Saturday, January 4, 2025

कहाँ बुझे तन की तपन ... (३)


गत बतकही "कहाँ बुझे तन की तपन ... (१)" और ... "कहाँ बुझे तन की तपन ... (२)" के अंतर्गत "बाल कवि बैरागी" जी एवं "वर्मा मलिक" जी के बारे में कुछ-कुछ जानने के पश्चात आज .. इस "कहाँ बुझे तन की तपन ... (३)" में एक अन्य अद्भुत रचनाकार के बारे में अपनी बतकही के साथ पुनः उपस्थित ...

जिनका आज ही के दिन सौ साल पहले .. यानी सन् 1925 ईस्वी में 4 जनवरी को यमुना और चंबल नदियों के संगम पर बसे वर्तमान उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में जन्म हुआ था। ये वही इटावा है, जहाँ से 1925 में ही अंग्रेजों के विरोध में घटित तत्कालीन "काकोरी षड्यंत्र कांड" के संदर्भ में स्वतन्त्रता सेनानी "ज्योति शंकर दीक्षित" जी को गिरफ्तार करने के बाद, फिर रिहा भी कर दिया गया था।

वह महान रचनाकार अपनी लगभग छः वर्ष की आयु में ही पितृहीन होने के बावज़ूद भी 'हाई स्कूल' की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए थे। फिर जीवकोपार्जन के लिए कचहरी में टंकक यानी 'टायपिस्ट' के काम की शुरुआत करने के बाद एक सिनेमाघर की दुकान पर नौकरी किए। फिर दिल्ली के सफाई विभाग में 'टायपिस्ट' की नौकरी किए। उसके बाद कानपुर के डी०ए०वी कॉलेज में किरानी बने। फिर एक 'प्राइवेट कम्पनी' में लगभग पाँच साल तक पुनः 'टायपिस्ट' का काम किए। जीवकोपार्जन वाली इन सब विभिन्न नौकरियों के साथ-साथ वह 'प्राइवेट' परीक्षाएँ देकर इण्टरमीडिएट, बी०ए० और हिन्दी साहित्य के साथ प्रथम श्रेणी में एम०ए० भी किए। 

मेरठ के मेरठ कॉलेज में हिन्दी व्याख्याता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन किए। जहाँ कॉलेज प्रशासन द्वारा उन पर कक्षाएँ न लेने और रोमांस करने के लांछन लगाए गए। जिस कारणवश वह नौकरी से त्यागपत्र दे दिए। उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त किए गए थे।

वह हिन्दी साहित्यकार, शिक्षक, कवि सम्मेलनों के लोकप्रिय मंचीय कवि एवं फ़िल्मी गीतकार भी थे। माना जाता है , कि शिक्षा व साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और पद्म भूषण से भी सम्मानित किए जाने वाले वह पहले व्यक्ति थे। फ़िल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के कारण उनके गीतों को 1970 से 1972 तक लगातार तीन सालों तक हर बार "सर्वश्रेष्ठ गीतकार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार" के लिए नामांकित किया तो गया था , परन्तु 1970 में उन्हें यह पुरस्कार मिला था। 

उन गीतों के मुखड़े कुछ यूँ हैं : -

(१) 1970 में फ़िल्म - "चंदा और बिजली" के लिए -

      काल का पहिया घूमे भैया, लाख तरह इंसान चले,

      ले के चले बारात कभी तो, कभी बिना सामान चले ... 

इस गीत के एक अंतरा की एक पंक्ति कितनी प्रायोगिक है, कि - "कर्म अगर अच्छा है तेरा, क़िस्मत तेरी दासी है" ...

 (२) 1971 में फ़िल्म - "पहचान" के लिए -

       बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ,

       आदमी हूँ, आदमी से प्यार करता हूँ ... 

इसके तो सभी अंतरे आज भी उतने ही अर्थपूर्ण लगते हैं, जैसे कि -       "एक खिलौना बन गया दुनिया के मेले में

               कोई खेले भीड़ में कोई अकेले में

               मुस्कुरा कर भेंट हर स्वीकार करता हूँ

               आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ   ...

और दूसरा -

             मैं बसाना चाहता हूँ स्वर्ग धरती पर

             आदमी जिस में रहे, बस आदमी बनकर

             उस नगर की हर गली तैयार करता हूँ

             आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ   ...

और ये भी , कि -

           हूँ बहुत नादान, करता हूँ ये नादानी

           बेच कर खुशियाँ, खरीदूँ आँख का पानी

           हाथ खाली हैं, मगर व्यापार करता हूँ

           आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ   ...

  (३) 1972 में फ़िल्म - "मेरा नाम जोकर" के लिए -

        ऐ भाई ! ज़रा देख के चलो ,

        आगे ही नहीं, पीछे भी, दाएँ ही नहीं बाएं भी,

        ऊपर ही नहीं नीचे भी, ऐ भाई !

