प्रकृति प्रदत्त पदार्थों-जीवों का कुछ-कुछ जाना हुआ और कुछ-कुछ अभी भी अंजाना-अनदेखा-सा समुच्चय भर ही तो है हमारा समस्त ब्रह्माण्ड .. शायद ... तभी तो शायद हमारे पाषाणकालीन पुरख़े भी प्रकृति की शक्ति को नमन करते होंगे। कालान्तर में पुरखों की बाद की कड़ियों ने इसी शाश्वत सत्य- प्रकृति का मानवीकरण करते हुए भगवान को गढ़ना शुरू कर दिया होगा। हमारे पुरख़े आग, पहिया, कृषि इत्यादि की प्राप्त जानकारी या ख़ोज के साथ अलग-अलग भौगोलिक परिवेशों में कई-कई क्षेत्रों में कई-कई प्रकार के अलग-अलग खोजों के साथ विकास करते हुए पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में आज यहाँ तक पहुँचे हैं और भविष्य में खोज निरन्तर जारी भी रहनी है .. शायद ...
इसी प्रकृति की देन हम मानवों की शारीरिक संरचनाओं में कुछ पूरक अन्तरों के आधार पर ही मूलतः दो जातियों- (अभी फ़िलहाल तीसरी जाति- किन्नरों की बात नहीं करें तो)- स्त्री-पुरुष, औरत-मर्द, मादा-नर का जमघट ही तो है हमारी पृथ्वी पर। इसी प्रकृति ने स्त्री जाति को पुरुष जाति से इतर गर्भाधान की एक पीड़ादायक पर अनमोल-अतुल्य शक्ति प्रदान की है, जिस से वह हम मानव की दोनों जातियों की नस्लों की कड़ी रचती है। उम्र की जिस देहरी पर स्त्री जब अपनी बाल्यावस्था से किशोरावस्था में प्रवेश करते हुए इस प्रकृति प्रदत्त वरदान हेतु सक्षम होने के लिए अग्रसर होती है, तभी देह के दरवाज़े पर अनायास एक अन्जानी-सी दस्तक होती है और ... बचपन के अल्हड़पन में ख़लल डालने वाली उसी दस्तक को मासिक धर्म, रजोधर्म, माहवारी या महीना (Menstural Cycle, MC या Period) कहते हैं .. शायद ...
सर्वविदित है कि आज अठाईस मई को पूरी दुनिया में "मासिक धर्म स्वच्छता दिवस" या "विश्व मासिक धर्म दिवस" मनाया जाता है; जिसका आरम्भ जर्मनी के एक एनजीओ (NGO-Non-Governmental Organization)- वॉश यूनाइटेड (Wash United) ने सन् 2014 ईस्वी में किया था। इसके अठाईस तारीख़ को ही मनाने का कारण शायद मासिक घर्म के चक्र का अठाईस दिनों का होना है। इसको मनाने का उद्देश्य लड़कियों या महिलाओं को महीने के उन पाँच दिनों में स्वच्छता और सुरक्षा के लिए विश्व स्तर पर जागरूक करना था या है भी .. शायद ...
यूँ तो यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। जिसके तहत दस से पन्द्रह साल की आयु के मध्य लड़कियों के अण्डाशय (Ovary) में एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रोन (Estrogen & Progesterone) नामक हार्मोन (Hormone) उत्पन्न होने के कारण अण्डाशय हर महीने एक विकसित डिम्ब (अण्डा/Egg) उत्पन्न करना शुरू कर देते हैं। वह अण्डा, अण्डाशय को गर्भाशय (Uterus) से जोड़ने वाली अण्डवाहिका नली (फैलोपियन ट्यूव/Fallopian tube) के द्वारा, गर्भाशय में जाता है। जिसको अण्डोत्सर्ग (ओव्यूलेशन/Ovulation) कहते हैं। इसी दौरान गर्भाशय रक्त युक्त झिल्ली की एक ताज़ी परत बनाता है, जहाँ उसका अस्तर रक्त और जैविक तरल पदार्थ से गाढ़ा हो जाता है ताकि अण्डा उर्वरित हो सके और शिशु के रूप में विकसित हो सके। इसी डिम्ब का किसी पुरूष के शुक्राणु से सम्मिलन न होने पर यह, गर्भाशय की रक्त युक्त झिल्ली जिसका उपयोग नहीं होता है, के साथ एक स्राव बन कर योनि से निष्कासित हो जाता है। जिसको मासिक धर्म कहते हैं, जिस दौरान तीन से सात दिनों तक में लगभग बीस से साठ मिलीलीटर रक्तस्राव होता है। इसके एक बार आरम्भ होने के बाद हर महीने सामान्यतः अठाईस दिनों के बाद इसकी पुनरावृत्ति होती है, जो प्रायः गर्भवती के गर्भकाल में या रजोनिवृत्ति शुरू होने के बाद ही रूक पाती है।
बहरहाल हम भी रुक कर विश्राम कर लेते हैं और आप भी और .. इसके अगले भाग "आषाढ़ के वो चार दिन ... (भाग-२)" के साथ मिलते हैं .. बस यूँ ही ...