Sunday, January 30, 2022

खुरपी के ब्याह बनाम क़ैद में वर्णमाला ... भाग-२

"खुरपी के ब्याह बनाम क़ैद में वर्णमाला ... भाग-१" वाली बतकही भरे वार्तालाप के लिए अपने-अपने क़ीमती समय को बर्बाद करते हुए अपनी-अपनी मगज़पच्ची कर के "खुरपी के ब्याह बनाम क़ैद में वर्णमाला ... भाग-२" के लिए अगर आज आप पुनः उपस्थित हैं, तो आपकी धैर्यता को इस बतकही के बकबकाने वाले की ओर से साष्टांग दंडवत प्रणाम है .. बस यूँ ही ...
पिछले भाग में किये गए वादे के अनुसार आज खुरपी की शादी करवानी है अब तो .. है ना ? तथाकथित खरमास भी वैसे तो अब ख़त्म हो ही गया है। वादा तो जरूर निभायी जायेगी, परन्तु फ़िलहाल उससे पहले किसी अनुष्ठान में तोड़े या फोड़े गए नारियल की तरह ही एक सौगंध, शपथ या क़सम तोड़नी पड़ जाएगी हमको तो .. शायद ...
दरअसल उस दिन खुरपी ने मुझे अपनी क़सम का हवाला देते हुए हम इंसानों की एक-दो और भी ख़ास बातें या ख़ासियत बतलायी थी। पर साथ ही वह सकुचाते हुए बोली भी थी, कि "आपको मेरी सौगंध है, कि ये बातें आप किसी भी इंसान को मत बोलना। वर्ना सब मेरे खिलाफ मोर्चा खोल देंगे।" - फिर मुस्कुराती हुई कहने लगी - "वैसे तो शपथ या वादा तोड़ना तो आप इंसानों की फ़ितरत में शामिल है। वो या तो अपनों से आपस में ली/की गयी हो या फिर देश के तथाकथित कर्णधारों द्वारा पद ग्रहण करने के समय शपथ ली गयी हो। आप सभी तो इन्हें तोड़ने में पूरी तरह से माहिर हो। तनिक सोचो .. अगर ये सारी शपथें ना टूटे तो .. अपना राष्ट्र या देश भी टुकड़े में कभी ना टूटें। ख़ैर ! .. फिर भी आपको बोल रही हूँ .."
"ना, ना, हम किसी को नहीं बोलेंगे .. यक़ीन रखिए।" - हमने आश्वासन देने की कोशिश की।
"चलिए मान लेते हैं, पर हमको पता है कि आप मानोगे नहीं। ख़ैर ! अपनी फ़ितरत हमें पता है और आपकी आप जानो।" - एक व्यंग्यात्मक मुस्कान की चमक के साथ आगे बोल पड़ी थी - "दरअसल वैसे भी यह तो गणतंत्र दिवस वाला महीना है।"
"अरे ! गणतंत्र तो सालों भर के लिए होता है। फिर ये इसका वाला महीना मतलब ?" - हमने अपनी उत्सुकता के साथ ही, थोड़ी नाराजगी भी दिखलाते हुए बोला था।
"पर ऐसे होता नहीं है ना भाई। सालों भर तो देश के संविधान से परे कई उलजलूल हरक़तें होती रहती हैं आप इंसानों की। और तो और, जिन्होंने कभी संविधान के एक अनुच्छेद को भी नहीं पढ़ी हो, वो लोग भी इस जनवरी महीने की 26 तारीख़ से कई दिन पहले और कई दिन बाद तक कई-कई भाषाओं में एक-दूसरे को शुभकामनाओं की 'कॉपी & पेस्ट' कर-कर के भेजते रहते हैं। वैसे तो कहते हैं कि शायद आप इंसानों का ये संविधान भी 'कॉपी & पेस्ट' कर के ही बना हुआ है।"
"हाँ .. ऐसा ही है .. शायद ... " - हम कुछ झेंप महसूस करने लगे थे।
"आप लोग बस कहीं पर भी झंडे फ़हरा कर, चाहे दोपहिए या चार पहिए गाड़ियों पर, ठेले पर या फिर जुड़े में, कलाई में, परिधानों में तिरंगा रंग की ऐसी की तैसी कर देते हो। झंडा फहराना और जलेबियाँ खाना भर ही आप इंसानों का गणतंत्र दिवस रह गया है शायद .. है ना !?"
"हो सकता है महारानी, आप जो कह रही हैं, उनमें सत्यता भी हो। पर हम कुछ कह या कर नहीं सकते। हमको तो इन्हीं इंसानों के साथ जीना है। वर्ना ये लोग मुझे अपनी जाति-धर्म से बेदख़ल कर देंगें और आपको पता ही है कि हमारे इंसानी समाज में बिना जाति-धर्म वाले इंसान को बहुत ही हेय दृष्टि से देखा जाता है। उसको इंसान माना ही नहीं जाता। उसे नास्तिक की संज्ञा देकर नाश दिया जाता है .. शायद ..." - हमने अपनी मजबूरी बतलाने की कोशिश की।
"जाने भी दीजिए इन बातों को। इंसानी बातें आप इंसान ही समझ सकते हैं। पर .. इन बातों में आप मेरी शादी की बात को अभी गोल मत कर जाइए भाई।" - बड़ी ही चतुराई से वह इठलाती हुई मुस्कुरा कर बोल गई थी।
"अरे ना, ना, वो तो करवानी ही है महारानी जी, आपकी शादी ..." - हमने झट से इंसानी आश्वासन दिया था।
