशल मीडिया पर देखते या 'सर्च' करते हैं; फिर उसी पहलू से जुड़े यूट्यूबस्, रील्स या गूगल न्यूज़ हमारे मोबाइल या डेस्कटॉप पर मंडराने लगते हैं। स्वाभाविक है, कि जब हमने लोकप्रियता की परिभाषा के अपभ्रंश स्वरूप को ही प्रमाणिक मान लिया है, तो ऐसे में सोशल मीडिया के पन्नों पर हरि ओम शरण जी की जगह सपना चौधरी का दिखना लाज़िमी है। वैसे भी वर्तमान में तथाकथित जागरण या माता की चौकी जैसे आयोजनों में प्रायः गाए-बजाए जाने वाले पैरोडीनुमा भजनों ने भक्तिभाव से परिपूर्ण भजनों की लोकप्रियता को कम कर दिया है .. शायद ...

विकिपीडिया पर भी बहुत ही कम जानकारी उपलब्ध है उनके बारे में। परन्तु जो भी जानकारी है, उसके अनुसार उनका जन्म जिस शहर में हुआ था, वह वर्तमान में पाकिस्तान में है। वैसे भी .. अगर हम स्वतंत्रता के समय के विभाजन से जुड़े अनगिनत मार-काट वाले नकारात्मक पक्ष को दरकिनार करके कुछ पल के लिए सकारात्मक पक्ष को निहारते हैं तो .. हम पाते हैं, कि भारतीय गीत-संगीत, साहित्य और सिनेमा को तत्कालीन विस्थापितों का अत्यधिक योगदान मिला है .. शायद ...

आइए .. मिलकर उन दशकों की गुनगुनी गूँज को पुनः अनुभव करके उनके लोकप्रिय राम भजनों की नैया पर अपने जीवन के भवसागर से क्षणिक ही सही, पर .. पार पाते हैं .. बस यूँ ही ...

वैसे उनके भजनों में मुझ जैसे तथाकथित नास्तिक को निजी तौर पर जो सर्वाधिक पसंद है .. वो है ...

और अंत में तथाकथित आस्तिकों के लिए चलते-चलते सुनते हैं .. बस यूँ ही ...

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


Tuesday, July 16, 2024

बना तो कीर्तिमान् ...


बढ़ी हो या नहीं 
तुम्हारी रौनक, 
पर बेटियों के हर
ग़रीब पिता की
बढ़ ही गयी होगी 
शायद कसक।
 
देख तुम्हारी 
अमीरी की
फिजूलखर्ची की 
हलचल,
वर्षों होते रहेंगे
कई सारे मन विह्वल।

ख़र्चा करोड़ों धन,
कई महीनों की रस्में,
प्रतिष्ठितों ..
नामवरों के जमघट,
बना तो कीर्तिमान्
बेशक अलबेला, अद्भुत।

पर इन सब से क्या ?
इतर ..
चौंसठ कलाओं से,
होंगे क्या कुछ
करतब विशेष भी
उनकी सुहाग-सेज पर ?

शायद .. नहीं।
फिर भला क्यों
व्यर्थ धन प्रदर्शन ?
करते क्यों नहीं
जनकल्याण में तुम भी
"टाटा" जैसा धन समर्पण ?


Sunday, July 14, 2024

नर्म बुग्याल अकूत ...


मूँदे
अपनी
आँखें,
मख़मली
ग़िलाफ़ में 
पलकों के,
मिलो ना 
कभी हमदोनों, 
रहो तुम भी मूक,
घंटों .. रहें हम भी मूक .. बस यूँ ही ...

तन तानती,
लेती अंगड़ाई,
थोड़ी अलसायी,
थोड़ी कुनमुनाती,
रहे पसरी
बाहों में मेरी
काया तुम्हारी,
मानो हों जैसे
हिमशिखरों की तलहटी में 
फैले नर्म बुग्याल अकूत .. बस यूँ ही ...

टटोलती उंगलियाँ
हमारी-तुम्हारी,
एक-दूसरे के 
देह को,
बिंदुओं के 
उभार से भरी 
ब्रेल लिपि के 
किसी पन्ने-सी,
होगी अनुभूति अद्भुत .. बस यूँ ही ...

करना 
टालमटोल कभी,
कभी-कभी 
टटोलना 
अंग-अंग
तन के,
एक-दूजे के,
कभी टोहना
एक-दूजे के मन-अमूर्त .. बस यूँ ही ...

Friday, July 12, 2024

हरकतों की हरारतों को ...


