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Thursday, November 14, 2024

दो टके का दो टूक ... (१)

 


आज हम उपलब्ध इतिहास की मानें, तो कभी कंदराओं में रहने वाले नग्न आदिमानव भले ही क़बीलों में बँटे हुए, तब अपनी उत्तरजीविता के लिए आपस में युद्धरत रहा करते थे। परन्तु उन क़बीलों से वर्तमान क़ाबिल हो जाने तक का एक लम्बा सफ़र तय करने के बाद भी आज तो और भी ज़्यादा ही अन्य कई सारे आपसी दृष्टिकोणों वाले मतभेद जनित वर्चस्व की प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से आपसी लड़ाई में वो निरन्तर तल्लीन दिखाई देते हैं .. शायद ...

चाहे वो मामलात धर्म-सम्प्रदाय के हों, पर्व-त्योहार के हों, जाति-क्षेत्र के हों, जीवनशैली के हों .. हर क्षेत्र में, हर पल .. जनसमुदाय खेमों में बँटा हुआ दिखता है। इस वर्ष दीपावली जैसे त्योहार में भी हमारा तथाकथित बुद्धिजीवी एवं तथाकथित सनातनी समाज दो-तीन अलग-अलग हास्यास्पद मामलों में .. विवादास्पद रूप से दो गुटों में बँटा हुआ दिखा है .. शायद ...
पहले मामले में .. एक गुट, जो अपने तर्क की बुनियाद पर 31 अक्टूबर को दीपावली मनाने की बातें कह रहा था, तो दूसरा गुट 1 नवम्बर को मनाने की पैरवी कर रहा था। दूसरे मामले में एक तरफ़ आज भी तथाकथित बुद्धिजीवियों का एक वर्ग यह मानता है, कि धनतेरस-दीपावली के दौरान उल्लू दिख जाने से सालों भर घर में लक्ष्मी आतीं हैं और दूसरा वर्ग वह .. जो तथाकथित रूप से नास्तिक या फिर अल्पज्ञानी कहलाता है, वह इस मान्यता को एक सिरे से नकार देता है। उसी प्रकार तथाकथित धनतेरस के दिन अपनी हैसियत के अनुसार एक वर्ग कुछ धातु , सोना-चाँदी व उससे बने गहनों से लेकर एल्युमीनियम-स्टील तक के बर्त्तन या साईकिल से लेकर कार तक , की खरीदारी करने से अपने-अपने घर में सालों भर तथाकथित लक्ष्मी आगमन की बात मानता है ; तो वहीं दूसरा वर्ग धनतेरस के अवसर पर तथाकथित भगवान धन्वंतरि को स्वास्थ्य व औषधि- अमृत का देवता मान कर उनकी पूजा करता है।

फिर .. तीसरे मामले में .. एक गुट धर्म-त्योहार एवं सभ्यता- संस्कृति की आड़ में आतिशबाज़ी के प्रयोग का पक्षधर बना हुआ था, तो दूसरा गुट आतिशबाज़ी से फ़ैलने वाले वायु प्रदूषण के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण के परिणामस्वरूप पर्यावरण की क्षति की बात करते हुए इसके विरोध में कई तरह के तर्क दे रहा था। अमूमन ऐसा हर वर्ष ही होता है। एक तरफ़ कई राष्ट्रीय स्तर के समाचार चैनल वाले अपनी तथाकथित टीआरपी (टेलीविजन रेटिंग पॉइंट) के लालच में बहुसंख्यक जनसैलाब की अपभ्रंश व रूढ़िवादी सोचों वाली मान्यताओं की हाँ में हाँ मिलाते हुए, आतिशबाज़ी से पर्यावरण को कम हानि होंने की बात बतला कर आतिशबाज़ी को सही ठहरा रहे थे।
ये वही संचार के साधन हैं, जो अपने माध्यम से हमारे घरों में, हमारी हैसियत के मुताबिक उपलब्ध सस्ते से सस्ते और महँगे से महँगे टी वी पर .. नर-नारी को पहनने के लिए हमारे बाज़ारों में  उपलब्ध एक 'ब्रांडेड' चड्ढी-बनियान की बिकवाली वाले विज्ञापन में एक युवा द्वारा एक पिता से उसकी बेटी को भगा कर ले जाने की बात मोबाइल फ़ोन पर .. बड़े ही आराम से .. करते हुए दिखलाते हैं .. वो भी हमारी युवा संतानों के मस्तिष्क में .. बड़े ही आराम से .. भागने-भगाने जैसी असंवैधानिक प्रक्रिया को दिखलाते हुए .. शायद ...

