Monday, August 19, 2019

चन्द पंक्तियाँ - (१०) - बस यूँ ही ...

(1)@

साहिब !
आप सूरज की
सभी किरणें
मुट्ठी में अपनी
समेट लेने की
ललक ओढ़े
जीते हैं ...

और ...हम हैं कि
चुटकी भर
नमक की तरह
ओसारे के
बदन भर
धूप में ही
गर्माहट चख लेते हैं ...

(2)@

यूँ तो रहते हैं लटके
सारे-सारे दिन बस्ती के
बुढ़े बरगद की शाखों पर
खामोश उलटे चमगादड़

पर बढ़ा देते हैं ना
रात होते हीं
तादाद में आसपास
अपनी चहलकदमियाँ .....

अब देखो ना !!
यादें भी ना तुम्हारी...
आजकल
चमगादड़ बन गईं हैं.....

(3)@

कई-कई कस्बों और
शहरों के किनारों को छूकर
अक़्सर मदमाने वाली
अल्हड़, मदमस्त नदी

कब जान पाती है भला
ताउम्र हो जाने वाली
बस किसी एक शहर की
किसी झील की फ़ितरत ...
तनिक बोलो ना !!!...



14 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति

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    1. धन्यवाद अनुराधा जी !

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (21-08-2019) को "जानवर जैसा बनाती है सुरा" (चर्चा अंक- 3434) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. हार्दिक आभार आपका शास्त्री जी !

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  3. बहुत सुंदर अहसास समेटे अनुपम क्षणिकाएं।

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  4. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर....

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  5. रुमानी रचनाओं में खूबसूरत बिंब और कल्पनाशीलता आपकी लेखनी की विशिष्टता है।
    एहसास से परिपूर्ण बहुत सुंदर क्षणिकायें।

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  6. विशिष्टता जैसी कोई बात नहीं, लाखो पड़े हैं स्थापित रचनाकार ... मेरी क्या बिसात .. बस रचनाएँ रच जाती हैं .. बस यूँ ही ... पर कैसे !? ..ये मुझे भी मालूम नहीं
    वैसे रचना की आत्मा को छूने और सराहना के लिए आभार आपका ..

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  7. यादें चमगादड़ सी !बहुत खूब सुबोध जी | पर मुझे सबसे सुंदर तीसरी रचना बहुत अच्छी लगी | सचमुच दरबदर भटकने वाली नदी , एक शहर के साथ बंधने वाली झील के बंधन सुख को क्या समझ पायेगी | सुंदर पंक्तियाँ बस यूँ ही |

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    1. बहुत-बहुत आभार आपका रेणु जी ! सच में तीसरी रचना का मर्म ही कुछ ऐसा है। बंधन तो ऐसे है बुरी चीज .. चाहे कैसी भी हो ... पर कुछ बंधन झील सी सुकून देते हैं ... नदी हमेशा शोर कर के भटकती ही रहती है, पर झील मौन, शांत-चीत रहती है एक से बंध कर ...

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  8. सुंदर रचना.... आपकी लेखनी कि यही ख़ास बात है कि आप कि रचना बाँध लेती है

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    1. पर बंधन तो कोई भी हो बुरी होती है ना (बस यूँ ही .. कह रहा ये बात).. आभार आपका !

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