सिखला दो ना जरा 

'एडिट' करना भी कभी,

'फोटोशॉप एक्सप्रेस' से

मन की बातों को।


सिखला दो ना जरा 

'डिलीट' करना भी कभी,

मन की 'गैलरी' से

तुम्हारी यादों को।


सिखला दो ना जरा 

'रीसायकल बिन' भरना भी कभी,

ताकी कर सकूँ दफ़न

तुम्हारी बीती रूमानी बातों को।


सिखला दो ना जरा 

'एम्प्टी' करना भी कभी

'रीसायकल बिन', मिटा दे जो

तुम्हारे अर्थहीन वादों को।


सिखला दो ना जरा 

'अनडू' करना भी कभी,

संग बीते लम्हों की

शरारती हरकतों को।


सिखला दो ना जरा 

'सेव' करना भी कभी,

उन जवान पलों की

हरकतों की हरारतों को।


सिखला दो ना जरा 

'मैट्रिमोनियल साइट्स' देखना भी कभी,

भरे असंख्य बेहतर विकल्पों से,

तोड़ के संग किए प्रेम-संकल्पों को .. बस यूँ ही ...

Monday, July 8, 2024

खूँटे की रस्सी .. बड़ी हो या छोटी ... (२)


गतांक वाली बतकही यानी "खूँटे की रस्सी .. बड़ी हो या छोटी ... (१)" में हम अवगत हुए, कि जब नेत्रहीन पर .. दृष्टीहीन नहीं, बधिर पर .. समस्त मानव के हृदय-स्पंदन को सुनने वाली तथा आंशिक मूक पर .. समस्त विश्व में अपनी रचनाओं .. अपने आंदोलनों और समाज में किए गए सकारात्मक परिवर्तनों के माध्यम से बोलने वाली एक महिला - हेलेन एडम्स केलर .. अपने वृहत् दृष्टिकोण से कई सामाजिक समस्याओं के लिए जमीनी अभियान चला कर विश्वस्तरीय बदलाव ला सकती हैं, तो .. ऐसे में हमलोग जैसे मौखिक मुहीम चलाने वाले लोगों को .. यानी स्वयं को .. जिनके पास आँख, कान और बोलने वाला मुँह भी है  .. बौना महसूस करने में तनिक भी गुरेज़ नहीं करना चाहिए .. शायद ...

परन्तु .. हमें हमारी संतानों के रूप में अपनी भावी पीढ़ी को उनके पाठ्यक्रमों से इतर भी .. हेलेन एडम्स केलर और ऐनी सुलिवन मैसी जैसी विश्वस्तरीय महान विभूतियों के बारे में अवगत करानी चाहिए। बेशक़ .. विभिन्न शैक्षिक परीक्षाओं या प्रतियोगी परीक्षाओं को 'पास' करने हेतु विशिष्ट अंक प्राप्त करने भर के लिए नहीं, बल्कि उनमें एक वृहत् व विस्तृत दृष्टिकोण एवं उन्नत मानसिकता वाली सोचों की उत्पत्ति के लिए .. बस यूँ ही ...

अब आज के आख़िरी पृष्ठ में "खूँटे की रस्सी .. बड़ी हो या छोटी ... (२)" के शेष-विशेष अंश में कामवाली- पार्वती की मुसीबतों के बारे में उसी से जानते हैं और उनके समाधान अवश्यंभावी हो या ना हो, पर हमें उनकी तलाश के लिए अवश्य ही हर सम्भव कोशिश करनी चाहिए .. शायद ...

वैसे इस बतकही के प्रेरणास्रोत की बातें भी अभी बतकही के अन्त में हम अवश्य करेंगे, तो अब .. तब तक झेलते हैं इस बतकही को .. बस यूँ ही ...

खूँटे की रस्सी .. बड़ी हो या छोटी ... (२)

अभी दोपहर के लगभग दो-ढाई बजे काकोली घोष, सौम्या रावत, नैना सेमवाल और पार्वती .. सभी का जमावड़ा जम गया है नलिनी (अष्ठाना) आँटी के घर पर।

नलिनी - " क्या हुआ पार्वती ? आज तुम काम करने भी नहीं आयी। कैसी मुसीबत आ पड़ी है तुम पर ? "

पार्वती - " आपसे बतलाने में लाज आ रही है आँटी .. हिम्मत नहीं हो पा रही .. आपको बतलाने की .. "

नलिनी - " लज्जा करने से कैसे काम चलेगा पार्वती ? ऐसे में थोड़े ही ना मुसीबत टल जाएगी तुम्हारी .. आँ .. "

सौम्या - " ऐसे में हमलोगों के कामों का भी नुक़सान हो रहा है .. वो अलग है पार्वती .. "

