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Monday, July 17, 2023

हरेला ...

सावन माह वाले अमावस्या के दिन "हरेला" नामक सांस्कृतिक विरासत वाला एक पारम्परिक लोकपर्व उत्तराखंड में मनाया जाता है। यही पर्व हिमाचल प्रदेश में भी "हरियाली" के नाम से और छत्तीसगढ़ में "हरेली" के नाम से मनाया जाता है। इस वर्ष 2023 में यह पर्व आज यानि 17 जुलाई को है। उत्तराखंड में इस लोकपर्व के अवसर पर राज्य सरकार द्वारा 2021 से राजकीय अवकाश घोषित किया जा चुका है।

दरअसल पारम्परिक मान्यता के अनुसार इस पर्व को मनाने के लिए लोगों द्वारा किसी थालीनुमा पात्र या टोकरी में मिट्टी डालकर गेहूँ, जौ, धान, गहत, भट्ट, उड़द, सरसों आदि पाँच-सात प्रकार के बीजों को बो दिया जाता है। फिर लोग नौ दिनों तक इस पात्र में रोज सुबह पानी का छिड़काव करते रहते हैं। दसवें दिन इन बीजों से निकले पौधों को काटा जाता है। चार-छः इंच लम्बे इन पौधों को ही "हरेला" कहा जाता है, जिन्हें आस्थाजनित बहुत आदर के साथ घर-परिवार के सभी सदस्य अपने सिर पर रखते हैं। "हरेला" घर में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में बोया व काटा जाता है। एक लोक मान्यता है कि हरेला जितना बड़ा होगा, उतनी ही बढ़िया भावी फसल होगी। साथ ही लोग तथाकथित भगवान से अच्छी फसल होने की कामना भी करते हैं।

यूँ तो साल में तीन बार "हरेला" मनाने की परम्परा है। एक तो चैत माह में, जिसमें माह के प्रथम दिन बीज बोया जाता है और नवमी के दिन काटा जाता है। दूसरा सावन यानि श्रावण माह में, जिसके तहत सावन माह शुरू होने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और दस दिन बाद सावन के प्रथम दिन काटा जाता है। तीसरा आश्विन माह में, जिनमें नवरात्र के पहले दिन बीज बोया जाता है और दशहरा यानि दशमी के दिन काट लिया जाता है। 

आस्तिक कर्मकांडी घटनाओं से जुड़ी बचपन की कुछ यादों के अनुसार बिहार-झाड़खण्ड में भी आश्विन माह वाले नवरात्र के पहले दिन तथाकथित कलश स्थापना के तहत उस कलश यानि मिट्टी के घड़े के चारों ओर कच्ची मिट्टी में जौ बोया जाता था और दशहरा के दिन उन दस दिनों में पनपे कोमल पौधों को  काटा जाता था, जिसको पूजा कराने वाले 'पंडी जी' यानि ब्राह्मण द्वारा घर के सभी सदस्यों को कान पर रखने के लिए दिया जाता था और आज भी पारंपरिक तरीके से ऐसा किया जाता है। 

पर उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश में सावन माह वाला "हरेला" विशेष रूप से मनाया जाता है। यह लोकपर्व भी संक्रान्ति के तरह ही कृषि से सम्बन्धित पर्व है, जो साल भर में कई बार और कई राज्यों में अलग-अलग नाम से और अपनी-अपनी लोक आस्था के अनुसार पारम्परिक ढंग से मनाया जाता है।

परन्तु आधुनिक दौर में इसका स्वरुप परिवर्तित होकर इस दिन सांस्कृतिक आयोजन के साथ-साथ लोगबाग अपने परिवेश में किसी भी फल देने वाले या छाया प्रदान करने वाले या फिर औषधीय गुणों वाले बहुउपयोगी भावी वृक्षों के छोटे स्वरूप में पौधों का रोपण करते हैं। इनमें से कई लोग तो केवल 'सोशल मीडिया' या 'मीडिया' में स्वयं की औचित्यहीन क्षणिक लोकप्रियता हेतु 'सेल्फ़ी' लेने के लिए ऐसा करते हैं और बाद में उन पौधों की सुध लेने वाला कोई भी नहीं होता है। पर सभी ऐसे नहीं होते हैं .. शायद ... 

इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात है उन पौधों का संरक्षण। हर वर्ष मनाए जाने वाले "हरेला" जैसे लोकपर्व के अवसर और विश्वस्तरीय "विश्व पर्यावरण दिवस" पर लगाए जाने वाले पौधों को अगर सही-सही संरक्षण मिलता रहता तो अब तक सही मायने में हमारी धरा लगभग हरी-भरी हो जाती .. शायद ...

संयोगवश नौकरी के सिलसिले में गत वर्ष से उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी देहरादून में रहने के फलस्वरूप यहाँ के "धाद" नामक एक सामाजिक संस्थान द्वारा "हरेला" की पूर्व संध्या पर शहर के गाँधी पार्क के मुख्य द्वार के पास आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम और यहाँ से घन्टाघर होते हुए कनॉट प्लेस तक की जनयात्रा में शामिल होने का मौका कल रविवार को शाम में मिला। उस सांस्कृतिक कार्यक्रम और जनयात्रा के बारे में विस्तार से कुछ ना कह कर, हम उस दौरान आदतन ली गयी कुछ तस्वीरों और वीडियो को यहाँ जस का तस साझा कर रहे हैं .. बस यूँ ही ...

जाते-जाते "हरेला" की औपचारिक शुभकामनाओं के साथ-साथ पुनः हम अपनी बात दोहराना चाहते हैं कि हम "दिवस" के हदों में "दिनचर्या" को क़ैद करने की भूल करते ही जा रहे हैं। नयी युवा पीढ़ी के समक्ष हम बारम्बार "दिनचर्या" की जगह "दिवस" को ही महत्वपूर्ण साबित करने की भूल करते जा रहे हैं। साथ ही हम सभी मिलकर पर्यावरण का मतलब पेड़-पौधों तक ही सीमित कर के पर्यावरण के विस्तृत अर्थ को कुंद करते जा रहे हैं। जबकि पर्यावरण के तहत हमारे आसपास मौजूद समस्त प्राणियों और समस्त प्राकृतिक सम्पदाओं का संरक्षण और संवर्धन ही सही मायने में "हरेला" है .. शायद ...

आइये .. हम सब मिलकर पेड़-पौधों की गुहार को  एक नारा के रूप में दुहराते हैं .. बस यूँ ही ...

हम पेड़-पौधों को सदा संरक्षित और संवर्धित कीजिए।

पर्यावरण के लिए अपनी जनसंख्या नियंत्रित कीजिए।