Thursday, February 24, 2022

जीरो बटा सन्नाटा ...

# १# 
कोरोना की पहली और दूसरी लहर के बाद अब तक तो तुलनात्मक कम डरावनी तीसरी लहर भी लगभग समाप्त या धीमी हो चुकी है। राज्य सरकार द्वारा यथोचित चंद पाबंदियों के साथ लगने वाले 'लॉकडाउन' में बहुत हद तक ढील दी गई है, जिसके तहत सुबह - शाम सार्वजनिक पार्कों या मैदानों में 'मास्क' के साथ 'मॉर्निंग वॉक' की भी छूट दे दी गई है।
आज मोटा-मोटी एक-दो माह से सुबह-सुबह बिहार की राजधानी - पटना के गाँधी मैदान में भी लोग लगभग 'लॉकडाउन' लगने के पहले की ही तरह टहलने आने लगे हैं। इन्हीं टहलने वालों में टहलने वालों एक टोली है - श्रीवास्तव जी, तिवारी जी, सिंह जी, शर्मा जी और समीर की, जो वर्षों से यहाँ सुबह-सवेरे नियमित रूप से एक साथ टहलने के लिए आते हैं। इनमें समीर को छोड़ कर चारों लोग लगभग पचास-साठ वर्ष के हैं और समीर यही कोई तीस-पैंतीस का होगा .. शायद ...
श्रीवास्तव जी बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग में 'स्टोर ऑफिसर' के पद पर हैं , जो गाँधी मैदान के पश्चिमी छोर पर स्थित छज्जूबाग कॉलोनी में किसी 'अपार्टमेंट' के एक 'फ्लैट' में रहते हैं। गाँधी मैदान के पूर्वी छोर के नाला रोड में अपने पुश्तैनी मकान में रहने वाले तिवारी जी के पास दो-तीन 'मल्टीनेशनल कंपनियों' की 'एजेंसी' हैं और इसके अलावा अपने जान-पहचान वाले कई अमीर घरों में पूजा-पाठ, कथा-कर्मकांड करवा के भी "जजमानों" (यजमानों) के घरों से भी कमाई कर लेते हैं। वहीं सिंह जी पटना उच्च न्यायालय में वक़ील हैं, जो गाँधी मैदान के उत्तर-पश्चिमी छोर में विराजमान पटना के गोलघर के पास वाले बांकीपुर मुहल्ले में किराए के एक मकान में रहते हैं और शर्मा जी फुलवारीशरीफ प्रखंड के एक सरकारी 'हाई स्कूल' के शिक्षक हैं, जो गाँधी मैदान के दक्षिणी छोर में अवस्थित 'एक्सहिबिशन रोड' के पास सालिमपुर अहरा में अपने पुश्तैनी मकान में रहते हैं। अब बचा समीर .. तो .. वह .. बिहार सरकार में सत्तारूढ़ दल के एक तथाकथित माननीय मंत्री जी के 'मल्टीनेशनल कम्पनी' के 'फोर व्हीलर' वाले कई 'शोरूमों' में से किसी एक का 'फ्लोर मैनेजर' है, जो श्रीवास्तव जी वाले ही छज्जूबाग कॉलोनी में उनका पड़ोसी है। इस तरह चारों अलग-अलग व्यवसाय वाले, अलग-अलग मुहल्ले वाले और अलग-अलग उम्र वाले लोग 'मॉर्निंग वॉक' के नाम पर हर रोज सुबह एक साथ होते हैं। 
अमूमन जब भी मर्दों का समूह एक साथ बैठ कर मद्यपान की महफ़िल सजाते हैं, तो साथ बैठे लोगों में अगर दस-बीस साल की उम्र का अन्तर भी हो तो, ऐसे में .. किसी वर्जित विषय पर भी साथ में चर्चा करने में लोग तनिक भी नहीं झिझकते या हिचकते हैं। यही हाल एक ही कार्यालय में लगभग समान 'पोस्ट' पर काम करने वाले अलग-अलग उम्र वाले कर्मचारियों के साथ भी होता है या फिर 'लोकल ट्रेन' में एक ही 'रूट' के लिए यात्रा करने वाले 'डेली पैसेंजरों' की भी यही स्थिति होती है और .. प्रायः यही हाल समूह में रोज 'मॉर्निंग वॉक' करने वालों के साथ भी होता है। समीर की टोली भी इस हाल से अछूती नहीं है।
यूँ तो एक जगह एकत्रित होने वाले मौकों पर आपसी उम्र के अंतर को दरकिनार करते हुए, महिलाओं के खुलेपन की भी कई मिसाल देखने-सुनने के मौके प्रायः मिलते हैं। चाहे वह किसी ईंट के भट्ठे पर ईंट थापती महिलाएँ हों, गाँव में धान रोपती या खलिहान में काम करती महिलाएँ हों या फिर घर-मुहल्लों में दोपहर-शाम फ़ुर्सत के पलों में गाहे बगाहे इकट्ठी होने वाली महिलाएँ हों। पर अजी साहिबान ! .. मर्दों की तुलना में 'गॉसिप' के लिए तो ... औरतें बस यूँ ही नाहक बदनाम की जाती हैं .. शायद ... 
