Monday, August 2, 2021

चंचल चटोरिन ...

ऐ ज़िन्दगी !
मेरी जानाँ ज़िन्दगी !!
जान-ए-जानाँ ज़िन्दगी !!!

चंचल चटोरिन 
किसी एक
बच्ची की तरह
कर जाती है,
यूँ तो तू चट 
चटपट,
मासूम बचपन 
और ..
मादक जवानी,
मानो किसी 
'क्रीम बिस्कुट' की 
करारी, कुरकुरी, 
दोनों परतों-सी।

और फिर .. 
आहिस्ता ...
आहिस्ता ....
चाटती है तू
ले लेकर
चटकारे,
लपलपाती, लोलुप
जीभ से अपने,
गुलगुले .. 
शेष बचे बुढ़ापे के 
'क्रीम' की मिठास,
मचलती हुई-सी,
होकर बिंदास .. बस यूँ ही ...



9 comments:

  1. वाह क्या अनूठे बिंब हैं।
    चंचल चटोरी,क्रीम बिस्किट क्या गज़ब सोचते हैं।
    बेहतरीन गहन अभिव्यक्ति।
    ---
    ज़िंदगी के बिस्कुट के लिए मेरी भी
    चंद पंक्तियाँ-
    मासूम बचपन
    नादान जवानी
    ऐ ज़िंदगी...
    स्वाद तुम्हारा
    जब चखने की
    समझ आई
    सारी कुरकुराहट
    समय की हवाओं में
    घुल चुकी थी।
    ----
    सादर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी ! नमन संग आभार आपका ... अनूठा, गज़ब जैसी कोई बात नहीं .. बस दिमाग़ में जो बिम्ब क़ुदरती तौर पर अचानक से कौंधता है, वही मिनटों में वेब पन्ने पर उतर भर आता है .. बस यूँ ही ...
      वैसे आपकी चंद पंक्तियों ने मेरे 'क्रीम बिस्कुट' की मिठास को कुछ फ़ीकी जरूर कर दी है .. शायद ... 😀😀😀

      Delete
  2. वाह ! शानदार बिम्ब प्रस्तुत किया है । वैसे अक्सर मैंने देखा है कि बच्चे कुरकुरे बिस्किट बाद में खाते हैं और बीच की क्रीम पहले चट कर जाते हैं ।
    ये आपकी जाने जानाँ ज़िन्दगी कुछ अलग ही तरह की बच्ची
    है ।
    वैसे आपकी रचना पढ़ कर मैं अपने बुढापे में क्रीम की मिठास ढूँढ़ रही हूँ । 😆😆😆😆
    बेहतरीन अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी ! नमन संग आभार आपका ... शानदार विशेषण तो आपकी ज़र्रानवाज़ी है संगीता जी ☺... आप सही कह रही हैं, कि अक़्सर जो आप देखती हैं, मेरी जान-ए-जानाँ ज़िन्दगी और हम भी, दोनों ही लीक से हट कर ही करते हैं या करने की सोचते हैं 😃😃😃
      वैसे तो आम लोगों की तरह, भोज के पत्तल या प्लेट में या घर की थाली में से भी सब से प्रिय व्यंजन आख़िरी कौर में खाने की आदत रही है हमारी ...😄😄😄
      "अपने बुढापे में क्रीम की मिठास" अवश्य तलाशनी ही चाहिए .. वैसे मुझे खोजनी तो नहीं पड़ती, पर मधुमेह के कारण "क्रीम" खा नही सकते ना 😢😢 .. बस यूँ ही ...

      Delete
  3. नमस्कार सर, आपकी रचना बहुत अच्छी है लेकिन हर बार ज़िन्दगी क्रीम बिस्कुट या चाट नही होती है कई बार प्लास्टिक की तरह भी होती है जिसमे कोई स्वाद नही होता। ये जान ऐ जानाँ ज़िन्दगी सिर्फ समय को ही चट नही करती है , कुछ सपने औए कुछ अरमानों को भी चट कर जाती है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी ! शुभाशीष संग आभार तुम्हारा ... पर एक बात पता है कि अपने उपरोक्त इतने नकारात्मक संवाद के बावज़ूद तुम निजी जीवन में बहुत ही सकारात्मक सोच और दृढ़ संकल्प वाली एक शख़्सियत की मालकिन हो .. शायद ...

      Delete
  4. हल्के- फुल्के अंदाज में नव बिम्ब विधान में जीवन की नूतन चटपटी - सी परिभाषा |

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

      Delete