पार्वती अपने झुके सिर को और भी दस-बीस डिग्री नीचे की ओर झुका कर .. कभी अपनी कर्ण कुण्डलिनी में अपनी तर्जनी को फिराती हुई, तो कभी कर्णफूल टँगी अपनी कर्ण पालि को तर्जनी व अँगूठे की मदद से नीचे की ओर तानती हुई .. अपनी आँखों में उमड़े आँसुओं के आवेग को रोकने का असफ़ल प्रयास कर रही है। फिर भी नलिनी आँटी के अतिथि कक्ष के 'मार्बल' वाले साफ़-सुथरे फ़र्श पर उसके आँसू की दो-चार टपकी बूँदों पर वहाँ उपस्थित, पार्वती के अलावा, सभी चारों लोगों की नज़र पड़ ही गयी है।

नलिनी - " पार्वती ! .. ऐसे सिर झुका कर रोने से कोई हल नहीं निकलने वाला। समझी ना ! .. मान लो .. अब अगर हमें 'पाइल्स' (बवासीर) या 'ल्यूकोरिआ' (श्वेत प्रदर) जैसी बीमारी हो जाएगी, तो .. उसकी चर्चा करनी .. हिचक या लज्जा करने जैसी कोई गलत या बुरी बात कैसे हो सकती है भला ! .. आयँ ! .. परिवार से, समाज से या डॉक्टर से साझा करने के बजाए उसको बुरी बातें कह के हिचक या शर्म से मौन रहने पर तो .. वो बीमारी या कोई भी मुसीबत .. और भी ज्यादा जानलेवा हो सकती है .. नहीं क्या ? .. बोलो ! .. "

पार्वती के प्रतिवचन सुनने के लिए कुछ पल के लिए कमरे में मानो एक चुप्पी व्याप्त हो गयी है। सब के सब निःशब्द .. पार्वती भी .. तभी ऐसे में ..,.

नलिनी - " अब बोलो भी पार्वती .. "

अब बमुश्किल पार्वती के होंठ हिले हैं .. लगभग रुआँसा होकर ..

पार्वती - " ऐसे तो आँटी .. वो (उसका धर्मपति) तो रोज रात में देशी दारू के नशे में धुत् हो कर घर आता है और .. कई रोज़ मेरी मर्ज़ी ना रहते हुए भी बिस्तर पर जैसे-जैसे उसका मन करता है, वैसे-वैसे जहाँ-तहाँ .. इधर-उधर .. जैसे-तैसे मेरे देह को नोचता-भंभोरता है आँटी .. उसके मुँह से आने वाले दारु के साथ-साथ खैनी और बीड़ी के बास को भी अपनी साँसें रोके-रोके .. पर जब अपना दम घुटने लगता है ना .. तब .. तब उस बास को बर्दाश्त करके .. उसी बास में गहरी साँस भी लेनी ही पड़ जाती है .. उसके फारिग होने तक .. पर ... "

काकोली - " तो ? .. इसमें ऐसी कौन सी नई बात हो गयी ? मर्द लोग तो ये सब खाते-पीते ही है ना ! .. अन्तर बस्स ! .. इतना ही है, कि तुम दारु, खैनी और बीड़ी के दुर्गन्धों को झेलती हो और हमारे जैसे लोग अंग्रेजी शराब, गुटखे और सिगरेट के .. "

पार्वती - " उतना तो हम भी समझते और .. बर्दाश्त भी करते हैं दीदी .. पर .. ख़ैर है, कि नशे में वो जल्दी ही फारिग हो जाता है। पर .. कल रात मुआ ना जाने कौन सा कैप्सूल निगल कर .. उसे का (क्या) कहते हैं .. बिगरा .. "

काकोली - " पगली ! .. बिगरा नहीं ..  वियाग्रा कहते हैं उसको .. "

पार्वती - " हाँ - हाँ .. वही .. खा कर कल रात .. देर तक अपनी आदतों और इच्छानुसार जहाँ-तहाँ भंभोरता रहा मेरे देह को और .. सुबह उठी तो .. सुबह .. 'पॉटी' करने में दर्द सहा नहीं जा रहा था .. बहुत चीख़ी, तड़पी .. पर मेरी वहाँ सुनता ही कौन भला ? .. "

काकोली - " ओह ! .. "

पार्वती - " मुँह में तो पहले से ही छाले हैं .. जब भी थोड़ा ठीक होता है, फिर से वही सब करता है मुँह में भी .. फिर से छाला बढ़ जाता है .. वो सब करने के समय मुँह और भी ज्यादा छन्छनाता है आँटी .. नहीं करो या करने दो तो .. जानवरों की तरह मारता-पीटता है .."

