Saturday, May 25, 2019

गर्भनाल

यूँ तो दुनिया भर के
अँधेरों से डरते हैं सभी
कई बार डरा मैं भी
पर कोख के अंधियारे में
तुम्हारी अम्मा मिला जीवन मुझे
भला डर लगता कैसे कभी ...

हर दिन थोड़ा-थोड़ा गढ़ा मुझे
नौ माह तक अपने उसी गर्भ में
जैसे गढ़ी होगी उत्कृष्ट शिल्पकारियाँ
बौद्ध भिक्षुओं ने वर्षों पहले
अजंता-एलोरा की गुफाओं में कभी ...

तुम संग ही तो था बंधा पहला बंधन
जीवन-डोर सा गर्भनाल का और..
पहला स्पर्श तुम्हारे गर्भ-दीवार का
पहला आहार अपने पोपले मुँह का
पाया तुम्हारे स्तनों से
जिसके स्पर्श से कई बार
अनकहा सुकून था पाया
बेजान मेरी उँगलियों की पोरों ने
राई की नर्म-नाजुक फलियों-सी ...

काश ! प्रसव-पीड़ा का तुम्हारे
बाँट पाता मैं दर्द भरा वो पल
जुड़ पाता और एक बार
फिर तुम्हारी गर्भनाल से ..
आँखें मूंदें तुम्हारे गर्भ के अँधियारे में
चैन से फिर से सो जाता
चुंधियाती उजियारे से दूर जग की ...
है ना अम्मा ! ...

2 comments:

  1. माँ और संतान के शाश्वत रिश्ते को बहुत ही मार्मिकता से शब्दबद्ध किया है आपने सुबोध जी | काश !हर निष्ठुर संतान ये जान ले कि माँ के साथ कितना विराट संबध होता है एक संतान का |सराहना से परे अत्यंत भावभीना सृजन सुबोध जी | संतान का ये मर्मस्पर्शी उद्बोधन किसी भी माँ को गर्व से भर देगा | आपकी रचनात्मक प्रतिभा का बहुत ही उत्कृष्ट नमूना है ये रचना | हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार हों | माँ शारदे इस सृजनात्मकता में चार चाँद लगाये |

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    1. आपकी रचना के प्रति भावपूर्ण प्रतिक्रिया बहुत अच्छी लगी। सराहना और प्रोत्साहन के लिए हार्दिक शुक्रिया आपका ...

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