Thursday, September 12, 2019

"बेनिन" की तरह ...

"तंजानिया" के "ज़ांज़ीबार" में
मजबूर ग़ुलामों से कभी
सजने वाले बाज़ार
सजते हैं आज भी कई-कई बार
कई घरों के आँगनों में,
चौकाघरों में, बंद कमरों में,
बिस्तरों पर, दफ्तरों में ...

गुलामों को बांझ बनाने की तरह
बनाई जाती है बांझ बारहा
उनकी सोचों को, सपनों को,
चाहतों को, संवेदनाओं को,
शौकों को, उमंगों को ...

पर गाहे बगाहे इनमें से कई
अपने मन के झील में
बना कर अपनी भावनाओं का
एक प्यारा-सा घर अलग
बसा लेती हैं
यथार्थ के खरीदारों की
नज़रों से ओझल
एक सुरक्षित दुनिया
ठीक झील में बसे एक गाँव ...
उस अफ़्रीकी "बेनिन" की तरह ...
"वेनिस ऑफ़ अफ्रीका" की तरह ...

19 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 13 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. अद्भुत बिंब गढ़े है आपने चमत्कृत करते बारिश की पहली बूँद की तरह सोंधी खुशबू लिये से मोहक शब्दों में गूँथी सुंदर अप्रतिम बेहद मर्मस्पर्शी सृजन।
    बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना।

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    1. रचना की प्रसंशा के लिए हार्दिक आभार आपका ...

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 13 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. रचना को एक स्थापित ब्लॉग में साझा करने के लिए हार्दिक आभार आपका ...

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-09-2019) को " हिन्दीदिवस " (चर्चा अंक- 3458) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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    1. अनीता सैनी जी आभार आपका दो बातों के लिए ... एक तो मेरी रचना बहुत दिनों बाद पसंद आने के लिए और दूसरी मेरी रचना को साझा करने के लिए ..

      (विशेष :- शायद मेरी तकनिकी जानकारी की कमी की वजह से चर्चा मंच पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहा हूँ । मैं आप से और/या शास्त्री जी से भी अनुरोध करता हूँ कि कृपया तरीका सुझाएं, ताकि मैं अपने मन का उल्लास वहाँ लिख सकूँ प्रतिक्रियास्वरूप। )

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  5. बेहतरीन ,ह्रदयस्पर्शी ,सुंदर रचना ,नमस्कार ,बधाई हो आपको

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    1. नमस्कार ! इतने सारे विशेषणों के गहना से रचना को सजाने के लिए आभार आपका ...

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  6. गुलामी और मज़बूरी से जूझते जीवन में भी एक भावों से भरा मन होता है | देह बंदिशों की परिधि में आती है मन नहीं | उसे कहीं ही सपनों का संसार सजाने में कहाँ देर लगती है ? सुंदर बिम्बों से सजी रचना |

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  7. हार्दिक आभार आपका यथोचित विश्लेषण के लिए ...

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  8. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  9. मजदूरों से उनकी उम्मीदें, उमंगे और सपने छीन कर दिए जाते हैं काम और कम मजदूरी।
    लेकिन हमेशा हरी रहती है।
    जो सपनों के महल हकीकत में बनवा देती है।
    बहुत खूबसूरत रचना।

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    1. जी ! आभार आपका .. बिल्कुल सही कहा आपने ...

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  10. सबसे अलग और मौलिक।
    गुलाम हों या मजदूर, हैं तो इंसान ही। मन को बेड़ियों में जकड़ा नहीं जा सकता।

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    1. जी ! आभार आपका ... सही , मन तो किसी का ग़ुलाम नहीं होता ...

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  11. सपने यदि सुविधाओं के मोहताज होते तो सिर्फ टाटा बिरला के घर ही पलते | पर नहीं -- प्रेमपोषित ह्रदय वीराने में भी सपनों के महल सजा लेता है वो भी खाली हाथ |अच्छा लगा आज आपकी ये रचना दुबारा पढ़कर शुभकामनाएं सुबोध जी |

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    1. जी ! रेणु जी ! आभार आपका आपकी विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया के लिए ...

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