नलिनी - " ओह ! .. .. कोई बात नहीं .. मुँह के छाले के बारे में तो तुम पहले बतलायी ही थी। पर .. उसकी वजह नहीं। मैं समझ रही थी, कि पेट की गर्मी से .. ख़ैर ! उस की दवा तो तुम पहले से ही .. ले ही रही हो ना ? "

पार्वती - " हाँ .. आँटी खा रही है और .. लगा भी रही हूँ। नैना दीदी को तो .. सब कुछ पहले से पता है। उनसे हमेशा सब बतलाती है हम। उनसे कुछ भी नहीं छुपाती, पर .. आपसे बोलने में ... "

नलिनी - " ख़ैर ! .. कोई बात नहीं .. 'बाथरूम' के वक्त जो दर्द हो रहा है ना .. मेरे पास कुछ 'जेली' और 'क्रीम' हैं .. ले जाओ .. जहाँ दर्द हो रहा है, वहाँ लगाओ .. तुमको बहुत ही आराम मिलेगा .. "

पार्वती - " आपको भी इसकी जरूरत .. .. "

नलिनी - " अब ये मत पूछो .. बस दवाएँ ले जाओ। मैं नया खरीद लाऊँगी। "

सौम्या - " ये कौन सी दवा हैं ?"

नलिनी - " एक तो 'नार्मल' 'पेट्रोलियम जेली' है, जो 'मॉइस्‍चराइज' करता है और दूसरा 'जिंक ऑक्साइड' वाला "डेसिटिन" है, जो 'रैश' यानी खरोंच को भरता है। साथ में 'लिडोकेन' युक्त सुन्न करने वाली 'क्रीम'- "प्रिपरेशन एच" जो .. मल त्याग के दौरान घायल अंग को सुन्न करके उस के जलन और दर्द से अस्थायी तौर पर राहत दिलाता है .. " 

सौम्या - " ओ ! .. अच्छा ! .. "

नलिनी - " इसके लिए 'प्रिस्क्रिप्शन' की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है। "डिटॉल", 'कंडोम' और 'सैनिटरी नैपकिन' की तरह ही .. ये सब एक 'ओ टी सी प्रोडक्ट्स' हैं। "

नैना - " ओ टी सी ... ? "

काकोली - "ओ टी सी यानी 'ओवर-द-काउंटर प्रोडक्ट्स' .. जिनके लिए 'डॉक्टर' के 'प्रिस्क्रिप्शन' की आवश्यकता या अनिवार्यता नहीं होती है। "

नलिनी - " जानती हो .. नारी देह के प्रकृत्ति प्रदत सारे विवर जब .. आवश्यकता की जगह विवशता का रूप ले लेते हैं, तो .. किसी भी जन्मदात्री की जन्नत-सी लगने वाली ज़िंदगी जहन्नुम में तब्दील हो जाती है। "

काकोली - " सात फेरे, सात जन्मों की हम लाख बातें कर लें, पर मर्ज़ी तो .... (?) .. ख़ैर ! .. ज्यादा क्या बोलना .. भारतीय वैवाहिक जीवन सैद्धांतिक या धार्मिक रूप से जैसा भी जान पड़ता हो, मगर वास्तव में है तो .. लगभग कई सारे समझौतों का संविधान भर ही .. "

नलिनी - " महिला-पुरुष की समानता अख़बारों और टी वी के न्यूज़ चैनलों के अलावा नारी विमर्श वाले मंचों पर तो बख़ूबी दिखता है, पर कितनी समानता है, ये तो .. वो औरत ही जानती व समझती है, जिसे अपने तथाकथित घर की चहारदीवारी के पीछे अपने ही 'बेडरूम' में वो सब झेल कर ही / भी रहना पड़ता है। "

पार्वती अपनी चारों मालकिनों की उसके पल्ले ना पड़ने वाली आपसी बातें बस चुपचाप टुकुर-टुकुर देखते (?) हुए .. वहाँ से बच निकलने की जुगत में नलिनी जी को सम्बोधित करते हुए ..

पार्वती - " आपलोगों के लिए चाय बना दें आँटी .. "

नैना - " अरे ! .. नेकी और पूछ-पूछ .. जल्दी ले आओ .. पर हाँ .. अदरख़ डालना मत भूलना .. "

पार्वती फ़ौरन नलिनी जी के रसोईघर की ओर लपक ली है। 

पार्वती के जाते ही .. लगभग फुसफुसाते हुए ...

सौम्या - " छोटे लोगों में तो .. ये सब चलता है आँटी .. "

काकोली - " नहीं .. ऐसा नहीं है .. छोटे लोग और बड़े लोगों की बात नहीं है। चलता तो सब में है .. बस .. उनके संज्ञा बदल जाते हैं .. उनकी व्याख्या और व्याख्यान बदल जाते हैं .. बस्स .. "

नलिनी - " रात के अँधियारे में या बियाबान जैसे एकान्त में .. बिस्तर पर नारी का सान्निध्य मिलते ही हर पुरुष .. केवल और केवल पुरुष रह जाता है .. तब वह कोई .. वक़ील-जज, टीचर-प्रोफेसर, चपरासी-अफ़सर, डॉक्टर-इंजीनियर, मंत्री-व्यापारी या मज़दूर-मिस्त्री नहीं रह जाता / पाता है .. केवल और केवल विशुद्ध पुरुष होता है .. अपनी-अपनी पौरुष क्षमता और काम-क्रीड़ा सम्बंधित अर्जित ज्ञान के अनुरूप .. मैं .. गलत तो .. नहीं बोल रही हूँ ना ? .. " 