सभी अलग-अलग मुहल्ले से आकर यहाँ गाँधी मैदान के एक तयशुदा जगह पर रोज सुबह-सुबह मिलते हैं और फिर इस मैदान का चक्कर लगाते हैं। अब ऐसे में एक बात और भी गौर करने की है, कि .. मर्द लोग मौका मिलने पर 'गॉसिप' करने से कब चूकते हैं भला ! मौका मिला नहीं कि अपने घर के गोतिया-नाता से लेकर मोहल्ले भर की कुंडली खँगालने में कोई कसर नहीं छोड़ते। इनके अलावा देश-विदेश के गुण-दोष, राजनीति के दाँव-पेच, देश की सीमा-सुरक्षा में कमी वग़ैरह कई मुद्दों पर अपना दिमाग और अपनी जुबान बेलगाम घोड़े की तरह दौड़ा ही देते हैं। 
आइए .. सुनते हैं आज सुबह ही उनकी आपस में की गई गपशप की एक बानगी .. बस यूँ ही ...
शर्मा जी :- "अरे .. तिवारी जी .. राधे-राधे ! .. धन्य भाग्य हमारे, जो आज एक अरसे के बाद आप के दर्शन हुए हैं। लगता है, कि हर साल की तरह आप फिर बैंकॉक गए थे शायद।"
तिवारी जी :- "अरे ना, ना, इस साल तो बगल में ही .. कोलकाता गए थे। कोरोना के चक्कर में सब गुड़-गोबर हुआ पड़ा है। ना धंधा-पानी ठीक से चल रहा है और ना ही खुल के मौज-मस्ती।"
शर्मा जी :- "हम लोग समझे कि हर बार की तरह ही इस बार भी बैंकॉक गए हुए होंगे।"
तिवारी जी :- "हाँ भई ! गया तो था। पर दो साल पहले, कोरोना आने से पहले। श्रीवास्तव जी को तो पता ही है, कि जिन 'कम्पनियों' की 'एजेंसी' हैं अपने पास, उन्हीं 'कम्पनी' वालों की तरफ से साल भर किये गए धंधे के अनुसार तीन दिन से सप्ताह-सप्ताह भर की 'ट्रिप' होती रहती थी। वर्ना अपनी औक़ात कहाँ है भला बैंकॉक-सिंगापूर जाने की। पर इस बार तो कोरोना के कारण सब ... "
श्रीवास्तव जी :- "जो भी हो, जैसे भी गए, जहाँ भी गए, पर गए तो ? मज़े लिए ना खूब जी ?"
समीर :- "वो भी इस उम्र में ?"
सिंह जी :- "अपना तो अपने शहर का होटल ही बहुत है। बहुत हुआ तो मियाँ का दर मस्ज़िद तक, ज्यादा से ज्यादा कोलकाता के सोनागाछी तक ही जायेंगे .. और क्या ?"
