Friday, June 7, 2019

इन्सानी फ़ितरत

साहिब !
ये तो इन्सानी फ़ितरत है
कि जब उसकी जरूरत है
तो होठों से लगाता है
नहीं तो ... ठोकरों में सजाता है
ये देखिए ना हथेलियों के दायरे में मेरे
बोतल बदरंग-सा
ये रहता है जब-जब भरा-भरा
रंगीन मिठास भरा शीतल पेय से
तब नर्म-नाजुक उँगलियों के
आगोश में भरकर अपने होठों से
लगाया करते हैं सभी
होते हैं तृप्त इनके तन और मन भी
ख़त्म होते ही मीठी रंगीन तरल
जमीं पर फेंका जाता है बोतल
और गलियों-सड़कों पर लावारिस-सा
लुढ़कता रहता है बस्ती -शहर के
या पाता है चैन किसी नगर-निगम के
कूड़ेदान के बाँहों में। हाँ, साहिब !
लोग कहते हैं
मैं पगली हूँ
इस बोतल का दर्द ...
मैं तो समझती हूँ ...
पर ... साहिब ! ... आप !???

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार, जुलाई 23, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. यशोदा जी इस मान के लिए शुक्रिया ...

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  2. वाह !और वाह !भवों के साथ बहते शब्द हृदय तल में उतर गये |आप का लेखन बहुत पसंद आया
    प्रणाम
    सादर

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    1. अनीता जी आभार आपका !

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  3. वाह!!!
    कमाल की रचना...
    आगोश में भरकर अपने होठों से
    लगाया करते हैं सभी
    होते हैं तृप्त इनके तन और मन भी
    ख़त्म होते ही मीठी रंगीन तरल
    जमीं पर फेंका जाता है बोतल
    और गलियों-सड़कों पर लावारिस-सा
    लुढ़कता रहता है बस्ती -शहर के
    वाह!!!

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    1. आपका आभार सुधा जी !

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