Monday, September 18, 2023

"कभी "पौधा उखाड़ो दिवस" भी तो हो !" ... (२).

"कभी "पौधा उखाड़ो दिवस" भी तो हो !" को आरम्भ करते समय अपनी इस बतकही के लिए मन में शीर्षक सोचा था- "दुष्टा (?) हरीतिमा", परन्तु फिर बदल दिया .. जो कि आपके समक्ष दिख ही रहा है।

"कभी "पौधा उखाड़ो दिवस" भी तो हो !" ... के बाद .. उससे आगे की बतकही करते हैं .. इस "कभी "पौधा उखाड़ो दिवस" भी तो हो !" ... (२). में ..
इस दुराचारी खरपतवार को "काँग्रेस घास" के नाम से बुलाए जाने की वजह के लिए हमें इतिहास के पृष्ठों पर पड़ी धूल की परतों को झाड़नी होगी।
इतिहास से ज्ञात होता है, कि वर्ष 1812 में दक्षिणी अमेरीकी देश वेनेज़ुएला में आये भीषण भूकंप के बाद पीड़ितों के लिए "अमेरिकी संविधान का पिता" कहे जाने वाले एक सफ़ल अमेरिकी राजनेता और राजनैतिक दार्शनिक .. अमेरिका के तत्कालीन चौथे राष्ट्रपति "जेम्ज़ मैडिसन" ने "अमेरिकी खाद्य सहायता कार्यक्रम" के तहत वेनेज़ुएला की आपातकालीन सहायता की थी। फिर रूस में पड़े अकाल के दौरान "अमेरिकी राहत प्रशासन" के तत्कालीन निदेशक- "हर्बर्ट हूवर" ने वर्ष 1921 में "रूसी अकाल राहत अधिनियम" के तहत लगभग बीस मिलियन डॉलर के खाद्य सामग्री से रूस की सहायता करवायी थी।
इसी क्रम में वर्ष 1954 में 10 जुलाई को "कृषि व्यापार विकास सहायता अधिनियम"- "PL-480" यानि "Public Law-480" नामक सार्वजनिक कानून पर अमेरिकी राष्ट्रपति "ड्वाइट डी. आइजनहावर" द्वारा हस्ताक्षर करके अमेरिका द्वारा खाद्यान्न की सहायता देने के लिये यह समझौता किया गया था।
हालांकि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यूरोप में अमेरिकी सेना में एक कैप्टन के तौर पर एक टैंक कंपनी की कमान संभालने वाले और भावी अमेरिकी "विदेशी कृषि सेवा" ('एफएएस'/FAS) के प्रशासक "ग्विन गार्नेट" ने वर्ष 1950 में भारत की यात्रा से लौटने के बाद मूल रूप से "PL-480" की पांडुलिपि लिखी थी।
बाद में वर्ष 1961 में अमेरिकी राष्ट्रपति "जॉन एफ. केनेडी" ने इस तरह के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए जा रहे वितरण वाले खाद्यान्न को "शांति के लिए भोजन" का ('फूड फॉर पीस’/Food For Peace) नाम दिया था। उस समझौते का सारा संचालन तब के समय के "अंतर्राष्ट्रीय विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र संस्था" (U.S. Agency for International Development- USAID) द्वारा संचालित किया गया था ।
इनके अलावा इतिहास और आँकड़े बतलाते हैं कि विभिन्न प्रशासनिक और संगठनात्मक रूपों में, संयुक्त राज्य अमेरिका के 'फूड फॉर पीस' कार्यक्रम ने साठ से अधिक वर्षों तक दुनिया भर में खाद्यान्न सहायता प्रदान की, जिससे डेढ़ सौ देशों में लगभग तीन अरब लोगों को अमेरिकी खाद्यान्न सहायता से सीधे लाभ हुआ था।
हालांकि आलोचकों द्वारा इस कानून को महँगे अमेरिकी घरेलू कृषि अधिशेष को निपटाने का एक ज़रिया कहा गया था। साथ ही भारत को भेजे गए गेहूँ के लिए कुछ लोगों द्वारा उसे केवल सूअरों को खिलाने के लिए ही उपयुक्त होना भी बोला गया था।
उस वक्त की एक और ख़ास बात .. कि ... इस विधेयक ने खाद्यान्न की कमी वाले देशों को अमेरिकी खाद्यान्न आयात के लिए अमेरिकी डॉलर के बजाय उन्हें अपनी मुद्रा में भुगतान करने की अनुमति देकर एक द्वितीयक विदेशी बाज़ार बनाया था।
सर्वविदित है कि तत्कालीन भारतीय कृषि पूर्णतया मौनसून पर आश्रित होने के साथ-साथ स्वतंत्रता के बाद भारतीय कृषि क्षेत्र का आन्तरिक संघर्ष, उद्योगों के पक्ष में कृषि क्षेत्र की उपेक्षा के कारण था और "एक तो नीम, ऊपर से कड़ैले" जैसी कहावत की तरह खाद्यान्नों के आयात ने कृषि को और भी प्रभावित किया क्योंकि किसान अधिक से अधिक उत्पादन के लिए तब किसी भी तरह की प्रोत्साहन से वंचित रह गए।
तत्कालीन सरकार में कुछ लोगों का यह भी मानना ​​था कि घरेलू कृषि उत्पादन को प्रोत्साहित करने की तुलना में खाद्यान्न आयात करना अधिक सस्ता है।
तत्कालीन सुखाड़ के चपेट में आने पर वर्ष 1965-1966 में भारत को अमेरिका की तरफ से "PL-480" के ही तहत लगभग डेढ़ करोड़ टन गेहूँ का निर्यात किया गया था। यह भारत एवं अमेरिका के बीच हुए उसी खाद्यान्न आपूर्ति समझौता की अगली कड़ी थी, जिसके तहत वर्ष 1960 में तत्कालीन खाद्य और कृषि मंत्री "सदाशिव कानोजी पाटिल" (एस के पाटिल) और अमेरिकी राष्ट्रपति "ड्वाइट डी आइजनहावर" ने मिलकर पुनः समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जो वर्ष 1954 के समझौते से भी चार गुना बड़ा था और दीर्घकालिक भी। सम्भवतः इस प्रकरण में उस समय के प्रधानमंत्री जी के अलावा एक राजनीतिक दल विशेष की परोक्ष और अपने परिवार की प्रत्यक्ष महिला मुखिया की भी विशेष रूप से मूक या मुखर भूमिका रही होगी .. शायद ...
खाद्यान पर निर्भरता जैसी इन्हीं समस्याओं से निपटने के लिए तत्कालीन कृषि मंत्री बाबू जगजीवन राम के कार्यकाल में वर्ष 1967 से अपने देश में "हरित क्रांति" लहलहाने की ओर अग्रसर हुई थी।
हालांकि इस "हरित क्रांति" की पृष्ठभूमि में एक अमेरिकी कृषि विज्ञानी "नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग", जिन्हें नोबेल पुरस्कार के अलावा कई सारे प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले थे और "हरित क्रांति का पिता" भी कहा जाता है, भारत के तत्कालीन कृषि मंत्री- "चिदम्बरम् सुब्रह्मण्यम्" (सी. सुब्रह्मण्यम्), जिन्हें तीन-चार दशक के बाद हरित क्रांति के लिए ही "भारत रत्न" दिया गया था और भारत के एक आनुवांशिक विज्ञानी व राज्य सभा के सदस्य रहे- "मनकोम्बु संबासिवन स्वामिनाथन" (एम ऐस स्वामीनाथन) का मिलाजुला अनमोल योगदान था।
हरित क्रांति की वज़ह से ही भारत में ही पर्याप्त खाद्यान्न उत्पादन के परिणामस्वरूप वर्ष 1971 में भारत की ओर से "PL-480" को निरस्त कर दिया गया था। वर्ष 1972 आते-आते अपना देश खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बन चुका था .. शायद ...
और .. इस प्रकार उन दिनों हरित क्रांति के पूर्व ... परिस्तिथिवश आयातित गेहूँ की बोरियों में इस दुष्टा हरीतिमा के बीजों के जत्थे जाने-अन्जाने हमारे स्वदेश भारत में प्रवेश पा गए थे .. चूँकि इन सारे कार्यों का निष्पादन, परिस्थितिवश, मजबूरीवश या जिन भी कारणों से हुआ हो, पर हुआ तो था तत्कालीन सत्तारूढ़ राजनीतिक दल काँग्रेस के कार्यकाल में। इसीलिए इन विनाशकारी खरपतवार का एक प्रयायवाची शब्द- "कांग्रेस घास" भी है .. शायद ...
वैसे हमारी बतकही का उद्देश्य ना तो किसी राजनीतिक दल विशेष को दोषी ठहराना है और ना ही कोई इसे राजनीतिक चश्मे से देखें .. जो भी चित्र .. इतिहास नामक विषय के पन्नों पर समय के कालखंड ने उकेरा है, बस उसे साझा करने भर का और भावी पीढ़ी को इन विनाशकारी खरपतवार से बचाने का एक तुच्छ प्रयास भर किया है हमने तो। अगर इस बतकही से 'बोर' होने के बाद भींची हुई एक जोड़ी युवा मुट्ठी भी अपने ही आसपास से इनके एक पौधे को भी उखाड़ कर मौत की नींद सुला देती है तो मेरी इस 'बोर' बतकही को राहत की साँस मिल पाएगी .. बस यूँ ही ...

