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Sunday, August 24, 2025

थूक पुराण .. आक् .. थू ...

बचपन-जवानी में पढ़े गए जीवविज्ञान को सही आधार मान लें तो हमारे भोजन को चबाने और उसे पचाने में भी अहम भूमिका निभाने वाली .. हमारे मुँह में बनने वाली .. प्राकृतिक लार हो या फिर व्यसन के तौर पर पान, तम्बाकू या गुटखा खाने-चबाने के कारण बनने वाली पीक हो ; मतलब .. लार एवं पीक .. दोनों ही .. सर्वविदित है कि हिंदी व्याकरण के अनुसार स्त्रीलिंग हैं .. पर वही लार या पीक जब हमारे मुँह से बाहर निकल आएँ तो, पुरुष प्रधान समाज में घर से बाहर स्वच्छंद घूमने वाले पुरुषों की तरह, हिंदी व्याकरण के अनुसार पुल्लिंग बन कर थूक कहलाते हैं .. है ना ?

हिंदी व्याकरण के अनुसार थूक वाले कई मुहावरे भी सर्वविदित हैं .. मसलन - थूक कर चाटना, थूक उछालना, थूक बिलोना, थूक लगाकर छोड़ना, थूक लगाकर रखना, चाँद पर थूकना, आसमान पर थूकना और कुछ कहावतें भी हैं कि .. आसमान की तरफ़ थूकने पर अपने ही ऊपर गिरेगा या थूक में सत्तू (भुने हुए चने का आटा, जिससे मूल रूप से बिहारी व्यंजन - लिट्टी बनायी जाती है।) सानना इत्यादि।

हमने शायद ही कभी ग़ौर किया हो कि .. हम सभी जीवनपर्यंत जाने-अंजाने स्वयं के साथ-साथ अन्य .. कई अपनों और परायों तक के भी थूकों को अंगीकार करते रहते हैं।

मसलन - (१) अगर हम ऑनलाइन पेमेंट और नोट गिनने वाली मशीनों से किसी के घोटाले वाले नोटों के बंडलों की दिन-रात एक करके की जाने वाली गिनती की बातों को छोड़ दें, तो अगर गर्मी का मौसम रहा तो .. कई लोगों द्वारा अपने अंगूठे से माथे का पसीना पोंछ कर या फिर अन्य मौसम या मौक़ा रहा तो अपनी तर्जनी को जीभ पर स्पर्श करा कर " राम, दु, तीन, चार, पाँच .. " मतलब "एक, दो, तीन, चार, पाँच .. " बोलते हुए .. काग़ज़ी रुपयों को गिनने की प्रक्रिया वाले दृश्यों को हम सभी ने कई बार नहीं भी तो .. कम से कम एक-दो बार तो अवश्य ही देखा होगा। चाहे वो रुपए किसी विक्रेता-क्रेता के आदान-प्रदान के दौरान के हों, किसी मालिक-मज़दूर के बीच पारिश्रमिक के रूप में देन-लेन के हों या फिर .. किसी कन्या के लाचार पिता जी की जीवन भर की जमा-पूँजी को दहेज़ के रूप में वर पक्ष को समर्पित किए गए हों।

अगर हम में से किसी ने वास्तव में उपरोक्त दृश्यों को नहीं भी देखे होंगे तो .. उम्मीद करते हैं कि .. "दिल" फ़िल्म में अनुपम खेर जी को आमिर खान के कंजूस पिता और हजारी प्रसाद नामक कबाड़ी के अभिनय के दौरान या श्वेत-श्याम फ़िल्मों के दौर में बनिया-सेठ बने कन्हैया लाल जी को तो देखा ही होगा .. पसीने या थूक लगा कर रुपयों को गिनते हुए या बही-खाते के पन्नों को पलटते हुए .. शायद ...

अभिनेता सौरभ शुक्ला जी को उनकी अपनी फ़िल्म - "जॉली एलएलबी" में एक न्यायाधीश - जस्टिस सुंदरलाल त्रिपाठी की भूमिका में भी न्यायालय में जमीन पर पालथी मार कर बैठे हुए .. थूक लगा कर पन्ने पलटते हुए शायद आप सभी ने देखा होगा। नहीं क्या ? .. अगर नहीं तो .. अगली बार उपरोक्त इन फिल्मों को देखते वक्त ग़ौर से देखिएगा .. मतलब अवलोकन कीजिएगा .. बस यूँ ही ...

फ़िलहाल तो आप इस निम्न Video में ही 1.35.55 से 1.36.03 के दरम्यान आठ सेकण्ड से भी कम समय में न्यायाधीश साहिब को जमीन पर पालथी मार कर बैठे हुए .. थूक लगा कर दो-दो बार पन्ने पलटते हुए देख सकते हैं।



हमने तो कई मंदिरों और आश्रमों में भी दानस्वरूप रुपए लेकर रसीद देने वालों को थूक लगाकर पावती रसीद के पन्ने पलटते हुए और रुपयों को भी गिनते हुए देखे हैं और हमने अक्सर .. निर्लज्जतापूर्वक उन्हें फ़ौरन टोका भी है। साथ ही मुफ़्त की नसीहत भी दी है उन्हें .. उनके अपने मैनेजमेंट को बोलकर फिंगरटिप मॉइस्चराइजर रखने-रखवाने की। जैसे .. कई दफ़ा मस्जिद की सीढ़ी पर बैठ कर किसी दाढ़ी वाले को बीड़ी पीने के वक्त या फिर सुबह-सुबह पूजन के पश्चात मंदिर से बाहर सपरिवार निकलते ही टीकाधारी तथाकथित पुरुष भक्तगणों को सिगरेट-बीड़ी पीने के समय या गुटखा की पुड़िया फाड़ने पर बिंदास हँसते हुए उपदेशात्मक रोक-टोक करता हूँ।

