Tuesday, October 29, 2019

पाई(π)-सा ...

180° कोण पर
 अनवरत फैली
  बेताब तुम्हारी
   बाँहों का व्यास
    मुझे अंकवारी
     भरने की लिए
      एक अनबुझी प्यास ...

और ...
 360° कोण तक
  निरन्तर पसरती
   तुम्हारी मायूस
    निगाहों की परिधि 
     करती मेरी किसी
      गुमशुदा-सी तलाश ...

तुम्हारे ...
 हृदय-स्पन्दन का केन्द्र
  जिसके इर्द-गिर्द
   मेरी ख़ातिर
    रचता तुम्हारा मन
     एक प्रेम-वृत्त
      और ...
       मैं और वजूद मेरा
        बस ...
         उस प्रेम-वृत्त का
          पाई(π)-सा ...

है ना ... !? ...


6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (30-10-2019) को     "रोज दीवाली मनाओ, तो कोई बात बने"  (चर्चा अंक- 3504)     पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. मन से नमन और हार्दिक आभार शास्त्री जी ...

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  3. नये बिंब विधान में प्रेम की सरस अभिव्यक्ति !!!

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    1. जी ! आभार आपका ... प्रेम हर कोण से झलकता है ..बस निगाह/सोच चाहिए ...

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