श्रीवास्तव जी :- "अपनी किस्मत में बैंकॉक और सिंगापुर की 'बॉडी मसाज' का सुख ऊपर वाले ने लिख कर भेजा ही नहीं है, तो अपन क्या ही कर सकते हैं भला ?"
शर्मा जी :- "अरे भाई, अपने पुरख़े कह गए हैं, कि सीता राम सीता राम सीताराम कहिये, जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये। आ ... इ (ये) भी तो सुने ही हैं ना आपलोग, कि मिले तो मारी ना तो बाल ब्रह्मचारी।"
श्रीवास्तव जी :- "अपना भी इसी में विश्वास है भईया।"
तिवारी जी :- "क्यों ? जलन हो रही है क्या आप लोगों को ? और ये उम्र-उम्र क्या लगा रखे हैं जी ! अब .. अगर कबीर बेदी सत्तर वर्ष की उम्र में चौथी शादी कर सकता है, तो भला हम पचास-पचपन में क्या बुरे हैं ? है कि नहीं जी ? हम लोग 'हिन्दू एक्ट' के कारण एक से ज्यादा विधिवत शादी तो नहीं कर सकते, पर विधिवत मौज मस्ती तो कर ही सकते हैं ना ? "
सिंह जी :- "अजी, ऐसी भी अँधेरगर्दी नहीं मची हुई है। अगर आपका टाँका कहीं भीड़ गया है और आपको दूसरी, तीसरी शादी करने का भी मन कर रहा है, तो कौन मना कर रहा है भला .. धर्मेन्द्र और हेमामालिनी की तरह किसी मौलवी के सामने इस्लाम क़बूल कर लीजिए और .. कर लीजिए फ़ौरन निक़ाह।"
श्रीवास्तव जी :- "मने चट मंगनी पट ब्याह। भाई लोग, हमारे स्वतंत्र देश की धर्मनिरपेक्ष वाली विचारधारा ने सब तरह की सुविधा मुहैया करा रखी है। वैसे तो हम लोगों के जनक कहे जाने वाले चित्रगुप्त भगवान भी दो-दो ब्याह किये हैं जी। देश का क़ानून चाहे जो भी हो, दू गो बिआह (दो ब्याह) तो हमलोगों के डीएनए में है जी।"
शर्मा जी :- "अरे भाई, वो सब फ़िल्मी दुनिया की और भगवान लोगों की बात है। वो लोग हीरो-हीरोइन और भगवान हैं, कुछ भी, कभी भी कर सकते हैं। भगवान लोग तो अपने देह के मैल और नाभि से भी बच्चा पैदा कर सकते हैं।"
तिवारी जी :- "तो हम कौनो (कौन) हीरो से कम हैं क्या जी ! ये इतना 'मॉर्निंग वॉक'-शाक कर के 'बॉडी' काहे (क्यों) 'मेन्टेन' किये हुए हैं। अब समीर बाबू के जैसा जवान तो नहीं हैं, पर कागज़ी बादाम और शिलाजीत खा-खा के सब 'मेन्टेन' किये हुए हैं।"
समीर :- "हाँ 'सर', एक कहावत भी तो सुने ही हैं ना हमलोग कि - मर्द साठा तो पाठा .. है कि नहीं श्रीवास्तव जी ?"