थूक लगा कर उन सभी रुपए गिनने वालों के उसी थूक सने होने के कारण विषाणुओं से भरे रुपए हमारे जेबों, ब्लाउजों या हमारी तिजोरी तक भी आते-जाते रहते हैं। दूसरी तरफ़ रसीद जैसे काग़ज़ों या रुपयों पर किंचितमात्र उपस्थित अशुद्धियों में लिपटे विषाणु या रोगाणु उन सभी थूक लगा कर काम करने वालों के मुँह में भी अवांछित प्रवेश पाते रहते हैं। मतलब .. अन्योनाश्रय हानि .. शायद ...

(२) विलायतियों की ग़ुलामी में रहने के पश्चात हमने अपना और अपने चहेतों के जन्मदिन पर या अन्य सालगिरह के अवसरों पर या फिर .. कोई विशेष उपलब्धि मिलने पर भी .. हम केक काटकर जश्न मनाने का आडम्बर करते हैं। उसी केक पर सजी हुई जलती मोमबत्तियों को बुझाने का पाखंड भी हम जैसे लोगों  ने, जो किसी सुअवसर पर दीप जलाने वाले लोग हैं, उन्हीं विलायतियों की ग़ुलामी में सीखा है और अपनी अगली पीढ़ी को वो सारे आडम्बर व पाखंड हस्तांतरण करने में गौरवान्वित भी महसूस करते हैं .. शायद ...

पर लब्बोलुआब ये है कि उस केक पर सजी हुई जलती मोमबत्तियों को बुझाने के क्रम में मुँह से फूँक मारने पर हवा के साथ-साथ फूँकने वाले के मुँह के लु'आब के आंशिक छींटों की कशीदाकारी भी केक की क्रीमी लेयर पर हो ही जाती है .. बस यूँ ही ...


(३) किसी अन्य के थूकों को अंगीकार करने के तीसरे स्वरूप को याद करने से पहले दो फ़िल्मी कलाकारों देवेन वर्मा जी और दिनेश हिंगू जी के चुटिले संवाद को निम्न Video में देख-सुन लेते हैं।



"दिनेश हिंगू - तुझे ऐसी किसी चीज़ का नाम मालूम है जिसको एक जगह से हटा के दूसरी जगह रख दो तो उसका नाम बदल जाता है।

देवेन वर्मा - नहीं

दिनेश हिंगू - देख मैं बताता हूँ। बाल, सिर पर बाल कहते हैं, यहाँ भौं कहते हैं, यहाँ पलकें कहते हैं, यहाँ मूँछें कहते हैं, यहाँ हो तो दाढ़ी कहते हैं

देवेन वर्मा - आगे मत जाओ, आगे मत जाओ .."


किसी अन्य के थूकों को अंगीकार करने के तीसरे स्वरूप को अब समझते हैं। जब दो रूमानी शरीर सामाजिक तौर पर क़ानूनी या ग़ैरक़ानूनी तरीके से मिलते हैं तो .. मिलने के क्रम में उनकी आपस में निगाहें, साँसें, दिल के धड़कनों की तरंगें, शरीर के अंग-अंग .. होंठों से होंठ, जिव्हा से जिव्हा, थूक से थूक, उंगलियों- हथेलियों की गुत्थमगुत्थी .. इत्यादि-इत्यादि .. हाँ जी .. इत्यादि-इत्यादि ही बोलकर रुकते हैं .. वर्ना .. ना जाने दोनों रूमानी शरीर के और क्या-क्या आपस में मिलते हैं। मगर देवेन वर्मा जी के तर्ज़ पर .. "आगे मत जाओ, आगे मत जाओ" वाली बात .. हमको रोक दे रही है।


(४) तंदूरी रोटी या अन्य खाद्य पदार्थों में थूक कर खिलाने पर बहत्तर हूरों की कामना करने वाले तथाकथित थूक जिहादियों का एक ख़ास जमावड़ा भी जिम्मेवार है ही इसके लिए .. शायद ...


(५) जादू-टोना या फूँक-फांक के दौरान भी थूक के छींटों से रूबरू होना भी एक आम घटना है। 


पर जो भी हो .. अंततोगत्वा लब्बोलुआब ये है कि ये अपनों के साथ-साथ अन्य के थूकों का जाने-अन्जाने हमारे द्वारा अंगीकार किया जाना हमारे लिए तो धरमनिर्पेक्षता का एक अव्वल उदाहरण है .. शायद ...

परन्तु जज साहिब को तो तथाकथित आवारा कुत्तों के काटने से फैलने वाले खतरों के साथ-साथ ..  कभी फ़ुर्सत मिले तो .. मानवी थूकों से विषाणुओं को फैलाने वाले उन महानुभावों पर भी उनको अपनी पैनी निगाहें डालनी ही चाहिए .. बस यूँ ही ...