दूरदर्शन, उत्तराखण्ड द्वारा एक कार्यक्रम का प्रसारण 27 मई 2023, कल शनिवार को शाम 5.00 बजे से दूरदर्शन, उत्तराखण्ड 'टी वी चैनल' एवं dd uttarakhand 'यूट्यूब चैनल' पर भी एक साथ प्रसारित होगा।
अगर आपके 'टी वी' में दूरदर्शन, उत्तराखण्ड 'चैनल' उपलब्ध है, तो ठीक, अन्यथा आप अपने 'मोबाइल' में 'यूट्यूब' पर dd uttarakhand के निम्न 'लिंक' द्वारा उस कार्यक्रम का रसास्वादन ले सकते हैं .. बस यूँ ही ...
https://youtube.com/@DoordarshanUttarakhand
यूँ तो .. कार्यक्रम का विषय 27 मई 2023, कल शनिवार को शाम 5.00 बजे अपने 'टी वी' या 'मोबाइल' पर देख कर आप जान ही जायेंगे .. शायद ...
अनुरोध है, कि पाँच मिनट पहले ही उपरोक्त 'लिंक' खंगालने की कोशिश कर लीजिएगा .. बस यूँ ही ...
बाक़ी 23 मई 2023, मंगलवार को कार्यक्रम की 'रिकॉर्डिंग' के दौरान वाली अनुभूति कुछेक उपलब्ध pics के साथ हम किसी अगले 'पोस्ट' में साझा कर पाएँ .. शायद ...
फिलहाल अब आज की बतकही को झेलने की बारी ...
साँसों की ओलती ...
पूछ भर लिया क्या एक बार,
मंच पर सामने से रूमानी अंदाज़ में
'स्टैंड-अप कॉमेडियन' जाकिर खान ने
कि - "लड़कियाँ इतनी महकती क्यों हैं ?"
या .. 'यूट्यूब' पर या फिर कभी
'जश्न-ए-रेख्ता' के मंच से कभी
बोल भर दिया कि- "लड़कियों में ख़ुश्बू होती है एक,
जो सिर्फ हमें पता होता है।" तो ...
हठात् हँस पड़े तुम ताली पीटते हुए सारे के सारे
लयबद्ध "ओय-होय" की गूँज संग .. बस यूँ ही ...
भला हँसे भी क्यों ना भीड़ तुम्हारी ?
वो जो है एक मशहूर 'स्टैंड-अप कॉमेडियन'
और ठहरे तुम सारे .. सात जन्मों के सम्बन्धों को
बस .. सात दिनों के 'वैलेंटाइन वीक' में
किसी 'फ़ास्ट फ़ूड' की तरह
'फ़ास्ट' .. 'फ़ास्ट' निपटाने वाले .. हैं ना ?
हाँ !!! ... ये सच है कि लड़कियाँ महकती हैं,
सोंधी .. सोंधेपन लिए हुए नाना प्रकार के,
जो सुगंध थी, है व रहेगी एक विशुद्ध विज्ञान की पोटली,
मिला जो हमें प्रकृति प्रदत्त एक वरदानरूपी .. बस यूँ ही ...
कब रही फ़ुर्सत तुमको भला ?
शुद्ध, सात्विक, सोंधी सुगंध ...
मन से सूँघने की .. साँसों में भरने की।
रहते हो तुम और टोलियाँ तुम्हारी सारी की सारी,
तो बस .. बनावटी और रसायनयुक्त,
व्यवसायिक विज्ञापनों वाली
तथाकथित हवा भरी या फिर .. शायद ...
चौबीस घंटे तक चलने वाली 'डिओडोरेंट' की
फुहारों में अक़्सर .. फ़ुस्स,
फ़ुस्स .. फ़ुस्स .. बस और बस फ़ुस्स .. बस यूँ ही ...
इत्मीनान से खुले बालों में उसके कभी
कंपकपाती उँगलियों से अपनी
काढ़ कर लकीर एक लम्बी माँग की,
कतार-सी टिमटिमाती जुग्नूओं की,
हो जो मानो अँधेरी रातों में भादो की ..
फिर .. समानांतर लकीर के, काढ़ी गयी माँग की,
बहाना कभी अपनी नर्म-गर्म साँसों की ओलती।
और .. सुनो ! .. उस शुद्ध, सात्विक और सोंधी,
सुगंध से कर लेना तर-ब-तर कभी
साँसों और फेफड़ों की धौंकनी अपनी .. बस यूँ ही ...