Wednesday, March 24, 2021

दास्तानें आपके दस्ताने की ...

पापा ! ...

वर्षों पहले तर्ज़ पर सुपुर्द-ए-ख़ाक के 

आपके सुपुर्द-ए-राख होने पर भी,

आज भी वर्षों बाद जब कभी भी

फिनाईल की गोलियों के या फिर कभी 

सराबोर सुगंध में 'ओडोनिल' के,

निकाले गए दीवान या ट्रंक से साल दर साल

कुछ दिनों के लिए ही सही पर हर साल 

कनकनी वाली शीतलहरी के दिनों में,

दिन में आपके ऊनी पुराने दस्ताने और

सोते वक्त रात में पुरानी ऊनी जुराबें

पहनता हूँ जब कभी भी तो मुझे

इनकी गरमाहट यादों-सी आपकी आज भी

मानो सौगात लगती हैं ठिठुरती सर्दियों में।


पर पापा अक़्सर ..

होती है ऊहापोह-सी भी हर बार कि 

मेरे रगों तक पहुँचने वाली 

ये मखमली गरमाहट उन ऊनी पुरानी 

जुराबों या दस्ताने के हैं या फिर 

है उष्णता संचित उनमें आपके बदन की।

मानो कभी छुटपन में दस्ताने में दुबकी

आपकी जिस उष्ण तर्जनी को लपेट कर 

अपनी नन्हीं उँगलियों से लांघे थे हमने

अपने नन्हें-नन्हें नर्म पगों वाले छोटे-छोटे

डगमगाते डगों से क्षेत्रफल अपने घर के

कमरे , आँगन और बरामदे के, जहाँ कहती हैं ..

स्नेह-उष्णता की आपकी कई सारी दास्तानें, 

आज भी आपकी पुरानी जुराबें और दस्ताने .. बस यूँ ही ...




12 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 24 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25-03-2021 को चर्चा – 4,016 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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  3. Replies
    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...
      आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं ...

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  4. नरम स्मृतियों की आँच में धीमे-धीमे
    पकते भाव की गरमाहट अतंस में
    मिठास भर गयी।
    भावनाओं के ऊन में लिपटी बेहद
    कोमल रचना।

    ---
    सादर

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...
      आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं ...

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  5. दस्तानों और जुराबों की गर्मी अपनी जगह लेकिन जो पिता की छुअन की ऊष्मता है वो ही एहसास बन दौड़ती है नसों में ।
    बहुत ही प्यारे भावों को शब्द दिए हैं ।
    सुंदर कृति ।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...
      आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं ...

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  6. वाह सुबोध जी, आपने तो पूरा का पूरा बचपन उड़ेल द‍िया , पापा की याद आ गई...एक एक करके...अत्यंत भावप्रवण कव‍िता क‍ि - ये मखमली गरमाहट उन ऊनी पुरानी

    जुराबों या दस्ताने के हैं या फिर

    है उष्णता संचित उनमें आपके बदन की।

    मानो कभी छुटपन में दस्ताने में दुबकी

    आपकी जिस उष्ण तर्जनी को लपेट कर

    अपनी नन्हीं उँगलियों से लांघे थे हमने...वाह

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...
      आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं ...
      (शब्दकोश से उधार लिए शब्दों ने आपको अपने पापा की याद दिलाने में समर्थ रही, यही मेरी रचना/बतकही की सार्थकता है .. शायद ...

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