Thursday, June 8, 2023

चस्का चुस्की का

ऐ साहिब !!! ...

                       ए साहिब !! ..

                                            साहिब ! ...

मनाते हैं हम सभी जब कभी भी 

हिंदी दिवस और हिंदी पखवाड़ा भी ख़ाली-पीली,

चप्पे-चप्पे में देते हैं भाषण चीख़-चीख़ कर हर कहीं

और संग चुस्की के चाय की करते हैं काव्य गोष्ठी भी।

हर चुस्की पर हमारी, है खिलती चाय की मुस्की तभी 

और लगाकर चस्का चुस्की का, ग़ुलाम बनाने वाली,

पड़ी-पड़ी कप, कुल्हड़ या प्याली में आधी या भरी,

चपला-सी चाय है हम सभी को देखती, निहारती, घूरती।

गोया हम सभी वो भीड़ हैं तथाकथित इंसानी , 

जो भीड़ दिन के उजाले में तो यूँ है आदतन कतराती

करने में मंटो जी के नाम का ज़िक्र भर भी 

और रात में नाप आती है मुँह छुपाए किसी कोठे की सीढ़ी।

गर है अंग्रेजी से हम सभी को नफ़रत ही जो इतनी

और है ज़िद हमारी, फ़ितरत भी हमारी, चोंचलेबाजी भी

बचाने की सभ्यता-संस्कृति और भाषा भी हिंदी,

तो कर क्यों नहीं देते फिर हम चाय की भी ऐसी की तैसी .. बस यूँ ही ...



ऐ साहिब !!! ...

                       ए साहिब !! ..

                                            साहिब ! ...

यूँ तो सदा ही रहा है मतभेद सदियों से,

दो पीढ़ियों के बीच पीढ़ी-दर-पीढ़ी।

पर ये क्या कि कोसते हैं दिन-रात हम सभी,

खाती है नयी पीढ़ी चाऊमीन जब कभी भी।

शादी वाले घर में रंगीन झालर-सी लटकती

चाऊमीन, खाते वक्त मुँह से हर युवा-बच्चे की,

देती है नसीहत सभी वयस्क पीढ़ी को व्यंग्य से घूरती।

गोया हम हैं ऐसे पिता सभी के सभी, 

धारा-376 के तहत जिसने हो काटी सजा लम्बी कभी

और मचा रहे अब बवाल, जब निज बेटे या बेटी ने किसी

रचा ली हो अन्तर्जातीय प्रेम विवाह वाली शादी।

चाऊमीन ने तो बस थोड़े से ज़ायके भर हैं बदले 

और माना तनिक सी सेहत भी है बिगाड़ी।

पर उन दिनों की मिल रही शुरूआती मुफ़्त वाली, 

पी-पीकर हमने तो चाय की चुस्की ख़ाली-पीली,

स्वदेश को दी थी कई सौ वर्षों वाली सितमगर ग़ुलामी .. बस यूँ ही ...







4 comments:

  1. चाउमीन की तो नहीं लेकिन ये मुई चाय की चुस्की की लत तो ऐसी लग गयी है कि अगर सुबह, तीसरे पहर और रात में इसे न लो तो लगता है कि सांस ही थम गयी है.

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका .. मेरी बतकही को स्पर्श करने के लिए .. इसी निगोड़ी चुस्की ने तो हमें प्रताड़ना भरी परतंत्रता की भट्ठी में वर्षों सुलगाया है, जलाया है .. पापा बतलाते थे हम सभी को कि उनके (मतलब हमारे भी) पुरखों के कथनानुसार विदेशी चाय वाली कम्पनी जब व्यापारी के शक़्ल में भारत आयी थी, तो हम चाय शब्द से अनभिज्ञ भारतवासियों को चौक-चौराहों पर चीख़-चीख़ कर प्रचार करते हुए, ठेले पर गर्मागर्म उबलती चाय के पास बुला-बुला कर मुफ़्त में चाय की भरी कुल्हड़ पेश करते थे, उसे बनाने और पीने के तरीके भी सिखाते थे, फिर तो उसकी आदत ऐसी लगी कि ... तब से अब तक .. सब कुछ सामने है .. बस यूँ ही ...
      ( वैसे तो ... स्वयं को तथाकथित सनातनी कहने वालों को तो इस इतिहास की जानकारी होगी ही .. शायद ...)

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  2. Replies
    1. जी ! नमन संग आभार आपका .. बतकही-स्पर्श के लिए .. बस यूँ ही ...

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