काकोली - " ना .. ना-ना .. ये भी सही है आँटी .. "

नलिनी - " हमारी धरती पर .. सभी के अपने-अपने क्षेत्र या समाज के अनुसार .. नारीवाद की अपनी-अपनी अलग-अलग परिभाषा है और हम हैं, कि विश्व पटल पर एक ही ढर्रे पर नारी विमर्श की बातें कर-कर के समझ रहें हैं, कि हम समाधान तलाश रहे हैं जैसे ... " - आगे उपस्थित समस्त महिला मंडली की मूक मुख-प्रतिक्रिया को निहारते हुए - " अगर हम हिमालय के आसपास वाले क्षेत्रों से धरती का अवलोकन करें, तो हिमाच्छादित पर्वत की चोटियाँ ही नज़र आएगीं ना ? पर .. इसका मतलब ये तो नहीं, कि धरती पर कहीं भी ज्वालामुखी है ही नहीं .. हमारा समाज भी इसी धरती पर रचा-बसा तो है ही और .. है भी इसी धरती की तरह .. कहीं ज्वालामुखी तो .. कहीं बर्फ़ .. "

नैना - " वो तो है आँटी .. पर हम बचाव के लिए इसकी शिकायत पुलिस से तो कर ही सकते हैं ना ? .. "

नलिनी - " नहीं कर सकते नैना .. 'आईपीसी' की धारा 375 ए, बी, सी और डी के बाद नीचे अपवाद में लिखा हुआ है, कि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी, जिसकी उम्र पंद्रह वर्ष से कम न हो, के साथ किया गया कोई भी यौन संबंध या यौन क्रिया; जिनमें पत्नी के योनि, गुदा या मुँह में अपना उत्तेजित लिंग स्खलन तक डालना बलात्कार नहीं है। उसकी मर्ज़ी से या .. या बिना उसकी मर्ज़ी के ... "

नैना - " आईपीसी .. ? "

काकोली - " 'आईपीसी' मतलब .. 'इंडियन पेनल कोड' यानी भारतीय दंड संहिता .." 

नैना - " ओ ! .. "

नलिनी - " अब इसी साल (2024) एक जुलाई से इसे भारतीय न्याय संहिता यानी 'आई पी सी' की जगह 'बी एन एस' का नाम दिया गया है और धारा 375 अब .. धारा 63 हो गया है। "

सौम्या - " ओ ! .. अच्छा ! .. "

नलिनी - " अब चूँकि वैवाहिक बलात्कार को अभी तक कानून द्वारा मान्यता नहीं दी गई है, इसीलिए वो सारे अप्राकृतिक अपराध जो सामान्य रूप से आईपीसी की धारा 375 के दायरे में आते हैं, यदि यह पति और उसकी धर्मपत्नी के बीच हुआ है, तो उसे 'आईपीसी' की धारा 375 या 'बी एन एस' की धारा 63 के तहत बलात्कार के अपराध के बराबर नहीं माना जाता है। ऐसे में उपरोक्त घिनौने व अप्राकृतिक कृत्यों जैसे किसी भी यौन क्रिया के लिए पत्नी की सहमति या असहमति का भी .. कोई भी औचित्य नहीं रह पाता / जाता है। "

काकोली - " कम-से-कम "सहमति" वाली बात को तो .. इस धारा में संशोधन कर के निश्चित रूप से जोड़ी ही जानी चाहिए ना ? .. "

सौम्या - " हाँ .. सच में ऐसा ही होना चाहिए .. क्योंकि दोनों की समान रूचि के अनुसार सहमति से अगर जो कुछ भी होता है .. प्राकृतिक या अप्राकृतिक .. दोनों को ही अच्छा लगता है, तब तो ठीक है; पर .. वर्तमान में उपलब्ध धारा के अपवाद के अनुसार रूचि या सहमति ना रहने पर भी जबरन की गयी किसी भी उत्पीड़न के लिए .. किसी से भी शिकायत नहीं की जा सकती है .. है ना ? .. " - सौम्या अपनी लटों को झटकाते हुए आगे और भी आवेश के साथ बोल रही है - " और वो भी .. 'आई पी सी' की धारा 375 या आज की 'बी एन एस' की धारा 63 के अपवादों में बिना संशोधन के ? .. "

नलिनी - " दरअसल हम उसी समाज के अंग या अंश हैं, जिस समाज में गाय को माँ का दर्जा भी देते हैं और खूँटे से बाँध कर भी रखते हैं। उसके बछड़े के हिस्से के दूध को हड़प कर हम अपनी भावी पीढ़ी को पाठ भी पढ़ाते हैं, कि गाय दूध देती है। यही हम अपने पुरखों से भी सुनते-सीखते आये हैं। जबकि गाय बेचारी दूध देती तो है, पर अपने बछड़े के लिए .."

