Saturday, August 14, 2021

क्षुप कईं मेंथा के ...

जब कभी भी तुम ..
रचना कोई अपनी रूमानी 
और तनिक रूहानी भी,
अतुकान्त ही सही, पर ...
बटोर के चंद शब्दों को 
किसी शब्दकोश से, 
जिन्हें .. टाँक आती हो,
मिली फुरसत में हौले से,
नीले आसमान पे, किसी वेब पन्ने के;
तूतिया मिली अपनी अनुभूति की,
भावनाओं की गाढ़ी लेई को 
लपेसी हुईं मन की उंगलियों से
और फिर .. औंधी पड़ी बिस्तर पर या 
सोफ़े पर, मन ही मन मुस्कुराती हो,
या .. कभी 'बालकॉनी' में खड़ी,
गुनगुनाती हो, तो ..
तो उग ही आते हैं हर बार,
महसूस कर-कर के स्वयं को उनमें,
सितारे .. ढेर सारे .. टिमटिमाते, 
आँखें मटकाते, मानो .. आश्विन महीने के,
धुले और खुले आकाश में,
एक रात की तरह, अमावस वाली .. बस यूँ ही ... 

हरेक पंक्ति होती है जिसकी, मानो .. 
हो शाम से तर क्यारी कोई,
चाँदनी में जेठ की पूनम की,
मंद-मंद सुगंध बिखेरती,
रात भर खिली रजनीगंधा की।
या फिर सुबह-शाम वैशाख में 
हों सुगंध बिखेरते क्षुप कईं मेंथा° के,
सभी खेतों में बाराबंकी या बदायूँ के।
नज़र आते हैं, झूमते .. हरेक शब्द भी,
जैसे .. पसाने के बाद माँड़,
मानो .. करने के लिए फरहर°°भात,
झँझोड़ने पर भात भरे तसले को, 
अक़्सर .. झूमते हैं झुमके 
या कभी झूमतीं हैं,
जुड़वे कानों में तुम्हारे,
लटकीं तुम्हारी जुड़वीं बालियाँ। 
नज़र आते हैं हर अनुच्छेद, 
थिरकते हुए अनवरत, 
मानो थिरकते हैं अक़्सर ..
'शैम्पू' किए, तुम्हारे खुले बाल,
जब कभी भी तुम, किसी सुबह या शाम,
खुली छत पर अपनी, कूदती हो रस्सी .. बस यूँ ही ...


मेंथा° = हमारे देश- भारत के उत्तर प्रदेश राज्य वाले बाराबंकी और 
               बदायूँ ज़िले में पुदीना की ही एक संकर प्रजाति के "मेंथा"     
               नामक क्षुप की खेती होती है, जिससे देश के कुल 
               उत्पादन का आधे से अधिक "मेंथा का तेल" उत्पादित 
               किया जाता है। 
               इस तेल का लगभग तीन-चौथाई भाग निर्यात किया जाता 
               है। इसी के रवाकरण (Crystallization) से पिपरमिंट 
               (Peppermint) बनाया जाता है। इसके खेत दूर से ही 
               एक सुकून देने वाले महक से महकते हैं। वैसे .. पिपरमिंट 
               मिले कुछ खाद्य पदार्थों के स्वाद तो आप सभी ने ही ..
               चखे ही होंगे .. शायद ...
फरहर°° =  फरहर = फरहरा = चावल से पका ऐसा भात जो एक-
                 दूसरे से लिपटा या सटा हुआ न हो ,  ( फार = अलग - 
                 अलग )। 】




10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 15 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका .. "स्वतंत्रता दिवस" के सुअवसर (?) पर अपने मंच तक मेरी इस बतकही को ले जाकर, "हँसुआ के बिआह में खुरपी के गीत" को चरितार्थ करते हुए, मेरा साथ देने के लिए .. बस यूँ ही ...
      (वैसे दिन तो, यशोदा जी का है .. कोई उपवास-व्रत में शामिल हैं क्या आज ?...)

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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  3. वाह! सुंदर सृजन ।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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  4. यूँ तो रचना ज़बरदस्त है ...... और आपकी कल्पनाशक्ति की दाद देनी पड़ेगी । वेब पन्ने को नीला आसमान तो किसी ने न सोचा होगा ।भावनाओं की लयी तो ठीक है लेकिन अनुभूति को तूतिया से तुलना करना .... अनुभूति को पानी ही कह दिया होता जो लेई पकाने में काम आया हो ।ये जहर की बातें अनुभूति के साथ जमती नहीं ।

    भावनाएं माशाअल्लाह बेहतरीन हैं । कमाल की अभिव्यक्ति 👌👌👌👌👌

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    1. आपके "दाद" भर कहने से चर्चित "खुजली" की बरबस याद आ गयी .. ख़ैर ! .. अब आगे बढ़ते हैं या बतकही को आगे बढ़ाते हैं .. यूँ तो आपकी रोचक प्रतिक्रियाएँ सिर-माथे पर, पर .. "अनुभूति" के लिए "तूतिया" के बिम्ब की वजह या मेरी सोच यह है, कि भावनाएँ तो अपनी होती है, तो निश्चित रूप से वह नम व कोमल भी/ही होगी, लेई की तरह, पर अनुभूतियाँ हर बार हमें दूसरों से ही उधार मिलती है, वह मीठी भी हो सकती है और कड़वी भी, कभी-कभी ज़हरीली भी। सबसे बुरी स्थिति "जहरीली" वाली ही होती है। यह नायिका भी अपनी भावनाओं की लेई में अपनी अनुभूति (किसी ज़हरीली की भी) की तूतिया मिला रही है, नीले आकाश के वेब पन्नों पर अपने शब्दों को टाँक रही है, तो नायक को वह भी प्यारा तारा दिख रहा है। नायक को उसका हर तत्व स्वीकार्य है। यह उसकी नज़रिया है .. शायद ...😯
      वैसे लेई में पानी नहीं मिला सकते ना, पतला हो जाएगा, तो चिपकने का लस नहीं रह जाएगा, भावना दुर्बल हो जायेगी। लेई- बनी ही तो है, आटे और पानी से, अब कितना पानी मिलान भला, आयँ ..🤔
      वैसे भी ठोंगे बनाने वाले या ज़िल्दसाजों को लेई में तूतिया मिलाते अक़्सर देखा है, जहाँ से बिम्ब मिला भी, जिससे किताब, ठोंगे या अन्य कागजी दस्तावेज़ों को तथाकथित गणेश जी की सवारी भकोस ना जाए .. शायद ...
      वैसे .. माशाअल्लाह !! आपकी प्रतिक्रियाएँ भी क़माल की रहती हैं .. बस यूँ ही ...😊

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    2. पानी मिलाने को नहीं कहा अनुभूति को पानी कहने को लिखा । मतलब कि अनुभूति के पानी से लेई पकाने को ।

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    3. ☺ पक्का ! .. इस बार वैसी ही लेई पकायी जायेगी .. बस यूँ ही ...

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