श्रीवास्तव जी :- "अब तो कोरोनकाल से घरवाली भी हम लोगों की 'इम्युनिटी पॉवर' बढ़ाने के लिए रोज रात को गाढ़ा-गाढ़ा औंट के मलाईदार हल्दी-केसर वाला सुसुम-सुसुम दूध भी तो ज़बर्दस्ती पिला रही है, ताकि उन लोगों का सुहाग ज़िन्दा रहे। ना तो माँग उज्जर (उजला) हो जाएगा।"
तभी इन चुहलबाजी भरी बातों पर सभी का एक जोरदार सम्मिलित ठहाका पूरे मैदान में पसर जाता है। मानो सुबह-शाम किसी भी बड़े शहर के पार्कों में 'लाफिंग क्लब' वाले समूह के ठहाकों की आवाज़ हो।

#२#
कभी अंग्रेजों के ग़ुलाम रहे इंडिया में हुए कई सारे आंदोलनों तथा कभी आज़ाद भारत में कई दिग्गज राजनीतिज्ञों के भाषणों और देश में लगी 'इमरजेंसी' के दौरान हुए राष्ट्रीय स्तर पर सत्तारूढ़ 'पार्टी' के तख़्ता पलट करने वाले "जे पी आंदोलन" का गवाह रहा, बिहार की राजधानी पटना को पूर्वी पटना यानी मुग़लों की ग़ुलामी में विकसित अज़ीमाबाद और पश्चिमी पटना यानी अंग्रेजों की ग़ुलामी में विकसित पटना को लगभग दो हिस्सों में बाँटता हुआ, इस विशाल गाँधी मैदान के चारों ओर, चारों दिशाओं में फ़ैली चौड़ी सड़कें, पूर्वी व पश्चिमी पटना को जोड़ती हैं। इसी सड़क पर दौड़ती अनेकों वाहनों में से एक मोटरसाइकिल पर इस 'मॉर्निंग वॉक' वाले समूह की पैनी नज़र पड़ती है।
श्रीवास्तव जी :- "अरे ये क्या दिखायी दे रहा है जी .. तोता-मैना की जोड़ी भोरे-भोरे 'फटफटिया' (मोटरसाइकिल) पर" ?
शर्मा जी :- "आप भी वही देख रहे हैं, जो हम सभी देख पा रहे हैं सुबह-सुबह, राम नाम के समय में।"
तिवारी जी :- "राम-राम, ये क्या युग आ गया है जी ! इसी को कहते हैं, कलयुग आउर (और) भट्टयुग। है ना जी ?"
सिंह जी :- "तब और क्या जी ? यही सब दिन देखने के लिए तो रह गया है इस उम्र में।"
तिवारी जी :- "अजी, पटना के 'बिजी ट्रैफिक' या 'रेड सिग्नल' पर .. चाहे किसी 'स्पीड ब्रेकर' पर तो 'ब्रेक' के बहाने हचका का ख़ूब मज़ा लेते होंगे दोनों। है कि नहीं ?"
शर्मा जी :- "ओय .. होय .. ओय .. होय .. अरे क्या मसालेदार 'इमेजिनेशन' है आपकी तिवारी जी। मजा आ गया। आपको तो किसी रूमानी फ़िल्म का 'फ़िल्म डायरेक्टर' होना चाहिए था। याद है ना उ (वो) "एक दूजे के लिए" वाला .. फटफटिया पर .. हम बने ~ तुम बने ~ एक दूजे के लिए ~~~ .."
तिवारी जी :- "हाँ जी, आगे था .. तुम हो बुद्धू मान लो, 'यू आर हैंडसम' जान लो ~~ ... इसी मोना 'सिनेमा हॉल' में तो तीन साल तक तहलका मचा था। कइसे (कैसे) भुल सकते हैं भला जी .."
श्रीवास्तव जी :- "ये तो वर्मा जी की बहू है ना "बँहकट्टी बेलाउज" (sleeveless blouse) में ? जिसका पति अभी तीन महीने पहले कोरोना से मर गया है ? इसको कभी सुबह, तो कभी शाम, तो कभी रात में भी इसी लौंडे के साथ अक़्सर फटफटिया पर आते-जाते देखते हैं।।"
समीर :- "हाँ, हाँ, बिलकुल वही थीं।"
श्रीवास्तव जी :- "अच्छा !!"
समीर :- "हाँ .. वो वर्मा 'आँटी' की ही छोटी बहू हैं, दिव्या भाभी।
सिंह जी :- "पति को मरे तीन महीना भी नहीं हुआ और इतने कम समय में ही फुदकने लगी 'मैनिया' का जी ?"
समीर :- "दरअसल वह अभी हाल ही में कंकड़बाग के "जीवक हार्ट" अस्पताल में 'हॉस्पिटल हाउसकीपिंग सुपरवाइजर' का काम पकड़ीं हैं। वहाँ इनकी 'ड्यूटी' 'शिफ़्टों' में होती है। इसीलिए उन्हें कभी सुबह सात बजे वाली, तो कभी रात ग्यारह बजे वाली भी 'नाईट शिफ्ट' के लिए जाना पड़ता है। और जो बाइक ..."
