Friday, August 9, 2024

बिल्कुल तुम-सा ...



सर्वदा रहे अदृश्य 

पूजे की थाली से,

प्रसाद के रूप में।


रहे नदारद सदा

घर में अमीरों के,

जूस के रूप में।


है मगर ये सिक्त 

सोंधी सुगंध से,

स्निग्ध स्वरूप में।


अंग-अंग रसीला,

बिल्कुल तुम-सा 

कोआ कटहल का।

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 11 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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    1. जी ! .. सादर नमन संग आभार आपका .. हमारी बतकही को अपनी प्रस्तुति तक ले जाने के लिए .. बस यूँ ही ...
      (आपके आमंत्रण में भूलवश अगस्त की जगह जुलाई हो गया है .. शायद ...
      पर .. कितना ही आनन्ददायक होता .. अगर .. हम सभी यूँ ही बीते लम्हों को सपने के साथ-साथ वास्तव में भी जी पाते .. है ना ..🤔)

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  2. बढिया!! अब ये कटहल भी उपमा में आ गया! 🙏

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