Thursday, January 25, 2024

पुंश्चली .. (२९) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)


प्रत्येक वृहष्पतिवार को यहाँ साझा होने वाली साप्ताहिक धारावाहिक बतकही- "पुंश्चली .. (१)" से "पुंश्चली .. (२८)" तक के बाद पुनः प्रस्तुत है, आपके समक्ष "पुंश्चली .. (२९) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" .. बस यूँ ही ...  :-

गतांक का आख़िरी अनुच्छेद :-

मन्टू - " लो भई .. आ गयी आप सब की आज की पहली मंज़िल .. "

रेशमा - " चलो .. आ जाओ जल्दी-जल्दी .. " 

तभी अचानक 'नर्सिंग होम' से बाहर आती हुई अंजलि और अम्मू पर रेशमा और मन्टू की भी नज़र पड़ गयी है ...

गतांक के आगे :-

मन्टू की टोटो गाड़ी पर दूर से नज़र पड़ते ही अंजलि हठात् अपने दुपट्टे के पल्लू से अपना चेहरा ढकते हुए और बेटे- अम्मू की हथेली को और भी मजबूती से पकड़ कर तेजी से विपरीत दिशा वाले रास्ते की ओर बढ़ चली है, जो रास्ता उसे और उसके तीन वर्षीय बेटे को 'नर्सिंग होम' के पिछले फ़ाटक की ओर ले जाएगा।

अंजलि को देखकर रेशमा की प्रतिक्रिया तो सामान्य थी अभी, पर .. मन्टू को तो मानो बिजली की नंगी तार छू गयी हो जैसी मनोदशा हो गयी है। अभी अंजलि व अम्मू पर नज़र पड़ते ही .. रेशमा तो आगे बढ़ कर अंजलि को सामान्य दिनों की तरह औपचारिकतावश अपने दोनों हाथों को जोड़कर नमस्ते कहने के साथ-साथ अम्मू को अपनी 'टॉफ़ी' देने ही जा रही थी कि .. मन्टू ने उसे ऐसा करने से इशारे कर के रोक लिया है।

यूँ तो अंजलि के अपने पल्लू से लाख अपने चेहरे ढकने की कोशिश भी मन्टू की नज़रों से उसे नहीं छुपा पाया है। वो भी उस मन्टू की नज़रों से तो असम्भव ही है, जो .. अपनी तोता-चश्मी रज्ज़ो की बेमुरव्वती से मानसिक रूप से चोटिल होने के कारण और रंजन के गुजर जाने के बाद मन ही मन उसे चाहने की वजह से .. अपनी सोचों की एक ताक पर अंजलि को जगह दे रखा है। फलतः भले ही अंजलि उससे दूरी बना कर रहती हो, पर मन्टू दिन-रात प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उससे एक अनदेखा जुड़ाव महसूस करते हुए .. उसकी और उसके बेटे की सुरक्षा के ख़्याल से हर पल उन पर अपनी नज़रों को रखने का भरसक प्रयास करता रहता है।

आज सुबह ही तो रोज की तरह घर से स्कूल के लिए निकलते वक्त जब अंजलि "रसिक चाय दुकान" के पास नगर निगम के कूड़ेदान में अपने घर से लायी कचरे की पोटली फेंक गयी थी तो .. रोज की तरह ही कचरे फेंक कर उसके आगे निकल जाने के बाद .. मन्टू रोज की तरह आज बसन्तिया की मदद ना मिलने पर .. स्वयं ही उस पोटली के 'पोस्टमार्टम' से एक अप्रत्याशित चीज दिख जाने से वैसे ही ऊहापोह के दरिया में डूब-उतरा रहा था और .. ऊपर से अभी-अभी यहाँ 'नर्सिंग होम' से निकलते हुए उसे देखकर तो मन्टू को और भी जोरदार झटका महसूस हुआ है। 

अब तो उसकी शंका और भी गहरी होकर मानो विश्वास में बदलने लगी है। जैसे किसी भी मेज या कुर्सी के यथोचित संतुलन के लिए कम से कम चारों टाँगों का होना आवश्यक होता है, वैसे ही अभी भी मन्टू की शंका को दो टाँगें ही मिल पायी है - एक तो आज सुबह-सुबह उसके घर के कचरे की पोटली से हर माह की तरह मिलने वाले इस्तेमाल किए गए 'सैनिटरी नैपकिन' की जगह गहरे गुलाबी रंग की दोनों 'लाइनों' वाली एक 'प्रेगनेंसी टेस्ट स्ट्रिप' मिली थी और अभी-अभी वह यहाँ इस 'नर्सिंग होम' से निकलती भी दिख गयी है। पर अभी भी मन्टू का ऊहापोह कोई निर्णय नहीं ले पा रहा है। उसकी शंका को संतुलन मिलने के लिए अभी भी कुछ अन्य प्रमाणों की आवश्यकता है .. मेज-कुर्सी की चार टाँगों की तरह ...

