माना है जायज़ तुम्हारा सारे बुतों से गुरेज़,
तो क्यों नहीं भला मुर्दे मज़ारों से परहेज़ ?
गजवा-ए-हिन्द मायने ख़बरें सनसनीखेज़,
सनक ने की राख़ इंसानियत की दस्तावेज़।
खता लगती नहीं तुम्हें करके कभी ख़तना,
समझते हो हलाल यूँ ज़िल्लत भरी हलाला।
दकियानूसी सोचों से सजी यूँ दिमाग़ी सेज,
क़ैद हिजाबों में सलोने चेहरे हैं बने निस्तेज।
क़ाफ़िर भी हैं इंसाँ, समझो ना तुम आखेट,
अगरचे हो रहे हो तुम भी तो यूँ मटियामेट।
पाने की ज़न्नत में बहत्तर हुर्रों के हो दीवाना,
भले बन जाए जहन्नुम आज अपना ज़माना।
नमस्कार सर, ज्यादा दिन दूर नही है हम हिन्दू लोग भी इसी रास्ते चल दिये है । अब तो हिन्दू का विभाजन हो गया है राजनीतिक और धार्मिक और ये लोग ही एक दूसरे के दुश्मन हो गए है ,दुनिया आगे की तरफ देख रही है बढ़ रही है और हमलोग पाषाण काल मे जा रहे है । अभी सबके आँखो पर चश्मा लगा है धर्म का, जिसके उतरने के बाद सच से सामना होगा।
ReplyDeleteजी ! शुभाशीष संग आभार .. कट्टरता किसी भी धर्म या सम्प्रदाय के लिए हानिकारक तत्व रहा है .. शायद ...
Deleteमानवता ही संसार का सब से बड़ा धर्म है या होना चाहिए ...
इंसानों को इंसानों से बाँटने वाले धर्म, बस तेज़ाब भर हैं .. शायद ...
कहीं मुंडे हुए सिर, कहीं जटाएँ, कहीं टिक्की,
कहीं टोपी, कहीं मुरेठे-साफे, तो कहीं पगड़ी।
अफ़सोस, इंसानों को इंसानों से ही बाँटने की
इंसानों ने ही हैं बनायी नायाब रिवायते तगड़ी। .. बस यूँ ही ...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 29 मार्च 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी ! नमन संग आभार आपका .. आज की अपनी बहुआयामी प्रस्तुति में मेरी बतकही को स्थान देने के लिए ...
Deleteधर्म के नाम पर इंसान
ReplyDeleteन हिंदू रहा न मुसलमान ।।
काश समझ सकें ये बात और दुनिया को दोज़ख बनाने से बाज़ आएँ ।।
बेहतरीन रचना ।
जी ! नमन संग आभार आपका ... सही फरमाया है आपने .. आपकी उपर्युक्त दो पंक्तियों को आगे विस्तार देते हुए ...
Deleteकहीं मुंडे हुए सिर, कहीं जटाएँ, कहीं टिक्की,
कहीं टोपी, कहीं मुरेठे-साफे, तो कहीं पगड़ी।
अफ़सोस, इंसानों को इंसानों से ही बाँटने की
इंसानों ने ही हैं बनायी नायाब रिवायते तगड़ी। .. बस यूँ ही ...
खरी खरी बात, काश धर्म के नाम पर हो रहे अत्याचारों और नृशंस कार्यों को छोड़कर सभी मानवता के धर्म को अपनाएँ
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका .. काश ! मानवता ही सर्वोपरि हो पाता हम मानवों के समाज में ...
Deleteआज इंसान में इंसानियत नही है।
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
जी ! नमन संग आभार आपका .. इंसान भगवान- भगवान (किसी भी सम्प्रदाय का भी हो) करते -करते .. हैवान बन बैठा है .. शायद ...
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
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