(1)@
सजे परिधान
बिंदी .. लाली ..
पायल .. चूड़ियाँ ..
इन सब का
रहता ध्यान बस ...
सजन के आने तक ...
पर रहता भला
होश किसे
इन सबका
अपने सजन के
आग़ोश में
मदहोश हो जाने पर ...
होगे होश में
और हुनरमंद भी
ऐ दुनिया वालों तुम
तो अपना ...
'बहर' .. 'रदीफ़' .. 'काफ़िया' ..
सजाओ जी भर कर .. पर ...
हूँ मदहोश मैं भी
आग़ोश में
अपने सजन के
तो मुझे ऐ होशमंदों !
अनगढ़ा "अतुकान्त"
बिखराने दो .. बस ...
(2)@
जानाँ ! ...
गढ़ता रहा
अनवरत तुझे
मैं अपनी
"अतुकान्तों" में ...
और ...
पढ़ती रही
ख़ुद को
अक़्सर तुम
"ग़ज़लों" में ...
सजे परिधान
बिंदी .. लाली ..
पायल .. चूड़ियाँ ..
इन सब का
रहता ध्यान बस ...
सजन के आने तक ...
पर रहता भला
होश किसे
इन सबका
अपने सजन के
आग़ोश में
मदहोश हो जाने पर ...
होगे होश में
और हुनरमंद भी
ऐ दुनिया वालों तुम
तो अपना ...
'बहर' .. 'रदीफ़' .. 'काफ़िया' ..
सजाओ जी भर कर .. पर ...
हूँ मदहोश मैं भी
आग़ोश में
अपने सजन के
तो मुझे ऐ होशमंदों !
अनगढ़ा "अतुकान्त"
बिखराने दो .. बस ...
(2)@
जानाँ ! ...
गढ़ता रहा
अनवरत तुझे
मैं अपनी
"अतुकान्तों" में ...
और ...
पढ़ती रही
ख़ुद को
अक़्सर तुम
"ग़ज़लों" में ...
जानाँ ! ...
ReplyDeleteगढ़ता रहा
अनवरत तुझे
मैं अपनी
"अतुकान्तों" में ...
क्या प्रस्तुति है वाह! आपका जवाब नहीं सर!
हार्दिक आभार आपका ...
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका ...
Deleteमेरे blog पर भी आए
ReplyDeletehttp://babanpandey.blogspot.com
जरूर ...
Deleteमन के सूक्ष्म गहन भावों को उकेरना आपकी लेखनी की विशिष्टता है।
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
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