सौम्या - " हाँ .. सो तो है .. "

नलिनी - " अब गाय के खूँटे की रस्सी .. बड़ी हो या छोटी .. है तो बन्धन ही ना ? .. खूँटे से मुक्ति पाकर ही कोई / कोई-कोई अमृता प्रितम या महादेवी वर्मा बन पाती / जाती हैं। "

तभी पार्वती एक 'ट्रे' में चार 'कप' अदरख़ वाली चाय ले कर आ गयी है। उसके बाद सभी मिलकर अब आगे भी गपशप के साथ चाय पीने में व्यस्त हो गयीं हैं। पास ही बैठी पार्वती भी एक गिलास में अपनी चाय सुरक रही है।

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प्रेरणास्रोत की बातें :-

ये बतकही (कहानी) एक मनगढ़न्त कहानी भले ही हो या है भी, पर .. ये मुद्दा या विषय मनगढ़न्त नहीं है। दरअसल इसकी प्रेरणा 'आई पी सी' की धारा 375 या 01 जुलाई 2024 के दिन से आज की 'बी एन एस' की धारा 63 के दूसरे अपवाद को पढ़ कर मिली। वस्तुतः उन्हें पढ़ कर मन विचलित हो गया और तत्क्षण एक काल्पनिक .. पर इसे पूरी तरह काल्पनिक भी नहीं कह सकते .. कहानी/घटना दिमाग़ में कौंधी, कि .. अगर जिस किसी भी समाज या समुदाय में महिलाओं की इच्छा के विरुद्ध भी ऐसी घटनाएँ घटित होती होंगी .. जिनकी शब्दातीत पीड़ा उनके मन में ही घुट कर रह जाती होंगी और .. परन्तु हम औपचारिक खोखला नारी विमर्श कर-कर के महिलाओं की पीड़ा की इतिश्री समझ ले रहे हैं .. शायद ... 

हम आने वाले कल में .. चाँद और मंगल पर जो बस्तियाँ बसाने जा रहे हैं, क्या .. वहाँ भी एक पुरुष प्रधान समाज वाली ही बस्ती बसेगी, जहाँ महिलाओं की इच्छाओं का सम्मान, मूल्य या मूल्यांकन नहीं होगा ? 

आपकी सुविधा के लिए वर्त्तमान 'बी एन एस' की धारा 63 की अक्षरशः प्रतिलिपि उसके अपवाद सहित, जो 'आई पी सी' की धारा 375 के ही समकक्ष है, यहाँ चिपका रहा हूँ .. बस यूँ ही ... 

बलात्कार को परिभाषित करती 'आई पी सी' की धारा 375 यानी वर्त्तमान में 'बी एन एस' की धारा 63 और उसके दोनों अपवाद :-

【 " एक आदमी को "बलात्कार" करने वाला कहा जाता है यदि वह-

(क) किसी भी सीमा तक अपने लिंग को किसी महिला की योनि, मुँह, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश कराता है या उसे अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए मजबूर करता है; या

(ख) किसी भी सीमा तक किसी वस्तु या शरीर के किसी भाग को, जो लिंग नहीं है, किसी स्त्री की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रविष्ट कराता है या उससे या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने को कहता है; या

(ग) किसी स्त्री के शरीर के किसी भाग को इस प्रकार प्रभावित करेगा कि उसकी योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या शरीर के किसी भाग में प्रवेश हो जाए या उससे अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा कराए; या

(घ) निम्नलिखित सात में से किसी भी प्रकार की परिस्थिति में किसी स्त्री की योनि, गुदा, मूत्रमार्ग पर अपना मुँह लगाता है या उसे अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए कहता है :-

(i) उसकी इच्छा के विरुद्ध;

(ii) उसकी सहमति के बिना;

(iii) उसकी सहमति से, जब उसकी सहमति उसे या किसी ऐसे व्यक्ति को, जिससे वह हितबद्ध है, मृत्यु या क्षति का भय दिखाकर प्राप्त की गई हो;

(iv) उसकी सहमति से, जब पुरुष जानता है कि वह उसका पति नहीं है और उसकी सहमति इसलिए दी गई है क्योंकि वह मानती है कि वह कोई दूसरा पुरुष है जिसके साथ वह विधिपूर्वक विवाहित है या होने का विश्वास करती है;

