तय करता हुआ, डग भरता हुआ जब अपने जीवन का सफ़र
बचपन के चौखट से निकल चला मैं किशोरावस्था की डगर
तुम्हारे प्यार की गंग-धार कुछ लम्हें ही सही .. ना कि उम्र भर
जाने या अन्जाने पता नहीं .. पर हाँ .. मिली ही तो थी मगर
अनायास मन मेरा बन बैठा था बनारसिया चौरासी घाट मचल ...
बीच हमारे-तुम्हारे ना जाने कब .. कैसे जाति-धर्म आई उभर
संग ख़्याल लिए कि कम ना हो सामाजिक प्रतिष्ठा का असर
फिर तो हो कर अपने ही किए कई कसमें-वादों से तुम बेख़बर
बनी पल भर में परायी भरवा कर अपनी मांग में सिंदूर चुटकी भर
रह गया जलता-सुलगता मन मेरा मानो जलता हुआ थार मरुस्थल ...
जन्माया उस मरूस्थल की कोख़ में एक मरूद्यान हमने भी पर
फैलायी जहाँ कई रचनाओं की सोन चिरैयों ने अपने-अपने पर
होने लगे मुदित अभिनय के कई कृष्ण-मृग कुलाँचे भर-भर कर
हस्तशिल्प के कैक्टसों ने की उदासियाँ सारी की सारी तितर-बितर
जल मत जाना देख कर अब तुम मेरी खुशियों की झीलों के जल ...
बचपन के चौखट से निकल चला मैं किशोरावस्था की डगर
तुम्हारे प्यार की गंग-धार कुछ लम्हें ही सही .. ना कि उम्र भर
जाने या अन्जाने पता नहीं .. पर हाँ .. मिली ही तो थी मगर
अनायास मन मेरा बन बैठा था बनारसिया चौरासी घाट मचल ...
बीच हमारे-तुम्हारे ना जाने कब .. कैसे जाति-धर्म आई उभर
संग ख़्याल लिए कि कम ना हो सामाजिक प्रतिष्ठा का असर
फिर तो हो कर अपने ही किए कई कसमें-वादों से तुम बेख़बर
बनी पल भर में परायी भरवा कर अपनी मांग में सिंदूर चुटकी भर
रह गया जलता-सुलगता मन मेरा मानो जलता हुआ थार मरुस्थल ...
जन्माया उस मरूस्थल की कोख़ में एक मरूद्यान हमने भी पर
फैलायी जहाँ कई रचनाओं की सोन चिरैयों ने अपने-अपने पर
होने लगे मुदित अभिनय के कई कृष्ण-मृग कुलाँचे भर-भर कर
हस्तशिल्प के कैक्टसों ने की उदासियाँ सारी की सारी तितर-बितर
जल मत जाना देख कर अब तुम मेरी खुशियों की झीलों के जल ...
वाह! मरुस्थल की कोख में कुलाँचे मारता अभिसार का मृगछौना और खिलता प्यार का मोहक उद्यान।
ReplyDeleteजी ! आभार आपका मरूद्यान तक आने के लिए ...
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19 -4 -2020 ) को शब्द-सृजन-१७ " मरुस्थल " (चर्चा अंक-3676) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
जी ! नमस्कार आपको और आभार आपका इस रचना/विचार को चर्चा-मंच पर साझा करने के लिए ...
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteजी ! आभार आपका रचना/विचार को "सुन्दर" विशेषण से नवाजने के लिए ...
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteजी ! आभार आपका रचना/विचार तक आने के लिए ...
Deleteसार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजी ! आभार आपका रचना/विचार/अभिव्यक्ति को "सार्थक" शब्द के तमगा से नवाजने के लिए ...
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 11 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteजन्माया उस मरूस्थल की कोख़ में एक मरूद्यान हमने भी पर
ReplyDeleteफैलायी जहाँ कई रचनाओं की सोन चिरैयों ने अपने-अपने पर
होने लगे मुदित अभिनय के कई कृष्ण-मृग कुलाँचे भर-भर कर
हस्तशिल्प के कैक्टसों ने की उदासियाँ सारी की सारी तितर-बितर
जल मत जाना देख कर अब तुम मेरी खुशियों की झीलों के जल//
वेदना में भी विरह के आनन्द का वितान रचती रचना मेँ बुनी गयी प्रेम कथा मन को छू गयी सुबोध जी .///सच है जीवन की पीड़ा से जनित गीत सबसे मधुर माने जाते हैं!!🙏
जी ! नमन संग आभार आपका .. बतकही के मर्म को समर्थन देने के लिए ... जो सच्ची घटना पर आधारित है .. शायद ...
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