Sunday, February 16, 2020

ऋचाओं-सी ...

कंदराओं में
शिलाओं पर
इतिहास
गढ़ा है
सदियों यहाँ
हमारे पुरखों ने

रची अनेकों
जुबानी ही
उपनिषद-ग्रंथों की
अमर ऋचाएँ
युगों तक
ऋषि-मुनियों ने

फिर बोलो
ना जरा ..
दरकार भला
पड़ेगी क्यों
कलम की सनम
प्रेम-कहानी लिखने में

ऋचाओं-सी
मुझे याद ज़ुबानी
तुम कर लेना
तराशुंगा मैं तुमको
अपने सोंचों की
कंदराओं में

फिर तलाशेंगे प्रेम ग्रंथ
मिलकर हमदोनों
उम्र-तूलिका से
क़ुदरत की उकेरी
एक-दूसरे के
बदन की लकीरों में




8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 17 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आपका आभार यशोदा जी ...

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(18-02-2020 ) को " "बरगद की आपातकालीन सभा"(चर्चा अंक - 3615) पर भी होगी

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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    1. रचना साझा करने के लिए आभार आपका ...

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  3. फिर तलाशेंगे प्रेम ग्रंथ
    मिलकर हमदोनों
    उम्र-तूलिका से
    क़ुदरत की उकेरी
    एक-दूसरे के
    बदन की लकीरों में
    बहुत खूब सुबोध जी | नए बिम्ब विधान में सजा प्रेम अद्भुत है | !

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    1. आभार आपका रेणु जी ...

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