श्रीवास्तव जी :- "हाँ, हाँ .. और जो बाइक .. ?"
समीर :- "और जो बाइक चला रहे थे, वे दीपेश भईया हैं, राहुल के भईया। राहुल .. जो मेरे ही साथ में काम करता है और दीपेश भईया उसी "जीवक हार्ट" अस्पताल में दिव्या भाभी के साथ ही काम करते हैं। ये मन्दिरी मुहल्ले में रहते हैं और दोनों की अगर समान 'शिफ्ट' की 'ड्यूटी' होती है, तो दीपेश भईया जाते समय दिव्या भाभी को  'पिक' कर लेते है और घर लौटते वक्त 'ड्राप' कर जाते हैं।"
श्रीवास्तव जी :- "अच्छा !!"
समीर :- "और तो और .. मेरी ही मार्फ़त दीपेश भईया ने दिव्या भाभी को वहाँ काम पर लगवाया है। दरअसल भईया (दिव्या के  पति) 'प्राइवेट जॉब' करते थे। इस कारण से उनके असमय गुजरने के बाद भाभी के पास कोई 'पेंशन' जैसा आर्थिक आसरा भी नहीं है।"
सिंह जी :- "ओ ..."
समीर :- "दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। अपने साथ-साथ उनका भरण-पोषण, पढ़ाई-लिखाई, खुद 'थायरॉइड पेशेंट' हैं, तो उनकी दवाईयों के लिए पैसे की ज़रूरत तो पड़ती ही है ना ?"
तिवारी जी :- "वो तो है .."
समीर :- "वो तो ग़नीमत है, कि वर्मा 'अंकल' अपनी सरकारी नौकरी से 'रिटायरमेंट' के बाद मिले एकमुश्त पैसे से अपने एकलौते बेटे-बहू के लिए एक छत्त बना गए हैं, वर्ना मकान का किराया भी भरना पड़ता अलग से।"
शर्मा जी :- "सही बात है ये तो ..."
समीर :- "अब तो ना वर्मा 'अंकल' रहे और ना 'आँटी' .. 'अंकल' को तो बुढ़ापे में 'पेंशन' का सहारा भी था , जो दो साल पहले 'हार्ट अटैक' से गुजर गए। उनके बाद 'आँटी' को 'फैमिली पेंशन' का सहारा था, पर वह भी गत वर्ष 'लीवर डैमेज' से चल बसीं। पर बेचारी दिव्या भाभी को तो वो भी ... "
श्रीवास्तव जी :- "सच में ..."
समीर :- "हम तो आप लोगों से उम्र और तज़ुर्बे में भी बहुत छोटे हैं, पर छोटी मुँह, बड़ी बात कहूँ, अगर आप सभी बुरा नहीं माने तो .. दरअसल जब तक मुँह में सुस्वादु और पौष्टिक व्यंजन वाले ग्रास के पहाड़ से हुलास के झरने मयस्सर ना हों, तब तक रासलीला या अय्याशियों की नदियाँ अठखेलियाँ नहीं कर पाती हैं .. शायद ..." 
तिवारी जी :- "समीर बाबू का तो अपना पास पड़ोस और मुहल्ला वाला 'जी. के.' एकदम से 'अपडेटेड' है श्रीवास्तव जी। आप भी तो उसी कॉलोनी में रहते हैं, पर आपको कुछ भी पता नहीं है। आप एकदम से जीरो बटा सन्नाटा हैं।"


8 comments:

  1. सुबोध भाई,ऐसा ही होता है। लोग बिना कुछ जाने दूसरों पर कीचड़ उछालने लगते है। बहुत सुंदर रचना।

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    1. जी ज्योति बहन! नमन संग आभार आपका ...

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ फरवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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  3. लोग अपने गिरेबाँ में नहीं झाँकते । किसी की मजबूरी न समझते हैं न जानना चाहते हैं ।

    बेहतरीन लिखा है ।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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  4. Replies
    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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