दूसरी तरफ़ .. बिना किसी लाग-लपेट के .. इसी चार नवम्बर को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका ने प्रतिबंध आदेशों के बावजूद दिल्ली में दीपावली के अवसर पर अधिकांश लोगों द्वारा आतिशबाज़ी किए जाने पर दिल्ली सरकार और पुलिस आयुक्त को भी जवाब तलब किया है। साथ ही उन्हें 2025 में पटाख़ों की बिक्री और उपयोग को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए उनकी अपनी योजनाओं के साथ एक सप्ताह में हलफ़नामा दायर करने का भी आदेश दिया है।
इस मामले की गंभीरता न्यायमूर्ति के इस वक्तव्य से और भी स्पष्ट हो रही है, कि "अगर उन प्रतिबंध आदेशों को कड़ाई से लागू नहीं किया गया तो स्थिति अराजक हो सकती है।" उनका ये भी कहना था, कि "भारत सरकार द्वारा "वायु प्रदूषण अधिनियम" में 1 अप्रैल, 2024 से संशोधन करते हुए, इसके दंडात्मक प्रावधान को हटा कर, केवल जुर्माना भरने तक का ही प्रावधान कर देने से उल्लंघनकर्ताओं का भय और भी ज़्यादा कम हो गया है।

सर्वोच्च न्यायालय का मानना ​​है, कि कोई भी धर्म ऐसी किसी भी गतिविधि को प्रोत्साहित नहीं करता है, जिससे प्रदूषण पैदा होता है। अगर इस तरह से पटाख़े जलाए जाते हैं, तो इससे नागरिकों के स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार पर भी असर पड़ेगा।"

कई समाचार पत्रों में तो ये भी टिप्पणी आयी, कि "दिल्ली में पटाख़ों पर प्रतिबंध लगाने वाले कई आदेश दीपावली के दौरान धुएँ में समा गए हैं।" दिवाली से पहले भी दिल्ली सरकार द्वारा दिए गए एक हलफ़नामे के अनुसार केवल दिवाली के दौरान पटाख़ों पर प्रतिबंध लगाए जाने और शादी व चुनाव समारोहों के दौरान प्रतिबंध नहीं लगाए जाने पर भी सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार से जवाब तलब किया है। स्वाभाविक है, कि दिवाली के साथ-साथ बारातों, जन्मदिन समारोहों, चुनाव या क्रिकेट मैच की जीत वाले समारोहों में भी आतिशबाज़ी को प्रतिबन्धित करनी चाहिए और उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण ये है, कि सरकार जो भी प्रतिबंध आदेश लगाती है, उसे कड़ाई से लागू भी होनी चाहिए।

अगर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका देश की राजधानी - दिल्ली के लिए आतिशबाज़ी के कारण भावी अराजक स्थिति की बात कर रहे हैं ; तो ये बात कमोबेश समस्त देश ही नहीं , वरन् .. समस्त विश्व या .. यूँ कहें , कि .. सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के लिए भी उतनी ही घातक होने वाली कड़वी सच्चाई है .. शायद ...

आज (12.11.2024) .. अभी (रात के 9.12 बजे) .. इस बतकही के कुछ अंश को लिखते वक्त भी उत्तराखंड का एक विशेष त्योहार - इगास बग्वाल के अपभ्रंश स्वरुप के तहत आस-पड़ोस से जलते हुए तेज़ पटाख़ों की आवाज़ें आ रहीं हैं। इस त्योहार के बारे में हमने गत वर्ष "उज्यालू आलो, अँधेरो भगलू" ... के अन्तर्गत आदतन विस्तारपूर्वक बतकही की थी .. बस यूँ ही ...

अब इस बतकही के शेष-अवशेष को हम "दो टके का दो टूक ... (२)" में साझा करते हैं और समझते हैं, कि एक अन्य अद्भुत मान्यताओं के तहत इसी धरती पर रहने वाले एक तथाकथित हिंदू समुदाय ही दीपावली को बिना पटाख़ों के कैसे मनाते हैं भला ! ..