उपरोक्त गीत के दो निम्न अंतरों ने तो मानो .. जैसे .. दुनियादारी की गीता या यूँ कहें कि 'इन्साइक्लोपीडिया' यानी विश्वकोश ही रच डाली है -

       क्या है करिश्मा, कैसा खिलवाड़ है 

       जानवर आदमी से ज़्यादा वफ़ादार है 

       खाता है कोड़ा भी, रहता है भूखा भी 

       फिर भी वो मालिक पे करता नहीं वार है 

       और इंसान ये, माल जिसका खाता है 

       प्यार जिस से पाता है, गीत जिस के गाता है 

       उसी के ही सीने में भोकता कटार है

       कहिए श्रीमान आपका क्या विचार है ?

और दूसरा अंतरा ये है, कि -

      हाँ बाबू ये सर्कस है और ये सर्कस है शो तीन घंटे का   

      पहला घंटा बचपन है,दूसरा जवानी है, तीसरा बुढ़ापा है  

      और उसके बाद,माँ नहीं, बाप नहीं,बेटा नहीं बेटी नहीं 

      तू नहीं, मैं नहीं, ये नहीं, वो नहीं कुछ भी नहीं 

      कुछ भी नहीं रहता है, रहता है जो कुछ वो 

      ख़ाली-ख़ाली कुर्सियाँ हैं, ख़ाली-ख़ाली तम्बू है 

      ख़ाली-ख़ाली घेरा है, बिना चिड़िया का बसेरा है 

      न तेरा है, न मेरा है .."

जी हाँ बाबू ! .. ऐसी अर्थपूर्ण रचनाओं के रचनाकार थे / हैं ...  गोपालदास सक्सेना जी, जिन्हें हम सभी  "नीरज" या गोपालदास 'नीरज' के नाम से जानते हैं, सुनते हैं। इस नामचीन कवि की कई लोकप्रिय कविताओं को हम सभी ने पढ़ा- देखा- सुना है।

पर उन सबसे इतर .. चलते-चलते उनके एक रुमानियत की चाशनी में पगे पहाड़ी राग पर आधारित उस गीत को सुनते हैं ; जिसमें उनकी अलग ही शोख़ी भरी सोच और अलबेले बिम्ब वाले रूप देखने- सुनने के लिए मिलते हैं। जिसे 1970 में देवानन्द के निर्देशन में बन कर आयी फ़िल्म - "प्रेम पुजारी" के लिए "नीरज" जी ने लिखा था। संगीत था सचिन देव बर्मन जी का और आवाज़ थी किशोर कुमार की। गीत का मुखड़ा है - 

" लेना होगा जनम हमें, कई कई बार ~~"

यूँ तो गीत की शुरुआत निम्नलिखित पँक्तियों से होने कारण इसके ही मुखड़े होने का भान होता है -

" फूलो के रंग से, दिल की कलम से 

   तुझको लिखी रोज पाती ~~

   कैसे बताऊँ किस-किस तरह से 

   पल-पल मुझे तू सताती ~~ "

आगे तो सारे अंतराओं के सारे बिम्ब अनूठे और ग़ौरतलब हैं .. शायद ... ख़ासकर .. गीत सुनने वालों के लिए नहीं भी हो तो, कम से कम गीत में डूबने वालों के लिए तो है ही .. मसलन -

तेरे ही सपने, लेकर के सोया

तेरी ही यादों में जागा

तेरे ख़्यालों में उलझा रहा यूँ

जैसे के माला में धागा


हाँ, बादल बिजली चंदन पानी जैसा अपना प्यार

लेना होगा जनम हमें, कई कई बार

हाँ, इतना मदिर, इतना मधुर तेरा मेरा प्यार

लेना होगा जनम हमें, कई कई बार


साँसों की सरगम, धड़कन की वीणा, 

सपनों की गीताँजली तू

मन की गली में, महके जो हरदम,  

ऐसी जुही की कली तू

छोटा सफ़र हो, लम्बा सफ़र हो, 

सूनी डगर हो या मेला

याद तू आए, मन हो जाए, भीड़ के बीच अकेला

हाँ, बादल बिजली, चंदन पानी जैसा अपना प्यार

लेना होगा जनम हमें, कई कई बार


पूरब हो पच्छिम, उत्तर हो दक्खिन, 

तू हर जगह मुस्कुराए

जितना भी जाऊँ, मैं दूर तुझसे, 

उतनी ही तू पास आए

आँधी ने रोका, पानी ने टोका, 

दुनिया ने हँस कर पुकारा

तसवीर तेरी, लेकिन लिये मैं, कर आया सबसे किनारा

हाँ, बादल बिजली, चंदन पानी जैसा अपना प्यार

लेना होगा जनम हमें, कई कई बार


हाँ, इतना मदिर, इतना मधुर तेरा मेरा प्यार

लेना होगा जनम हमें, कई कई बार

कई, कई बार ~~ कई, कई बार ~~~



7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 05 जनवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  2. नव वर्ष शुभ हो | सुन्दर |

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    1. जी ! .. सादर नमन संग आभार आपका और .. आपको भी नया कैलेंडर मुबारक़ हो ...

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  3. वाह ! नीरज के अनोखे रचना संसार से परिचय कराने और इस अनमोल गीत को पढ़वाने के लिए आभार !

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