Thursday, August 25, 2022

दूब उदासियों की .. बस यूँ ही ...

 (१)

सोचों की ज़मीन पर

धाँगती तुम्हारी

हसीन यादों की

चंद चहलकदमियाँ ..


उगने ही कब देती हैं भला

दूब उदासियों की ..

गढ़ती रहती हैं वो तो अनवरत

सुकूनों की अनगिनत पगडंडियाँ .. बस यूँ ही ...



(२)

देखता हूँ जब कभी भी

झक सफेद बादलों के 

अक़्सर ओढ़े दुपट्टे 

यूँ तमाम पहाड़ों के जत्थे ..


गुमां होता है कि निकली हो 

संग सहेलियों के तुम

मटरगश्ती करने

शहर भर के सादे लिबासों में .. बस यूँ ही ...









17 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 26 अगस्त 2022 को 'आज महिला समानता दिवस है' (चर्चा अंक 4533) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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    1. जी ! सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. अपने मंच पर मेरी बतकही को मौका देने के लिए .. बस यूँ ही ...

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ अगस्त २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. जी ! सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. अपने मंच पर मेरी बतकही को मौका देने के लिए .. बस यूँ ही ...

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका .. वैसे तो सच में "सुन्दर" तो समस्त उत्तराखंड है, जो ऐसी बतकही बकवा रहा है :) :)

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका और "वाहह्ह्ह्ह्" आपके मंच का जो मेरी बतकही को निरंतर मौका देता है .. शायद ... :)

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  5. क्या कहने
    प्रकृति और प्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति

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  6. देखता हूँ जब कभी भी
    झक सफेद बादलों के
    अक़्सर ओढ़े दुपट्टे
    यूँ तमाम पहाड़ों के जत्थे ..

    वाह!! अनुपम रूपक का प्रयोग किया है आपने इस सुंदर रचना में

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  7. बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति । प्रजेआति में प्रेम या प्रकृति से प्रेम ...... लाजवाब

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  8. बहुत ही सुंदर भावों से भरा सकारात्मक ऊर्जा में लिपटा सराहनीय सृजन।

    उगने ही कब देती हैं भला
    दूब उदासियों की ..बेहतरीन सर 👌

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  9. सुंदर भावों से परिपूर्ण रचना, सुबोध भाई।

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