(v) उसकी सहमति से, जब ऐसी सहमति देते समय, वह मानसिक विकृति या नशे के कारण या उसके द्वारा व्यक्तिगत रूप से या किसी अन्य के माध्यम से किसी नशीले या अस्वास्थ्यकर पदार्थ के सेवन के कारण, उस पदार्थ की प्रकृति और परिणामों को समझने में असमर्थ हो, जिसके लिए वह सहमति दे रही है;

(vi) उसकी सहमति से या उसके बिना, जब वह अठारह वर्ष से कम आयु की हो;

(vii) जब वह सहमति व्यक्त करने में असमर्थ हो।

स्पष्टीकरण 1.- इस धारा के प्रयोजनों के लिए, "योनि" में लघुभगोष्ठ भी सम्मिलित होंगे।

स्पष्टीकरण 2.-सहमति से स्पष्ट स्वैच्छिक समझौता अभिप्रेत है, जब महिला शब्दों, इशारों या किसी भी प्रकार के मौखिक या गैर-मौखिक संचार द्वारा, विशिष्ट यौन क्रिया में भाग लेने की इच्छा व्यक्त करती है:

परन्तु यह कि यदि कोई महिला प्रवेशन के कार्य का शारीरिक रूप से प्रतिरोध नहीं करती है तो केवल इस तथ्य के आधार पर उसे यौन क्रियाकलाप के लिए सहमति देने वाली नहीं माना जाएगा।

अपवाद 1.- कोई चिकित्सीय प्रक्रिया या हस्तक्षेप बलात्कार नहीं माना जाएगा।

अपवाद 2.- किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ, जबकि पत्नी अठारह वर्ष से कम आयु की न हो, संभोग या अन्य अप्राकृतिक यौन कृत्य (अपने लिंग को पत्नी की योनि, मुँह, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश करना) बलात्कार नहीं है। " 】

अन्त में एक प्रश्न :-

लब्बोलुआब यही है, कि पति द्वारा कानूनी रूप से अपनी विवाहित धर्मपत्नी के साथ, उसकी इच्छा या सहमति के विरुद्ध भी, अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना 'आईपीसी' की धारा 375 यानी 'बी एन एस' की धारा 63 के तहत अपराध नहीं है। 

मतलब .. हर भारतीय पुरुष को अपनी विवाहित धर्मपत्नी को उसकी इच्छाओं के विरुद्ध भी भरपूर रौंदने के लिए कानून का अनुचित संरक्षण प्राप्त है। 

पति रूपी पुरुष को मिला यह अनुचित अधिकार .. पत्नी रूपी महिला को एक बंधुआ मजदूरिन या .. ठेठ में कहें, तो .. एक यौन कर्मी की श्रेणी में लाकर खड़ा नहीं कर देता है क्या ???


Sunday, July 7, 2024

विधुर विलाप ...


रुदाली धर्म निभाते हुए,

विधवा विलाप करने वाले,

हत्या निर्दोषों की बताने वाले,

बतकही हमारे जैसे कहने वाले,

ढोंगी बाबाओं को दोषी ठहराने वाले ...


दोषी तो निर्दोष ही सारे,

बाबा ढोंगी को बनाने वाले,

महात्मा पतित को जताने वाले,

बिना कर्म चाह फल की रखने वाले ,

अंधविश्वास, अंधभक्ति अपनाने वाले ...


काका हाथरसी आज होते

जो हास्य कविता सुनाने वाले,

पढ़ कविता यमदूत* भगाने वाले,

बोर कर बाबा फक्कड़* को मारने वाले,

हाथरस में थे बाबा कब फिर बचने वाले ? ...


बाबाओं के हों जितने रेले

या विज्ञापनों के जितने भी मेले,

संग बाला-नारियों के ही होते खेलें,

मरती भी हैं वही, जब हो भगदड़ के झमेले,

आओ तब विधवा विलाप नहीं, विधुर विलाप रो लें ..

.. बस यूँ ही ...

* = उपरोक्त बतकही में काका हाथरसी जी (प्रभुलाल गर्ग) से सम्बन्धित दूत* और फक्कड़* वाली बात उनकी हास्य कविता "अद्भुत औषधि" से प्रेरित है। संदर्भवश उनकी कविता की अक्षरशः प्रतिलिपि निम्नलिखित है :- 

              अद्भुत औषधि

कवि लक्कड़ जी हो गए, अकस्मात बीमार ।

बिगड़ गई हालत मचा, घर में हाहाकार ।।

घर में हाहाकार , डॉक्टर ने बतलाया ।

दो घंटे में छूट जाएगी , इनकी काया ।।

पत्नी रोई – ऐसी कोई सुई लगा दो ।

मेरा बेटा आए तब तक इन्हे बचा दो ।।


मना कर गये  डॉक्टर , हालत हुई विचित्र ।

फक्कड़ बाबा आ गये , लक्कड़ जी के मित्र ।।

लक्कड़ जी के मित्र , करो मत कोई  चिंता ।

दो घंटे क्या , दस घंटे तक रख लें जिंदा ।।

सबको बाहर किया , हो गया कमरा खाली ।

बाबा जी ने अंदर से चटखनी लगा ली ।।


फक्कड़ जी कहने लगे – “अहो काव्य के ढेर ।

हमें छोड़ तुम जा रहे , यह कैसा अंधेर ?

