ऐ ज़िन्दगी !
तू ऊहापोह की गठरी-सी
पता नहीं कितनी परायी
और ना जाने तू कितनी सगी री ...
लगती तो है तू कभी - कभी
लियोनार्डो दी विंची की मोनालिसा के
होठों-सी रहस्यमयी और अतुल्य, क़ीमती भी
दिखती किसी को मुस्कुराती कभी
तो किसी को दिखती उदास भी ...
गर्भ के गुंजन से शरुआत होने वाली
जन्म से जवानी तक का आरोह और
जवानी से बुढ़ापे तक का अवरोह जो
ख़त्म होती मृत्यु के सम पर
कला और संगीत की तू एक कॉकटेल है ज़िन्दगी ...
संघर्षरत अनगिनत शुक्राणुओं से
मात्र एक अदद ... या कभी-कभी
दो या तीन या फिर उस से भी ज्यादा
शुक्राणु का समान संख्या में
डिम्बवाहिनियों के मुश्किल भरे
रास्ते का गुमनाम सफ़र तय कर
अंडाणु से मिलकर युग्मज बनने तक से
चिता के राख में परिवर्तित होने तक
और इस बीच शुक्राणुओं वाले बुनियादी संघर्ष से
प्रेरित ताउम्र ज़िन्दगी का संघर्षशील रहना
मानो रसायन विज्ञान के असंतृप्त यौगिक का
संतृप्त यौगिक बनने तक का अनवरत
एक अदद "मन के हमसफ़र"-सा उत्प्रेरक का
साथ लिए गतिशील, प्रयत्नशील
एक सफ़र है ज़िन्दगी या यूँ कहें कि है तू
शुक्राणु और अंडाणु के कॉकटेल से बनी
तभी तो ताउम्र एक नशा लिए बीतती है तू ज़िन्दगी
जीव-रसायन विज्ञान की तू एक कॉकटेल है ज़िन्दगी ...
और कभी-कभी प्रतीत होती है तू
बचपन में पढ़े सामान्य-विज्ञान के
चलने वाले अनवरत जल-चक्र की तरह
हाँ .... जल-चक्र जो कभी थमता नहीं
रूकता नहीं... बस चलता ही रहता है
अनवरत चल रही धौंकनी-सी साँसों की तरह
हर पल स्पन्दित हृदय-स्पन्दन की तरह
बस रूप बदलता रहता है अनवरत कर
कभी भौतिक तो कभी रासायनिक परिवर्त्तन
ऐ ज़िन्दगी ! तू भी तो कभी मरती ही नहीं
बस रूप बदलती रहती है
रामलीला के पात्रों की तरह
चलता रहता है तेरा ये सफ़र अनवरत
मेरे पिता से मुझ में और मुझ से मेरे पुत्र में
पिता जी की साँसे, धड़कनें बस होती हैं
हस्तांतरित मुझ में और मुझ से मेरी संतान में
पिता मरते हैं तो बस मरता है देह
रूकती हैं साँसे, धड़कनें, थमता है रक्त-प्रवाह
ज़िन्दगी भला कहाँ मरने वाली !!?
मृत काया भले ही जल जाती चिता पर
जहाँ चटकती हैं च्ट-चटाक कई हड्डियाँ
ना ...ना .. पूरा का पूरा अस्थि-पंजर ही
सिकुड़ती है शिरा और धमनियां
जलते है रक्त, रक्त-मज्जा, मांसपेशियां...
अनगिनत शुक्राणुओं-सी .. अनगिनत कोशिकाएं
झुर्रिदार त्वचा , सौंदर्य-प्रसाधनों से सींचे चेहरे भी
पाचन-तंत्र, तंत्रिका-तंत्र, प्रजनन-तंत्र भी ...
सारे तंत्र-मंत्र, जादू-टोने, झाड़-फूंक,
अस्पताल, डॉक्टर-नर्स, दवाई, आई सी यू,
वेंटीलेटर ... इन सब को धत्ता बतला कर
बस रूप बदल फुर्र हो जाती है ज़िन्दगी ....
हाँ ... अपनों को बिलखता छोड़ फुर्र ....
पर नहीं ... यहीं कहीं किसी अपने संतान में रूप बदल
संतान के सीने में धड़क रही होती है ज़िन्दगी
और धमनियों में बह रही होती है रक्त बन कर
उतारती है एक परत भर ही तो
साँप के केंचुल की तरह ...
यकीन नहीं हो रहा शायद ! .. है ना !?
दरसअल तीनों विज्ञानों की ..
जीवविज्ञान, रसायन विज्ञान और भौतिक विज्ञान
इन तीनों विज्ञान की तू एक कॉकटेल है ज़िन्दगी
तू बस एक कॉकटेल है ज़िन्दगी
एक कॉकटेल है ज़िन्दगी
हाँ ... कॉकटेल है ज़िन्दगी
है ना ज़िन्दगी !???