Wednesday, September 8, 2021

ना 'सिरचन' मरा, ना मरी है 'बुधिया' ... -(भाग-३).

एक प्रशिक्षु-सा ही :-

कफ़न का घीसू 

इन युवाओं के कारण ही टीवी के मशहूर कार्यक्रम- 'द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज के पाँचवें 'सीजन' के विजेता (Winner of The Great Indian Laughter Challenge, Season-5th, 2017)- अभिषेक वालिया के साथ एक ही मंच पर 2020 में 'स्टैंडअप कॉमेडी' (Standup Comedy) करने का भी मौका मिला .. बस यूँ ही ...


अभिषेक वालिया के साथ

यूँ तो इन युवाओं से मेरे मृतप्राय लेखन को पुनर्जन्म अवश्य मिला, पर लेखन को एक नयी डगर मिली, लगभग एक साल बाद, 2019 में बेशक़ ब्लॉग की दुनिया में आकर। हालांकि यहाँ भी कुछ-कुछ टाँग खिंचाई (Leg Pulling) देखने के लिए मिला .. शायद ...

ख़ैर ! .. फ़िलहाल तरुमित्र आश्रम के रमणीक परिसर में अवस्थित महाविद्यालय के BMC के छात्रों द्वारा बनाई गयी फ़िल्म- कफ़न की बात करते हैं। सुबह से शाम तक तरुमित्र के इसी रमणीक परिसर में और परिसर में ही अवस्थित महाविद्यालय के भवन व उसके 'कैंटीन' में सभी युवा छात्र-छात्राओं के साथ-साथ, कब और कैसे बीत गया, मालूम ही नहीं चल पाया। यूँ तो .. 'शूटिंग' का समय तय था .. सुबह नौ बजे से, पर शुरू हुआ .. लगभग दस-ग्यारह बजे; तो वस्तुतः पूरी फ़िल्म दस-ग्यारह से शाम चार बजे तक में फ़िल्म की शूटिंग पूर्ण कर ली गई थी। इसी समय में, बीच-बीच में हल्का-फुल्का 'रिफ्रेशमेंट', दोपहर का 'लंच' भी शामिल था। एक छात्रा के घर से लायी गई पूड़ी-भुजिया भी, जो उनकी माँ ने बड़े ही प्यार से बना कर 'टिफ़िन' में सहेज कर उसे सुपुर्द किया होगा, मिल-बाँट कर खाने के लिए मिला। सभी दिन भर बहुत ही उत्साहित और ऊर्जावान थे। उनके साथ-साथ हम भी स्वयं को एक प्रशिक्षु-सा ही महसूस कर रहे थे। उन से भी बहुत कुछ सीखने के लिए मिल रहा था।





















































ना सिरचन मरा :-

इनके प्यार से बुला भर लेने से मेरा इन लोगों के बीच सहज ही समय निकाल कर उपस्थित हो जाना, अनायास अपने उच्च विद्यालय की पढ़ाई के दौरान पढ़ायी/पढ़ी गईं, बिहार के फणीश्वरनाथ रेणु जी की आँचलिक कहानी- ठेस के एक पात्र- सिरचन की बरबस याद हो आती है। ख़ासकर उस कहानी की कुछ पंक्तियाँ- मसलन - " सिरचन मुँहजोर है, कामचोर नहीं। ", " बिना मज़दूरी के पेट-भर भात पर काम करने वाला कारीगर। दूध में कोई मिठाई न मिले, तो कोई बात नहीं, किंतु बात में ज़रा भी झाल वह नहीं बर्दाश्त कर सकता। ", " कलाकार के दिल में ठेस लगी है। वह अब नहीं आ सकता। " इत्यादि .. आज भी इन सारी पंक्तियों के अलावा, कहानी का अंतिम दृश्य मन को द्रवित और आँखों के कोरों को नम कर जाता  है। लगता है, मानो .. उस कलाकार- सिरचन की आत्मा पूरी की पूरी आकर हमारे अंदर समा गई हो। ऐसे में लगता है, मानो वह सिरचन आज भी मेरे अंदर ज़िन्दा है, मरा नहीं है .. बस यूँ ही ...

