Thursday, September 19, 2019

मन के मेरे 'स्पेक्ट्रम' के

जानती हूँ मैं तुमको
स्वयं से भी ज्यादा
अब भले ही
तुम मानो या ना मानो
पर मैं तो मानती हूँ
तुम जानो या ना जानो
पर मैं तो ये जानती हूँ कि ...

मन के मेरे 'स्पेक्ट्रम' के
सतरंगी इंद्रधनुषी
'बैनीआहपीनाला' तो
देख लेते हैं बारहा
मेरा ख़्याल रखने वाले
अपने-सगे सारे के सारे
कुछ मेरे पहचान वाले
पर तुम ही तो केवल हो
जो महसूस कर पाते हो
मेरे मन की सारी
कोमल भावनाओं की
और नरम संवेदनाओं की
'अवरक्त किरणों' की आभा

अनुमान कर ही लेते हो
मेरे गहरे अवसादों की
और असीम वेदनाओं की
'पराबैंगनी किरणों' की ऊष्मा
और ... बावजूद
भौगोलिक दूरी के भी
अक़्सर सिक्त समानुभूति से 
तुम्हारी बातों की 'ओज़ोन परतें'
छा कर मेरे वजूद पर
सोख लेती ही हैं सारे के सारे
मेरे अवसादों
मेरी वेदनाओं की
झुलसाती 'पराबैंगनी किरणों' की ऊष्मा ...



16 comments:

  1. बेहद खूबसूरत भावपूर्ण सृजन...अनोखे बिंब गढ़ना और शब्दों को बेबाकी से प्रवाह प्रदान करना आपकी विशिष्टता है।

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    1. सराहना के लिए शुक्रिया ...

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  2. वाह बेहद खूबसूरत ,
    आपने बयान कियाहै

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    1. रचना तक आने के लिए आभार आपका ...

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 20 सितंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हार्दिक आभार आपका ....

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  4. सुन्दर भाव.
    बैनिआहपीनाला का प्रयोग बेहतरीन.

    पधारें- अंदाजे-बयाँ कोई और

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  5. बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति

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  6. वाह बेहतरीन रचना।बहुत सुंदर सरस रचना।

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    1. सराहना के लिए आभार आपका ...

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  7. वाह ! अप्रतिम। अभिव्यक्ति की दुनिया में आपके द्वारा प्रयुक्त अछूते बिंबों का क्या कहना !!!

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    1. मेरी अभिव्यक्ति में प्रयुक्त बिम्बों से अह्लादित होने के लीग आभार आपका मीना जी ...

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  8. अछूते बिम्ब विधान से सजी रचना !!!!!

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  9. शुक्रिया और हार्दिक आभार आपका ...

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