Thursday, February 1, 2024

बुलबुले ...


चंद बुलबुले

दिखते हैं अक़्सर,

पारदर्शी काँच के बने

'पेपरवेट' के भीतर।

सम्भालते पल-पल, हर पल,

जीवन के तलपट से भरे 

रोज़नामचा के पन्ने

वर्षों से पड़े मेज पर।

शाश्वत नहीं, नेह-से मेरे,

ना रोज़नामचा के पन्ने, 

ना ही बुलबुले 'पेपरवेट' के .. शायद ...


पर उतने भी नहीं नश्वर

जितने वो सारे बुलबुले,

जो अनगिनत थे तैरते 

कुछ पल के लिए हवा में

हमारे बचपन में

खेल-खेल में,

रीठे के पानी में

डूबो-डूबो कर

पपीते के सूखे पत्ते की 

डंडी से बनी

फोंफी को फूँकने से .. बस यूँ ही ...


वो असंख्य बुलबुले, 

ना शाश्वत, ना ही नश्वर, 

बस और बस होते थे 

और आज भी हैं होते,

वैसे ही के वैसे, पर

'पपरवेट' के 

बुलबुले से इतर,

क्षणभंगुर ..

वो सारे के सारे ..

हे प्रिये ! ...

तेरे नेह के जैसे .. शायद ...





12 comments:

  1. चंद बुलबुले
    दिखते हैं अक़्सर,
    पारदर्शी काँच के बने
    'पेपरवेट' के भीतर।
    गहन विचार
    आभार
    सादर वंदे

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका ...🙏

      Delete
  2. वाह... बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी ! .. नमन संग आभार आपका ...

      Delete
  3. नेह का बुलबुला... जितनी भी बार पढ़ रहे नया भाव मन को छू रहा ।
    गहन भाव लिए गूढ़ अभिव्यक्ति।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २ फरवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी ! .. नमन संग आभार आपका .. .

      Delete
  4. Replies
    1. जी ! .. नमन संग आभार आपका ...

      Delete
  5. पपरवेट' के

    बुलबुले से इतर,

    क्षणभंगुर ..

    वो सारे के सारे ..

    हे प्रिये ! ...

    तेरे नेह के जैसे .. शायद ...
    वाह…बहुत खूब

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी ! .. नमन संग आभार आपका ...

      Delete
  6. प्रिये का नेह क्षणभंगुर !
    बुलबुले सा !
    गहन अभिव्यक्ति
    वाह!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी ! .. नमन संग आभार आपका ...

      Delete