वैसे तो हर सच्चा कलाकार अपने आप में एक सिरचन ही होता है, जिसे प्यार मिले तो पानी और ना मिले तो पत्थर बन जाने में तनिक भी हिचक नहीं होती। अगर उसकी आत्मा सिरचन की आत्मा से सिक्त नहीं है, तो वह कलाकार हो ही नहीं सकता .. शायद ...

ना मरी है बुधिया ... :-

फ़िल्म के अंत में इन लोगों ने मूल कहानी से परे, बुधिया की आत्मा को एक संदेशपरक और दर्शन से भरे, छत्तीसगढ़ी लोकगीत को गाते हुए तथा उस गीत पर उसे नाचते-झूमते हुए दिखलाने का प्रयास किया है। हालांकि यह लोकगीत, अन्य कई-कई पुराने लोकगीतों, ठुमरियों, सूफ़ी गीतों की तरह "पीपली लाइव" नामक एक फ़िल्म में भी बेधड़क इस्तेमाल किया गया है।

वैसे भी बुधिया की केवल आत्मा ही क्यों भला, हमारे परिवेश में तो आज भी कई सारी बुधियाएँ सशरीर अपनी घिसटती ज़िन्दगी जीती हुई, तड़प-तड़प कर दम तोड़ देती हैं और घीसू की तरह हम भी बहरे-अँधे बने, उन की पीड़ाओं से बेपरवाह हम अपनी ज़िन्दगी जी या काट या फिर भोग रहे होते हैं .. शायद ...

आज बस .. अब कल आइए .. कुछ भी कहते-सुनते (लिखते-पढ़ते) नहीं हैं .. बल्कि हम मिलकर देखते हैं .. मुंशी प्रेमचंद जी की मशहूर कहानी- कफ़न पर आधारित एक लघु फ़िल्म .. हम प्रशिक्षुओं का एक प्रयास भर .. "ना 'सिरचन' मरा, ना मरी है 'बुधिया' ... -(भाग-४)."  में .. बस यूँ ही ...







Tuesday, September 7, 2021

ना 'सिरचन' मरा, ना मरी है 'बुधिया' ... -(भाग-२).

आम जनता के मार्फ़त राष्ट्र-मानस ... :-

इसी तरुमित्र आश्रम या तरुमित्र के विशाल परिसर में, इसी के अंतर्गत, सन् 2012 ईस्वी से सेंट जेवियर्स कॉलेज ऑफ मैनेज्मेंट एंड टेक्नॉलजी, पटना (St Xavier’s College of Management and Technology, Patna) एक प्रतिष्ठित महाविद्यालय है, जो बिहार की ही आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी, पटना (Aryabhatta Knowledge University, पटना) नामक एक विश्वविद्यालय से संबद्ध (affiliated) है। यहाँ BCA (Bachelor of Computer Applications), BBA (Bachelor of Business Administration), BBE (Bachelor in Business Economics) और BMC (Bachelor of Mass Communication) के अलावा BBM, BCE, BCP इत्यादि जैसे स्नातक स्तर की पढ़ाई करने की बेहतर ही नहीं, बल्कि बेहतरीन सुविधा उपलब्ध हैं।

इनमें BMC (Bachelor of Mass Communication) के अंतर्गत, जनसंचार यानि मास कम्युनिकेशन (Mass Communication) विषय में तीन वर्षीय पाठ्यक्रम (Course) स्नातक (Graduation) करने की सुविधा है, जो कि वर्तमान में युवाओं की नौकरी के लिए एक चुनौतीपूर्ण, पर लुभावना अवसर है। इस 'कोर्स' के अंतर्गत फिल्म (Film), रेडियो (Radio), टीवी (TV), न्यूजपेपर (Newspaper), एडवरटाइजिंग (Advertising), पब्लिक रिलेशन (Public Relation), इवेंट मैनेजमेंट (Event Management), मार्केटिंग (Marketing) आदि के बारे में पढ़ाया जाता है। जनसंचार शब्द का प्रयोग ही टेलीविज़न, रेडियो, समाचार-पत्र, पत्रिका, पुस्तक, फिल्म या संगीत रिकार्ड आदि के माध्यम से सूचना, संदेश, कला व मनोरंजन सामग्री के वितरण को दिखलाने के लिए किया जाता है। लोगों से जुड़ने के लिए ये सारे के सारे सशक्त जनमाध्यम हैं। इस प्रकार हम मान सकते हैं, कि आम जनता के मार्फ़त राष्ट्र-मानस के निर्माण में भी इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका या योगदान है .. शायद ...



