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Thursday, September 19, 2024

चौबीस दिनों तक .. बस यूँ ही ...


अक्सर देखी है हमने, वकालत करते लोगों को, दुनिया भर में, अपने ख़ून के अटूट रिश्ते की।

पर महकती तो है मुस्कान घर-घर में, दो अलग-अलग ख़ूनों के संगम से, पनपे नन्हें फ़रिश्ते की।

उपरोक्त दो पंक्तियों के साथ आज की बतकही की शुरुआत (और अन्त भी .. शायद ...) करते हुए, इसकी अगली श्रृंखला में आप सभी से अपनी भी एक बात कह लेते हैं .. .. आगामी रविवार, 22 सितम्बर 2024 को रात आठ बजे प्रसार भारती के अंतर्गत आकाशवाणी, देहरादून से प्रसारित होने वाले पन्द्रह मिनट के कार्यक्रम - "काव्यांजलि" में ध्वनितरंगों के माध्यम से मेरी एकल बतकही के दौरान होने वाली है .. हमारी और आपकी एक संवेदनात्मक मुलाक़ात .. बस यूँ ही ...

अब .. आज चलते-चलते .. अपने साथ-साथ कुछ .. कुछ-कुछ अपने परिवेश की भी बतकही कर ली जाए .. .. विगत मंगलवार को सुबह मुहल्ले में आसपास नित्य विचरने वाले तथाकथित 'स्ट्रीट डॉग' .. मने .. कुत्ते-कुत्तियाँ को रोज़ की तरह 'बिस्कुट' या दूध-रोटी देने पर, वो सभी अपना-अपना मुँह घुमा कर, पड़ोस की कुछेक चहारदीवारियों के किनारे पड़ी जूठी हड्डियों की ओर तेजी से लपक लिए और उनको चबाने में मशग़ूल हो गए। हड्डियाँ भी तादाद में दिखीं थीं। स्वाभाविक है, कि एक दिन पहले की रात ही में आसपास के लोगों द्वारा इतने सारे माँस भक्षण किये गए होंगे। एक जगह तो बकरे (या बकरी) की और एक जगह मुर्ग़े (या मुर्गी) की हड्डियाँ पड़ी हुई जान पड़ती थीं .. शायद ...

यहाँ देहरादून में वर्तमान प्रवास के दौरान आसपास में एक-दो लोग .. जो लोग पहाड़ी-मैदानी में भेद किए बिना .. हमसे बातचीत करते हैं, उनसे तहक़ीक़ात की गई, तो मालूम हुआ, कि विगत मंगलवार से ही हमारे सभ्य-सुसंस्कृत समाज में हर वर्ष माना जाने वाला या मनाया जाने वाला तथाकथित पितृ पक्ष का आरम्भ हुआ है। इसीलिए पितृ पक्ष और नवरातरा (नवरात्रि) में क्रमशः पन्द्रह व नौ यानी कुल चौबीस दिनों तक लगातार धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मांसाहार वर्जित होने के कारणवश .. चौबीस दिनों तक शाकाहारी व सात्वीक रहने की बाध्यता के कारण .. उन धार्मिक चौबीस दिनों के आरम्भ होने के एक दिन पहले तक तो .. यानी विगत सोमवार की रात तक मांसाहारी लोगों द्वारा मन भर या दम भर माँस भकोसा गया है।

ख़ैर ! .. पितृ पक्ष और नवरात्रि क्यों मनायी जाती है .. कब मनायी जाती है .. और इसका क्या महत्व है .. इन सब की चर्चा ना करते हुए .. बस्स ! .. समाज के उन तमाम मनीषियों से .. बुद्धिजीवियों से .. केवल और केवल .. एक ही सवाल है, कि .. पितृ पक्ष के पन्द्रह दिनों और इसके तदनंतर नौ दिनों की नवरात्रि के कुल चौबीस दिनों के आरम्भ होने के दो-तीन दिन पहले से ही और एक दिन पहले की देर रात तक इतना अत्यधिक मात्रा में मांसाहार का उपभोग लोगबाग क्यों करते हैं भला ? 

जिसका प्रमाण .. मुहल्ले भर में कुछ चहारदीवारियों के आसपास विगत मंगलवार की सुबह में .. सोमवार की रात तक खाए गए मांसाहार की अवशेष पड़ी जूठी, चूसी-चबायी हड्डियाँ थीं। वैसे तो अगर .. विज्ञान की बात मानें, तो बकरे के माँस को मानव के पाचन तंत्र में पच कर अपशिष्ट निकलने तक में बारह से चौबीस घन्टे का समय लग सकता है। परन्तु हम सभी अगली सुबह .. सुबह-सुबह नहाने के क्रम में सिर (बाल) धोकर नहा लेने के बाद स्वयं को एकदम पाक-साफ़ मान लेते हैं .. शायद ...

अगर उपरोक्त विधियों से हम पाक-साफ़ होने वाली बात को सही व सच मान भी लें, तो भी .. ये बात नहीं पच पाती है, कि तीन सौ पैंसठ दिनों में कुछ ही दिनों के लिए ही लोग पाक-साफ़ होने या रहने की चेष्टा क्यों करते हैं भला ? और तो और .. उन पाक-साफ़ रहने वाले विशेष दिनों के समाप्त होने के बाद भी तो पुनः मांसाहार के लिए हमलोग बेतहाशा टूट पड़ते है .. शायद ...

ये तो वही बात हुई, कि धूम्रपान या मद्यपान या फिर दोनों ही करने वाले किसी युवा विद्यार्थी को जब ये पता चलता है, कि उस के अभिभावक उसके अध्ययन के दौरान उससे मिलने के लिए उसके छात्रावास तक या किराए के कमरे तक आने वाले हैं, तो उनके आने के एक दिन पहले अपने व्यसनानुसार मन भर धूम्रपान या मद्यपान या फिर दोनों ही करके .. अपने धूम्रपान व मद्यपान के सारे साजोसामान उनसे छुपा कर रख देता है और फिर उनके जाने पर भी, जाते ही वह युवा विद्यार्थी उतनी देर या उतने दिनों की भरपाई (?) करते हुए .. छूट कर धूम्रपान या मद्यपान या फिर दोनों ही करता है, क्योंकि उस दौरान तो उस युवा विद्यार्थी को अपना धूम्रपान व मद्यपान का व्यसन मज़बूरन बन्द रखना पड़ता है .. शायद ...

हम लोगों की भी मनःस्थिति इन चौबीस दिनों में कुछ-कुछ या ठीक-ठीक .. धूम्रपान या मद्यपान या फिर दोनों ही व्यसन करने वाले उस युवा विद्यार्थी की तरह ही होती है ..  नहीं क्या ?


आगामी रविवार, 22 सितम्बर 2024 को रात आठ बजे प्रसार भारती के अंतर्गत आकाशवाणी, देहरादून से प्रसारित होने वाले पन्द्रह मिनट के कार्यक्रम - "काव्यांजलि" में पुनः मिलते हैं हमलोग .. बस यूँ ही ...