Thursday, November 16, 2023

पुंश्चली .. (१९) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)


प्रत्येक वृहष्पतिवार को यहाँ साझा होने वाली साप्ताहिक धारावाहिक बतकही- "पुंश्चली .. (१)" से "पुंश्चली .. (१८)" तक के बाद पुनः प्रस्तुत है, आपके समक्ष "पुंश्चली .. (१९) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" .. बस यूँ ही ...  :-

गतांक का आख़िरी अनुच्छेद :-

मन्टू - " और तो कोई औरत रहती नहीं है उस घर में .. हमारे तो सपनों का महल ही ढह गया है .. आख़िर अंजलि ने ये सब किसके साथ किया होगा। हमको तो ये पता लगाना ही पड़ेगा ... "

गतांक के आगे :-

चाँद - " मन्टू यार ! .. अब तक हमारे सर-ज़मीन ही नहीं, बल्कि सारे ज़मीन पर इल्म ने कितनी भी तरक्क़ी कर ली हो, पर .. आज तक मन की सफ़ाई के लिए ना तो किसी 'वाशिंग मशीन' की ईजाद हुई है और ना ही कहीं भी 'लॉन्ड्री' खुली है .. "

भूरा - " अब ये मन और सेर-पसेरी का तो ज़माना रहा नहीं  ना मन्टू भाई ? आयँ ? अब तो किलो और ग्राम .. "

मन्टू - " अबे गधे ! .. ये उस मन की बात नहीं हो रही .. "

चाँद - " हर बात में तुमको टपकना जरुरी है ? .. है ना ? "

मन्टू - " सही फ़रमा रहे हो चाँद भाई .. किसके मन में क्या चल रहा है .. क्या पक रहा है .. जानना-समझना बहुत ही मुश्किल .. "

चाँद - " मुश्किल ना भाई .. मान लो कि एकदम से नामुमकिन है ये .. "

मन्टू - " ये भी सही है .. अब देखो ना जरा .. अंजलि को देख कर .. कोई भी कहेगा कि ये औरत रंजन के इस दुनिया से जाने के बाद ऐसा-वैसा कुछ भी करेगी .. कोई गलत क़दम उठाएगी ? .. नहीं ना ? .. " 

चाँद - " इस बदज़ात औरत ने रंजन के एहसान का क्या ही सिला दिया है .. और .. तुमने भी तो इतना सब कुछ किया .. इसके लिए भी और .. रंजन के लिए भी .. है कि नहीं ? .. " 

भूरा - " हमको तो बीच में टपके बिना रहा ही नहीं जाता है चाँद भाई .. हम लोगों के दुःख का सबसे बड़ा कारण यही तो है, कि हम किसी की सहायता करके .. उसके बदले में सामने वाले से उस सहायता की क़ीमत मिलने की उम्मीद रखते हैं और नहीं मिलने पर मायूस हो जाते हैं .. मन्टू भाई की तरह .. "

मन्टू - " बन्द कर बे .. अपने ज्ञान की पोटली .. "

भूरा - " भईया .. हम कोई ज्ञान नहीं बाँट रहे हैं .. पुरखों ने भी तो वर्षों पहले यही सलाह दी है, कि नेकी कर दरिया में डाल .. समझ रहे है ना ? .. "

चाँद - " अभी ज्यादा ज्ञान बघारने का 'टाइम' नहीं है .. समझे कि नहीं .. अभी मन्टू को 'सपोर्ट' करने का समय है। .. अंजलि की कारिस्तानी का पर्दाफाश करके उस को उजागर करना है .. ख़ास करके शनिचरी चाची के सामने .." 

मन्टू - " हाँ .. जिनकी नज़र में वो एकदम सती सावित्री दिखती है .. एकदम से पाक-साफ़ .. "

भूरा - " भईया .. मन के विचारों की एक्सरे मशीन की ख़ोज वैज्ञानिकों ने अगर जो आज कर दी तो .. ना जाने यहाँ कितने तलाक़ और मार-काट हो जाएँ .. "

चाँद - " अरे ... एक्सरे मशीन की छोड़ो .. अगर जो .. सारी औरतें स्वाबलंबी बन गयीं ना .. तो ... तो पश्चिमी विदेशों से भी ज्यादा तलाक़ हमारे देश में होने लग जायेगी .. हमारे देश में लोगों का कहना है, कि यहाँ की औरतें पतिव्रता हैं, इसीलिए तलाक़ कम होते हैं .. पर नहीं .. भाई .. वो अपने-अपने पति के ऊपर आर्थिक रूप से आश्रित होने की वजह से बहुत सारे समझौते करती हैं .. तो .. तलाकें नियंत्रित जान पड़ते हैं .. "

भूरा - " अब ये सब बात हमारे समझ से बाहर की है भाई .. ये सब बात तुम ... "

अभी भूरा अपनी बात पूरी कर ही पाता .. तब तक रोज की तरह अपने धंधे पर जाने के पहले रसिकवा की कड़क चाय पीने जाने के क्रम में सामने से गुजरती रेशमा की टोली अपने अंदाज़ में ताली पीटते हुए मन्टू को सम्बोधित करके कह रही है - " आय-हाय ! .. राधे-राधे .. मन्टू भईया ! .. अभी आपकी हवा-हवाई खाली है ? .. चाय पीकर हमलोगों को अस्पताल रोड वाले दो-तीन 'नर्सिंग होम' ले चलेंगे ? .. फिर उसके बाद .. "

मन्टू - " हाँ .. हाँ .. खाली है- खाली है .. चलेंगे .. जहाँ कहीं भी जाना हो .. "

मन्टू जान रहा है, कि अभी सुबह-सुबह की सवारी को ना करके वह अपनी बोहनी ख़राब नहीं कर सकता। अंजलि वाली गुत्थी से मन उदास रखने से अपने पेट भरने की समस्या का हल नहीं मिल पाएगा। उसके लिए तो मन को नियंत्रित करके .. मन में दबी हर पीड़ा को दबा कर फ़िलहाल तो परिश्रम करना ही पड़ेगा। अपने-अपने काम-धंधे में लगना ही पड़ेगा ...

रेशमा - " आइए ना मन्टू भईया आप सब लोग भी .. हमलोगों के साथ .. सब लोग मिलकर रसिकवा की दुकान की कड़क चाय पीते हैं। "

रेशमा .. सात किन्नरों की एक टोली की 'हेड' है, जो इस मुहल्ले से कुछ ही दूरी पर बसी झोपड़पट्टी में अपनी टोली के साथ रहती है।  

अब इन लोगों को अपनी चाय की दुकान की ओर आता देखकर रसिकवा का नाबालिग 'स्टाफ'- कलुआ अपनी (?) चाय कदुकान के सामने रखे दोनों बेंचों को कपड़े से जल्दी-जल्दी पोंछने लगा है। साथ में .. उनके पीछे से मन्टू की टोली भी फिलहाल अंजलि के वर्तमान प्रकरण को अपने दिमाग़ से झटकने की कोशिश करते हुए,  नगर निगम वाले कचड़े के डब्बों के पास से चाय की दुकान की ओर बढ़ चली है ..

【आज बस .. इतना ही .. अब शेष बतकहियाँ .. आगामी वृहष्पतिवार को ..  "पुंश्चली .. (२०) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" में ... 】

2 comments:

  1. सुन्दर | मन के अन्दर चले कुछ भी | मन की कुछ बातें बनाना भी तो कला है एक |

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    1. जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. कला तो काला धन बनाना भी है .. शायद ...

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