"पर्ची ... ( महिला- साक्षरता )" :-

गत वर्ष हमने इसी ब्लॉग पर एक पोस्ट - " पर्ची .. ( महिला साक्षरता )." साझा की थी, जिसमें Amity University, Patna के अन्तर्गत अध्ययनरत BMC की ही एक छात्रा द्वारा अपने पाठ्यक्रम के तहत अपने एक परियोजना कार्य (Project Work) हेतु स्वयं निर्मित एक संदेशपरक 'यूट्यूब फ़िल्म' - "पर्ची" भी संलग्न थी। फरवरी' 2018 में पटना में होने वाले 'यौरकोट्' (Yourquote) के 'ओपन मिक' (Open Mic) में पहली बार संयोगवश शिरकत करने पर इस छात्रा के अलावा .. और भी अन्य कई युवाओं से  पहचान हुई थी। फिर तो गत वर्ष के कोरोनाकाल के आरम्भ होने के पहले तक, दो वर्षों तक एक सिलसिला-सा चल निकला था या अगर .. यूँ कहें तो, हमको तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं होगी, कि अपने लेखन या अभिनय के लगभग तीस-पैंतीस सालों के एक लम्बे विराम के बाद, इनको मिले पुनर्जन्म के प्रेरणास्रोत इन्हीं 'ओपन मिक' के युवागण बनते चले गए .. बस यूँ ही ...














इनमें से कुछ ने, मेरे कॉलेज के जमाने में स्वयं के एकल अभिनय के लिए, मेरे लिखे संवाद के आधार पर एक लघु यूट्यूब फ़िल्म- "मुआवज़ा" फ़िल्माया; तो किसी टीम ने अपनी छः 'एपिसोड' वाले एक 'वेब सीरीज'- "लिट्टी वाला लव" में चाय वाले चाचा का अभिनय करने का मौका दिया। जिनसे संबंधित पोस्ट हम पहले ही मुआवज़ा ... और चाय वाले चच्चा उर्फ़ लिट्टी वाला लव ( वेब-सीरीज ). शीर्षक के साथ साझा कर चुके हैं।





इन्हीं गत तीन वर्षों में, इन युवाओं के अलावा कई वयस्क संस्थानों या सम्मेलनों में भी शिरक़त करने का मौका मिला, पर वहाँ की तथाकथित "राजनीति" और "व्यवहारिकता" मेरे समझ से परे होने के कारण हमें भी परे हो जाना पड़ा। लोगों का कहना है, कि व्यस्कों की तुलना में बच्चे तथाकथित भगवान के रूप होते हैं, क्योंकि उनका मन कलुषित नहीं होता है ; वैसे ही मुझे भी ये युवा लोग उन वयस्क बुद्धिजीवियों से बेहतर ही लगे .. बस यूँ ही ...

इन्हीं युवाओं में से एक-दो, जो उपर्युक्त सेंट जेवियर्स कॉलेज ऑफ मैनेज्मेंट एंड टेक्नॉलजी, पटना से इसी वर्ष BMC की पढ़ाई पूरी करने वाले हैं; उन के कहने पर इसी जुलाई महीने में पुनः हम हाज़िर हो गए, उनके एक परियोजना कार्य (Project Work) के तहत मुंशी प्रेमचंद जी की लिखी प्रसिद्ध कहानी- कफ़न पर बनायी जा रही एक लघु फ़िल्म में कहानी का एक किरदार- घीसू बनने के लिए। वैसे तो कहानी में थोड़ा-बहुत इन छात्रों के द्वारा अपने अनुसार परिवर्तन किया गया है। इस के अन्य सभी पात्र- बुधिया, माधव, जमींदार वग़ैरह .. सब के सब इसी महाविद्यालय के छात्रगण हैं। 












फ़िलहाल आज यहीं विराम देते हैं और फिर मिलते हैं "ना 'सिरचन' मरा, ना मरी है 'बुधिया' ... -(भाग-३)." के साथ .. बस यूँ ही ...