यह कैसा अंधेर , तरस मित्रों पर खाओ ।

श्रीमुख से कविता दो चार सुनाते जाओ ।।”

यह सुनकर लक्कड़ जी पर छाई खुशहाली ।

तकिया के नीचे से काव्य किताब निकाली ।।


कविता पढ़ने लग गए , भाग गए यमदूत ।

सुबह पाँच की ट्रेन से , आये कवि के पूत ।।

आये कवि के पूत , न थी जीवन की आशा ।

पहुँचे कमरे में तो देखा अजब तमाशा ।।

कविता पाठ कर रहे थे , कविवर लक्कड़ जी ।

होकर बोर, मर गये थे बाबा फक्कड़ जी ।। 】


Thursday, July 4, 2024

शब्दातीत चीख पीड़ाओं की ...


दरवाज़े पर कहीं बाहर दरबान की तरह 

या भीतर कहीं सजावटी सामान की तरह, 

संभ्रांत अतिथि कक्षों, आलीशान मॉलों में,

हवाईअड्डे, बार-रेस्टोरेंटों या पाँच सितारा होटलों में

हैं मूर्तियाँ तुम्हारी खड़ी-बैठी ध्यानमुद्राओं में, जिन्हें

देख के सच्ची-मुच्ची .. बहुत ही कष्ट होता है .. बस यूँ ही ...


दुष्प्रभाव से मद्यपान के क्षरित हों या ना हों,

मानव वृक्क-हृदय .. सारे के सारे तन हमारे, 

मादकता में मदिरा की भले ही हो या ना हो,

बुद्धि शिथिल व्यसनी जन की, तो भी .. उससे

पहले .. सच्ची-मुच्ची विवेक तो भ्रष्ट होता है, जिन्हें

देख के सच्ची-मुच्ची .. बहुत ही कष्ट होता है .. बस यूँ ही ...


मदिरा है प्रतिष्ठा का प्रतीक इस सभ्य समाज में 

बुद्धिजीवियों के बीच, है अनोखी सीख इनकी,

कबाबों .. चिकेन जैसे चखनों में दिखती ही नहीं,

सनी सजीवों की शब्दातीत चीख पीड़ाओं की, पर ..

ऐसे में .. सच्ची-मुच्ची संस्कार तो नष्ट होता है। 

देख के सच्ची-मुच्ची .. बहुत ही कष्ट होता है .. बस यूँ ही ...


पीपल तले, शुद्ध प्राणवायु में तुम रमने वाले,

उनकी तो ना सही, पर धुएँ में धूम्रपान के उनके, 

घुटते ही होंगे दम तो अवश्य ही तुम्हारे ..

हुँकारों से धर्मों-सम्प्रदायों के, हर्षित हैं वो सारे, पर परे

इससे .. सच्ची-मुच्ची मानव मन त्रस्त होता है।

देख के सच्ची-मुच्ची .. बहुत ही कष्ट होता है .. बस यूँ ही ...


{ महान रचनाकार हरिवंश राय बच्चन जी की कालजयी रचनाओं में से एक - "बुद्ध और नाचघर" को पढ़ने का तो नहीं, परन्तु लगभग सत्तर-अस्सी के दशक वाले वर्षों में एक चमत्कार की तरह अवतरित व प्रचलित उपकरण - टेप रिकॉर्डर और कॉम्पैक्ट कैसेट यानी ऑडियो कैसेट या टेप के सौजन्य से उन्हीं के सुपुत्र अमिताभ बच्चन की आवाज़ में सुनने का मौका अवश्य मिल पाया था। उन्हीं दौर में उपरोक्त उपकरण से ही मन्ना डे जी की मधुर आवाज़ में हरिवंश राय बच्चन जी की ही एक और दर्शन से भरी कालजयी रचना "मधुशाला" को भी सुनने का सुअवसर प्राप्त हुआ था।

तब भी पहली बार एवं तत्पश्चात् बारम्बार सुनने पर उपरोक्त दोनों रचनाओं ने मन पर गहरी छाप छोड़ी थी और आज भी बुद्ध की प्रतिमाओं के अनुचित स्थानों पर अनुचित प्रयोग किए जाने वाले दृश्यों को देखते ही .. संवेदनशील मन व्यथित व विचलित हो जाता है और .. स्वतःस्फूर्त कुछ बतकही फूट ही पड़ती है। }