१) ख़ैर ! ...
क़ुदरत सब के साथ है, अपना हो या गैर।
वक्त कितना भी हो बुरा, हो जाएगा ख़ैर .. शायद ...
२) आसमां में कहीं पर ...
सुना है, रहता है तू अपने ही आसमां में कहीं पर,
फ़ुरसत में कभी तो एक बार, आजा ना जमीं पर।
खुली हैं यूँ तो यहाँ तेरे नाम पर, दुकानें कई मगर,
कहीं भी उन में तो तू आता नहीं, कभी हमें नज़र।
है भी क्या वहाँ तुझे, इस लुटती दुनिया की ख़बर ?
सुरा और अप्सरा से परे, चल बता ना ओ बेख़बर !
सुना है, रहता है तू अपने ही आसमां में कहीं पर,
फ़ुरसत में कभी तो एक बार, आजा ना जमीं पर।
चीत्कारों की चिंता नहीं तुझे, होता ना कोई असर।
जाति-धर्म, रंग-आरक्षण के होते वहाँ पे भेद अगर,
होती न का तब भी तुझे ठिकाने मिटने की फ़िकर ?
गोह, गैंडे की चमड़ी से भी है ज्यादा, तू तो थेथर।
सुना है, रहता है तू अपने ही आसमां में कहीं पर,
फ़ुरसत में कभी तो एक बार, आजा ना जमीं पर।
होते हैं प्रभु तेरे नाम के आगे भी क्या धनखड़,
सिंह, शेख, गाँधी, मोदी, मिश्रा, नायर, नीलगर,
श्रीवास्तव, खान, पठान, कुरैशी, तिवारी, शर्मा,
सिन्हा, सोलंकी, पिल्लई, चोपड़ा, दुबे, धनगर ?
सुना है, रहता है तू अपने ही आसमां में कहीं पर,
फ़ुरसत में कभी तो एक बार, आजा ना जमीं पर।
बँटी है क्या तेरी दुनिया भी प्रभु, टुकड़ों में ऊपर,
अमेरिका, क्यूबा, नार्वे, नाइज़ीरिया, या नाइजर,
ऑस्ट्रेलिया, आस्ट्रिया, इटली, फ्रांस, मेडागास्कर,
भारत, पाकिस्तान, चीन, जापान, ईरान बनकर ?
सुना है, रहता है तू अपने ही आसमां में कहीं पर,
फ़ुरसत में कभी तो एक बार, आजा ना जमीं पर।
सुना कि बनायी तूने ही धरती, हर नगर, हर डगर,
हो के पालनहार, तो क्यों अनदेखी कर देता जबर ?
लहू, बिंदी-सिंदूर, काजल-लोर जिनसे हैं रहे पसर।
खड़ा है क्यों सदियों से, सौ तालों में बना तू पत्थर।
सुना है, रहता है तू अपने ही आसमां में कहीं पर,
फ़ुरसत में कभी तो एक बार, आजा ना जमीं पर .. बस यूँ ही ...
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा बुधवार (11-08-2021 ) को 'जलवायु परिवर्तन की चिंताजनक ख़बर' (चर्चा अंक 4143) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
जी ! नमन संग आभार आपका .. अपने मंच की अपनी आज की बहुरंगी प्रस्तुति में मेरी बतकही को जगह देकर मंच के नियमित पाठकगण तक पहुँचाने के लिए ..
Deleteगोह,गैंडे की चमड़ी से भी है ज्यादा, तू तो थेथर। शतप्रतिशत सत्य बात कही है आपने सर!
ReplyDeleteहर एक पंक्ति बहुत ही खूबसूरत और तर्कपूर्ण है! उम्दा रचना!
जी ! शुभाशीष संग आभार तुम्हारा .. मेरी बतकही ले साथ "उम्दा" विशेषण चिपकाने के लिए ...
Deleteआसमां पे है खुदा ...............,
ReplyDeleteआजकल वो इस तरफ देखता है कम
जी ! नमन संग आभार आपका ... क़ुदरत के सिवाय कोई ख़ुदा तो है ही नहीं, देखेगा कौन भला ! ☺☺
Deleteयूँ तो पता नहीं ये धरती चाँद तारे और सारी प्रकृति ईश्वर ने बनाई है या नहीं लेकिन हम इंसानों ने बहुत से भगवान बना लिए हैं । और अपनी अकुलाहट में उसी को दोष देते रहते हैं । वो बेचारा इस धरती पर आ कर क्या करेगा , अप्सराओं के साथ ही रहने दीजिए आराम से ।
ReplyDelete😀😀😀 .. नहीं तो धरती पर आने से बलात्कार की घटनाओं में वृद्धि हो जाने का भी डर बना रहेगा .. किसी औरत के पत्थर बन जाने का डर भी रहेगा .. वैसे भी अप्सरा के साथ-साथ सुरा भी होता है वहाँ, ऐसा लोग कहते हैं .. शायद ...
Deleteऔर हाँ .. दोष ही नहीं देते, अपने बलबूते बच्चा अगर 1st Division से पास कर जाए, तो लड्डू भी तो चढ़ाते हैं .. बस यूँ ही ...