Sunday, April 26, 2020

सुलगते हैं कई बदन

चूल्हा और
चकलाघर में
अंतर नहीं ज्यादा
बस फ़र्क इतना कि
एक होता है ईंधन से
रोशन और दूसरा
हमारे जले सपने
और जलते तन से
पर दोनों ही जलते हैं
किसी की आग को
बुझाने के लिए
एक जलता है किसी के
पेट की आग तो दूसरा
पेट के नीचे की आग
बुझाने के लिए साहिब !

अक़्सर कई घरों में
चहारदीवारी के भीतर
अनुशासन के साथ
बिना शोर-शराबे के भी
जलते हैं कई सपने
सुलगते हैं कई बदन
मेरी ही तरह क्योंकि एक
हम ही नहीं वेश्याएँ केवल
ब्याहताएँ भी तो कभी-कहीं
सुलगा करती हैं साहिब !

अंतर बस इतना कि
हम जलती हैं
दो शहरों या गाँवों को
जोड़ती सड़कों के
किनारे किसी ढाबे में
जलने वाले चूल्हे की तरह
अनवरत दिन-रात
जलती-सुलगती
और वो किसी
संभ्रांत परिवार की
रसोईघर में जलने वाले
दिनचर्या के अनुसार
नियत समय या समय-समय पर
पर जलती दोनों ही हैं
हम वेश्याएँ और ब्याहताएँ भी
ठीक किसी जलते-सुलगते
चूल्हे की तरह ही तो साहिब !


20 comments:

  1. प्रतीक के माध्यम से रची गई सुन्दर रचना

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २७ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. जी ! आभार आपका और आपके मंच का ...

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (27-04-2020) को 'अमलतास-पीले फूलों के गजरे' (चर्चा अंक-3683) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****

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    1. जी ! आभार आपका और चर्चा-मंच का ...

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  4. सुंदर रचना ।बेहतरीन अभिव्यक्ति।

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    1. आपका आभार रचना/विचार को अनुगृहीत करने के लिए ...

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  5. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।

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    1. आपका आभार रचना/विचार तक आने के लिए ...बस समाज की बदसूरती - बस यूँ ही ...

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    1. जी ! आपका सनातनी आभार गुरु जी ☺

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  7. भावपूर्ण रचना सुबोध जी ।

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  8. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 11 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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  9. समाज के वीभत्स और कटु ढके लिपटे सत्य को ,बड़े दुस्साहस से ,रचना के माध्यम से भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी है आपने।कहीं न कहीं ये सत्य अनगिन मुस्कानों और नकली हँसी के नीचे ढके लिपटे रह जाते हैं!

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  10. जी ! नमन संग आभार आपका .. बतकही की मूल भावनाओं को उजागर करने के लिए .. बस यूँ ही ...

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  11. बहुत ही घृणित कटु सत्य...फर्क नहीं दोनों में ज्यादा..... बहुत ही मर्मस्पर्शी सृजन।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका .. कटुता को सत्य मानने के लिए .. बस यूँ ही ...

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