180° कोण पर
अनवरत फैली
बेताब तुम्हारी
बाँहों का व्यास
मुझे अंकवारी
भरने की लिए
एक अनबुझी प्यास ...
और ...
360° कोण तक
निरन्तर पसरती
तुम्हारी मायूस
निगाहों की परिधि
करती मेरी किसी
गुमशुदा-सी तलाश ...
तुम्हारे ...
हृदय-स्पन्दन का केन्द्र
जिसके इर्द-गिर्द
मेरी ख़ातिर
रचता तुम्हारा मन
एक प्रेम-वृत्त
और ...
मैं और वजूद मेरा
बस ...
उस प्रेम-वृत्त का
पाई(π)-सा ...
है ना ... !? ...
अनवरत फैली
बेताब तुम्हारी
बाँहों का व्यास
मुझे अंकवारी
भरने की लिए
एक अनबुझी प्यास ...
और ...
360° कोण तक
निरन्तर पसरती
तुम्हारी मायूस
निगाहों की परिधि
करती मेरी किसी
गुमशुदा-सी तलाश ...
तुम्हारे ...
हृदय-स्पन्दन का केन्द्र
जिसके इर्द-गिर्द
मेरी ख़ातिर
रचता तुम्हारा मन
एक प्रेम-वृत्त
और ...
मैं और वजूद मेरा
बस ...
उस प्रेम-वृत्त का
पाई(π)-सा ...
है ना ... !? ...
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (30-10-2019) को "रोज दीवाली मनाओ, तो कोई बात बने" (चर्चा अंक- 3504) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मन से नमन और हार्दिक आभार शास्त्री जी ...
ReplyDeleteअच्छी कविता
ReplyDeleteहार्दिक आभार ...
Deleteनये बिंब विधान में प्रेम की सरस अभिव्यक्ति !!!
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ... प्रेम हर कोण से झलकता है ..बस निगाह/सोच चाहिए ...
Delete