अचानक मन्टू द्वारा रेशमा को नमस्ते करने से रोके जाने परके और अचानक अंजलि के विपरीत दिशा में पलट जाने से भी वह भी सोच में पड़ गयी है। अंजलि से तो मिल नहीं पायी तो .. अपनी उधेड़बुन को ख़त्म करने के लिए मन्टू से ही सवाल कर रही है।

रेशमा - " मन्टू भईया .. आप को क्या हो गया अचानक से ? .. आप अंजलि भाभी से मिलने से भी रोक दिए और वह भी हम लोगों को देख कर उल्टे पाँव भाग गयीं .. कुछ हुआ है क्या ? .. आप लोगों में झगड़ा तो नहीं हो सकता .. फिर ..? .."

मन्टू - " अभी तुम्हारे काम-धंधे का समय है और ये पहला 'नर्सिंग होम' भी है .. हम लोग आज पहले से ही देर कर चुके हैं। तुम लोगों को आगे भी लेकर जाना है, फिर .. हमको और भी कमाने के लिए जाना है .. ये सब बात .. फिर कभी करेंगे ... "

रेशमा - " ये भी कोई बात हुई क्या ? .. आप जब हम सभी के दुःख-सुख में साथ होते हैं, तब तो आप समय-पहर नहीं देखते हैं .. फिर अभी ऐसा भेद-भाव क्यों ? बतलाइए ना मन्टू भईया !! .. "

नदी के तेज जल-आवेग के वक्त जैसे नदी के किनारे भी नदी का साथ छोड़ देते हैं, उसी तरह अंजलि वाली आज की दोनों अप्रत्याशित घटनाओं से वह अपना धैर्य खोकर सामने रेशमा को ही पाकर .. उसे ये सब ना बतलाना चाहते हुए भी .. सब कुछ बक कर मानो .. खुद के मन के बोझ को हल्का करना पड़ रहा है ..

मन्टू - " क्या बोलूँ तुमको .. " - बोलता-बोलता मन्टू लगभग रुआँसा हो गया है - " ऐसी उम्मीद तो तनिक भी नहीं थी अंजलि से .. " 

रेशमा - " क्यों ? .. क्या हो गया ऐसा ? .. खुल कर बोलिए ना ! .. "

गहरी साँस लेते हुए अपनी टोटो गाड़ी से बाहर निकल कर रेशमा को उसकी बाकी टोली से थोड़ी दूर एक ओर ले जा रहा है।

मन्टू - " आज .. आज सुबह अंजलि के कचरे से गहरे गुलाबी रंग की दोनों 'लाइनों' वाली एक 'प्रेगनेंसी टेस्ट स्ट्रिप' मिली थी ... "

रेशमा - " आपको कैसे मिल गयी ? .."

मन्टू लगभग झेंपते हुए .. रेशमा से अपनी नज़रें चुराते हुए ..

मन्टू - " वो सब .. बाद में बतलाऊंगा .. विस्तार से .. पर अभी जो सबसे बड़ी बात है कि .. रंजन के गुजर जाने के बाद ये कैसे सम्भव हो सकता है ? .. अभी तो यहाँ 'नर्सिंग होम' से आकर उसका जाना भी .. "

रेशमा - " हो सकता है इन सब बातों की कुछ और भी वजह हो .. "

मन्टू - " विधाता की कृपा हो कि ये सारी घटनाएँ किसी अन्य कारणों से घटी हों और हमारा भ्रम निराधार होकर गलत हो जाए .. "

रेशमा - " ऐसा ही होना चाहिए .. ऐसा ही होगा .. आप मन छोटा मत कीजिए मन्टू भैया .. हमको अंदर से होकर आने दीजिए .. जहाँ तक सम्भव होता है .. उनके बारे में अंदर से मालूम करके आते हैं .. तब तक सब्र से बैठिए आप .. "

【आज बस .. इतना ही .. अब शेष बतकहियाँ .. आगामी वृहष्पतिवार को ..  "पुंश्चली .. (३०) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" में ... 】


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