Tuesday, April 21, 2020

मन की मीन ... - चन्द पंक्तियाँ - (२६) - बस यूँ ही ...


(1) बस यूँ ही ...

अक़्सर हम आँसूओं की लड़ियों से
हथेलियों पर कुछ लकीर बनाते हैं
आहों की कतरनों से भर कर रंग
जिनमें उनकी ही तस्वीर सजाते हैं ..

बस यूँ ही गज़लों में तो बयां करता है
दर्द यहाँ  तो सारा का सारा ज़माना
सागर किनारे रेत पर हम तो अपनी
कसमसाहट की तहरीर उगाते हैं ...

(2) मन की मीन

ऐ ! मेरे मन की मीन
मत दूर आसमां के
चमकते तारे तू गिन ..

हक़ीकत की दरिया का
पानी ही दुनिया तेरी
बाक़ी सब तमाशबीन ...

(3) काश ! जान जाते ...

कब का गला घोंट देते
तेरा हम .. ऐ! ईमान-ओ-धर्म
काश ! जान जाते कि हमारा ही
घर ज़माने में सबसे गरीब होगा ..

हो जाते हम भी जमाने के
इस दौर में बस यूँ ही शामिल
काश ! जान पाते कि यहाँ हर
मसीहे के लिए टँगा सलीब होगा ..

तेरे ठुकराने से पहले ही
छोड़ देते हम शायद तुमको
काश ! जान जाते कि मुझसे भी
हसीन-बेहतर मेरा वो रक़ीब होगा ..

तरसता रहा मैं तो जीवन भर
ऐ दोस्त ! महज़ एक कंधे के लिए
काश ! जान पाते कि मर कर
बस यूँ ही चार कंधा नसीब होगा ...



10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 21 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी ! आपको सुप्रभात् दिग्विजय जी ! साथ ही आपका आपका रचना/विचार को अपने मंच पर जगह देने के लिए ...

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  2. वाह सुन्दर भाव सृजन

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    1. जी ! आभार आपका रचना/विचार तक आने के लिए ...

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  3. हाथों की उलझी लकीरोंं में
    आँँखों से पिघलते पीरों में
    आहों के भाप से झुलसाती
    तस्वीरे इश्क़ है तकदीरों में
    -----
    सारी लघु कविताएँ बहुत अच्छी हैं। आपके अपने अंदाज़ में बिंब और भावों का सुंदर संयोजन।

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    1. आभार आपका रचना/विचार तक आने और प्रतिक्रियास्वरुप अपनी रचना साझा करने के लिए ...

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-04-2020) को  "देश में टेलीविजन इतिहास की   कहानी लिखने वाला दूरदर्शन "   (चर्चा अंक-3678)    पर भी होगी। -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    कोरोना को घर में लॉकडाउन होकर ही हराया जा सकता है इसलिए आप सब लोग अपने और अपनों के लिए घर में ही रहें।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    1. जी ! नमन सर आपको ... संग आभार आपका मेरी रचना/विचारों को अपने मंच पर साझा करने के लिए ...

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