{ चलते-चलते .. आप सभी से साझा करता चलूँ कि .. प्रसार भारती (भारतीय लोक सेवा प्रसारक) के अंतर्गत आकाशवाणी, देहरादून द्वारा मनाए जा रहे हिंदी माह के तहत एक वार्ता का प्रसारण आज 18 सितम्बर 2023 (18-09-2023 / सोमवार) को रात आठ बजे (8 pm) किया जाएगा .. वार्ता का विषय है - "अंतर्राष्ट्रीय फ़लक में हिंदी" .. बस यूँ ही ...
जिसे Play Store द्वारा "NewsOnAir" नामक App को अपने Mobile में Download करके, उसके Live Radio वाले Section में जाकर Uttarakhand के नीचे दिख रहे "आकाशवाणी, देहरादून Dehradun" वाले Icon पर Click कर के सुना जा सकता है .. शायद ...}
मौका हो तो सुनिएगा .. .. 🙏 .. बस यूँ ही ...




2 comments:

  1. हा हा | हमारा आइडिया मार दिए ? "इस दुराचारी खरपतवार को "काँग्रेस घास" के नाम से बुलाए जाने की वजह के लिए हमें इतिहास के पृष्ठों पर पड़ी धूल की परतों को झाड़नी होगी।"
    कोई नहीं उखाड़ते चलिए हजूर :)

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    1. धत् तेरी की !!! ... साहिब !!! ... आप भी ना .. हद कर दो आपने तो .. साहिब !! आपकी या हमारी अब IDEA है ही कहाँ बाज़ार में 🤔 .. अब तो IDEA merge हो कर VODAFONE के साथ कब का VI (Vodafone-Idea) हो गया है .. नहीं क्या 🤔
      और .. आप "झाड़ना" व "उखाड़ना" को merge कर रहे हैं .. शायद ... साहिब ! .. आपके शुरू वाले "हा हा" में चन्द्रबिन्दु रह गया है या आप हँस रहे हैं .. 😂😂😂

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