"पर मेरी शादी कुछ शर्तों पर होगी, कि मैं अपनी शादी में आपको कोई भी दहेज़ नहीं देने दूंगी। भले मैं अब तक की तरह कुँवारी ही रहूँ या कुँवारी ही मर जाऊँ। वैसे भी यह गणतंत्र दिवस वाला महीना है भाई। तो देश के संविधान के साथ-साथ क़ानून का तो विशेष ख़्याल रखना ही होगा हम सब को। आप इंसान लोगों को जितना तोड़ना हो क़ानून, तोड़ते रहो भाई।" - फिर फ़ुसफ़ुसा कर बोली - "इंसानों की तरह फिजूलखर्ची भी मत करना आप मेरी शादी में। बस एक सुस्वादु .. वो क्या कहते हैं .. हाँ .. प्रीतिभोज करवा देना। और हाँ .. किसी भी आने वाले निमंत्रित मेहमान के लाए गए उपहार के ऊपर अपनी गिद्धदृष्टि कदापि मत रखना आप इंसानों की तरह। बल्कि कोई भी मेहमान उपहार लेकर नहीं आएंगे मेरे विवाह में। हमको तो उपहारस्वरूप बस .. उनके आशीष-वचन चाहिए भाई।"
"पर ये सब कैसे सम्भव है महारानी ? तब तो आप कुँवारी ही मर जाएंगी। हमारे इंसानी समाज के रीति रिवाज इन सब से भिन्न हैं जी।" - हम मायूस हो चले थे उनकी शर्तों से।
"तुम इंसानों की यही तो कमजोरी है। कुछ भी लीक से हट कर करने की सोचते ही नहीं हो। कभी भूले से सोच भी लिया तो, करते नहीं हो। पैरों को भी समय-समय पर 'पेडीक्योर' की जरुरत पड़ती है भाई, वर्ना पाँव और तलवे में जमे मैलों को भी शरीर के अंगों की तरह लिए जीना होता है भाई, है कि नहीं !? यही 'पेडीक्योर' अपने रीति रिवाजों के साथ भी आप इंसानों को भी करना चाहिए समय-समय पर।" - ज्ञान बघारने के बाद बोली - "पर जो भी हो .. मेरी शादी होगी तो, इन्हीं शर्तों पर और हाँ .. मुझे किसी सामान की तरह दान-वान मत करना आप, मुझे नहीं करवानी कोई कन्यादान-फन्यादान। मैं तो बस अपने पति की जीवनसंगिनी बनूँगी और जीवन संग-संग बिताउंगी। समझे ना भाई !?" - उसके चेहरे पर शर्म का गुलाबी रंग झलकने लगा था, मानो जब यह कभी किसी लुहार की भट्टी से निकलने के कुछ देर बाद लाल से गुलाबी बनी होगी जैसे .. शायद ...
हम मन ही मन सोच रहे थे, कि अच्छा हुआ कि हमने किसी को भी 'हैप्पी रिपब्लिक डे' नहीं 'विश' किया था या कभी करते भी नहीं  26 जनवरी को; क्योंकि हमें भी कोई हक़ ही नहीं ऐसा कहने का, जब तक कि हम किसी हनुमान चालीसा या आयत की तरह अपने देश का पूरा संविधान रट ना लें या फिर किसी व्रत कथा या क़ुरआन की तरह पढ़ ना लें। पर अब भी एक सिरदर्द तो मोल ले ही लिया, बिना दहेज़ वाला दूल्हा खोजने का इस खुरपी महारानी के लिए। आप लोगों को भी इस देश के संविधान और क़ानून की क़सम .. आप को कोई दहेज़ रहित वर का पता अगर पता चले तो, हम 'स्टुपिड' की मदद कर दीजिएगा।
ख़ैर ! चलिए .. अब मुख्य मुद्दे पर आते हैं, कि आप में से शायद ही कोई भी 'ब्लॉगर' , क्षमा कीजिए , विशुद्ध हिंदी का प्रयोग करें तो .. चिट्ठाकार होंगे या होंगी, जिन्होंने अपने-अपने 'ब्लॉग' के 'वेब' पन्ने पर इन आंकड़े और 'ग्राफ' वाले निम्न चित्रों को नहीं देखा होगा या देखीं होंगी .. शायद ...




परन्तु आज खुरपी की ही चर्चा में ज्यादा समय व्यतीत हो चुका है। आपके धैर्य को पुनः नमन। आज "खुरपी के ब्याह बनाम क़ैद में वर्णमाला ... भाग-२" में बस इतना ही। अब अगले "खुरपी के ब्याह बनाम क़ैद में वर्णमाला ... भाग-३" में इन उपर्युक्त ग्राफ़युक्त चित्रों के बहाने "क़ैद में वर्णमाला" की बतकही करते हैं .. संभव हो तो आप आइएगा .. बस यूँ ही ...


2 comments:

  1. नमस्कार सर, बहुत अच्छा व्यंग है, लेकिन दहेजरहित शादी के लिए तो सिर्फ लड़केवाले ही दोषी नही है, लड़की वाले भी बराबर के दोषी है। धारा के विपरीत चलने वाला ही इतिहास बनाता है।

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (31-01-2022 ) को 'लूट रहे भोली जनता को, बनकर जन-गण के रखवाले' (चर्चा अंक 4327) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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